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Makar Sankranti 2024 Date: क्यों मनाई जाती है मकर संक्रांति? जानिए 4 पौराणिक कारण

Makar Sankranti

Makar Sankranti 2024 Date: सूर्य देवता से जुड़े हिंदू धर्म में कई प्रमुख त्‍योहारों को मनाया जाता है, इन्‍हीं त्‍योहारों में से एक है मकर संक्रांति। मकर संक्रांति पर स्‍नान, ध्‍यान और दान का शास्‍त्रों में विशेष महत्‍व बताया गया है। खरमास का भी मकर संक्रांति पर समापन हो जाता है और शादी-विवाह जैसे शुभ और मांगलिक कार्यों पर लगी रोक हट जाती है और मांगलिक कार्य प्रारम्भ हो जाते है। ऐसी भी मान्‍यता है कि इस दिन जो दान किया जाता हे वो सौ गुना होकर वापस लौटता है। आइए आपको इस आर्टिकल के ज़रिये  मकर संक्रांति से जुड़ी चार प्रमुख कथाओं के बारे में बताते हैं। 

मकर संक्रांति (Makar Sankranti) देवताओं का दिन:

सूर्य देव इस दिन मकर राशि में प्रवेश करते है, यानी मकर संक्रांति (Makar Sankranti) दान, पुण्य की पावन तिथि है।  इसे देवताओं का दिन भी कहा जाता है। इसी दिन से सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं, वहीं बता दे की शास्त्रों में उत्तरायण के समय को देवताओं का दिन और दक्षिणायन को देवताओं की रात कहा गया है। इसलिए इस पर्व को देवताओं का दिन भी कहा जाता है। मकर संक्रांति एक तरह से देवताओं की सुबह होती है।इसी कारण मकर संक्रांति के दिन स्नान, दान, जप, तप, श्राद्ध और अनुष्ठान का बहुत महत्व है। पौराणिक कथा कहती है कि ये तिथि उत्तरायण की तिथि होती है। 

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मकर संक्रांति (Makar Sankranti) पर सागर में जाकर मिली थी गंगा

मकर संक्रांति (Makar Sankranti) के पर्व पर ही माँ गंगा महाराज भगीरथ के पीछे-पीछे जाकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं। महाराज भगीरथ ने इस दिन अपने पूर्वजों के लिए तर्पण किया था।  इसलिए मकर संक्रांति पर पश्चिम बंगाल के गंगासागर में मेला भी लगता है जो की बहुत ही भव्य होता है। 

पिता-पुत्र का मिलन

मकर संक्रांति (Makar Sankranti) का त्योहार इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस दिन पिता सूर्य अपने पुत्र शनि की राशि मकर में पूरे एक महीने के लिए आते हैं। शनि, छाया के पुत्र हैं और इसी कारण से पिता सूर्य और शनि में सदैव ही एक तनाव रहा है परन्तु आज के दिन पिता पुत्र से साथ आते हैं। इसलिए मकर संक्रांति को पिता-पुत्र का मिलन के रूप में भी मनाया जाता है। 

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भीष्म पितामह ने मकर संक्रांति (Makar Sankranti) को त्यागी थी देह

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महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति के दिन का ही चयन किया था। जब वे महाभारत युद्ध के समाप्त होने के बाद भी बाणों की शैया पर लेटे हुए थे। तब वे उत्तरायण के दिन की प्रतीक्षा कर रहे थे, और उन्होंने मकर संक्रांति की तिथि पर ही अपना जीवन त्यागा था।  ऐसा कहते हैं कि उत्तरायण में देह त्यागने वाली आत्माएं कुछ पल के लिए देवलोक चली जाती हैं या फिर उन्हें जन्म मरण के चक्र से मुक्ति मिल जाती है। 

किस दिन मनाई जाएगी मकर संक्रांति?

इस त्योहार को पूरे देश में अलग अलग नामों से जानते हैं। कई जगाओं पर इसे मगही कहते हैं, तो कहीं माघे संक्रांति भी कहते हैं। उत्तर भारत में यह पर्व मकर संक्रांति के नाम से मानते है, तो गुजरात में उत्तरायण के नाम से जाना जाता है। पंजाब में इसे लोहड़ी, उत्तराखंड में उत्तरायणी और केरल में पोंगल के नाम से इस त्यौहार को मनाते  हैं। वैसे तो ये त्योहार हर साल 14 जनवरी को मनाया जाता है, लेकिन इस बार मकर संक्रांति का पर्व 15 जनवरी को मनाया जाएगा। 

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