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क्या राम मंदिर (Ram Mandir) संघर्ष 1717 से शुरू हुआ? जाने पूरा सच!

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Ram Mandir: 5 अगस्त 2020 को प्रधानमंत्री मोदी की उपस्तिथि में राम जन्मभूमि पर भूमि पूजन हुई और वही से राम मंदिर निर्माण का कार्य प्रारम्भ हुआ| 22 जनवरी 2024 को राम मंदिर में प्रभु राम की प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी और उसमे बड़े-बड़े महात्मा, पुजारी, महंत तथा नेता-राजनेता सभी शामिल होंगे| 

यह विश्व भर में स्थित सभी हिन्दुओं के लिए हर्ष एव उत्साह का अवसर है| क्योकि वर्षो से चले आ रहे संघर्ष का परिणाम मिलने को है| जितना भव्य और सुन्दर हमारा राम मंदिर है, उतना ही भव्य और संघर्ष भरा राम मंदिर का इतिहास भी है| 

कहा से आरम्भ हुआ था हमारा संघर्ष, क्या है राम मंदिर का पूरा इतिहास? सिर्फ सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर तो नहीं बना है राम मंदिर!

चलिए साथ जानते हैं, राम मंदिर (Ram Mandir) इतिहास:

6 दिसंबर 1992 बाबरी मस्जिद का ढांचा गिराया गया, देश में दंगे हुए क्या यहाँ से प्रारम्भ हुआ राम मंदिर इतिहास?

नहीं! कहानी शुरू होती है 1526 ई. में, समरकंद से निकाले जाने के बाद बाबर ने अपना ध्यान भारत की ओर लगाया। उन्होंने पानीपत की पहली लड़ाई में दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी को हराया और मुगल साम्राज्य की स्थापना की। इस प्रकार देश की बहुसंख्यक आबादी पर अत्याचार का युग शुरू हुआ। 1528 ई. में जब बाबर अयोध्या आया और एक सप्ताह के लिए अयोध्या में रुका। तब ही उसने राम मंदिर (Ram Mandir) को गिराया और वह एक मस्जिद बनाई जिसे हम बाबरी मस्जिद के नाम से जानते हैं|  

  • 1717: कुछ दस्तावेज़ ये भी कहते हैं की, राजपूत कुलीन: सवाई राजा जय सिंह ने मस्जिद की जमीन खरीदी और उसे अयोध्या में रहने वाले पुजारियों को सौंप दिया। तभी से हिन्दू, मस्जिद के बाहर मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम की मूर्ति पूजन करते रहे हैं।
  • 1768: औरंगजेब ने उस जमीन पर कब्ज़ा किया और वहां मस्जिद को फिर से बनवाया। उस समय से वहां फिर से पूजन अदि कार्यों को पुनः बंद कर दिया गया।  

राम मंदिर (Ram Mandir) के लिए पहला कदम हिन्दू नहीं सिखों का था: 

राम मंदिर

  • 30,नवंबर 1858, यानि आज़ादी से करीब 90 वर्ष पहले| 30,नवंबर 1858 को निहंग सिखों के एक समूह ने बाबरी मस्जिद के अंदर अपना निशान स्थापित किया था और “राम” लिखा था। उन्होंने हवन और पूजा भी की. तब मोहम्मद सलीम नामक व्यक्ति ने  निहंग सिखों के खिलाफ FIR दर्ज की और वो राम मंदिर के लिए उठाया गया पहला कदम था| 
  • अवध के थानेदार शीतल दुबे ने 1 दिसंबर, 1858 को अपनी रिपोर्ट में शिकायत का सत्यापन किया और यहां तक कहा कि सिखों द्वारा एक चबूतरे का निर्माण किया गया है। यह पहला दस्तावेजी साक्ष्य बन गया कि हिंदू न केवल बाहरी प्रांगण में बल्कि भीतरी प्रांगण के अंदर भी मौजूद थे.
  • 1859 में ब्रिटिश प्रशासन ने इस मुद्दे को देखते हुए एक फैसला लिया।  तभी उन्होंने हिन्दू और मुसलमानों दोनों के लिए अलग-अलग पूजा क्षेत्रों करते हुए, उसके चारों ओर एक सीमा बना दी। जो लगभग 90 वर्षों तक यह इसी प्रकार खड़ी रही।

राम मंदिर के लिए क़ानूनी रूप से संघर्ष आरम्भ हुआ वर्ष 1883 

राम जन्मभूमि पर दाखिल पहली याचिका;कानूनी लड़ाई 1885 में शुरू हुई, जब महंत रघुबर दास ने फैजाबाद की सिविल कोर्ट की काउंसिल में भारत के राज्य सचिव के खिलाफ मुकदमा (संख्या 61/280) दायर किया। 

राम मंदिर

  • अपने मुकदमे में दास ने दावा किया कि वह एक महंत हैं और बाहरी प्रांगण में चबूतरे पर स्थित हैं और उन्हें वहां मंदिर बनाने की अनुमति दी जानी चाहिए। मुक़दमा ख़ारिज कर दिया गया,1886 में. 
  • 1885 के फैसले के खिलाफ एक सिविल अपील (नंबर 27) दायर की गई थी। फैजाबाद के जिला न्यायाधीश एफईआर चैमियर ने आदेश पारित करने से पहले घटनास्थल का दौरा करने का फैसला किया। बाद में उन्होंने अपील खारिज कर दी.

राम मंदिर आंदोलन और किये गए मुक़दमे: 

क्या कहेंगे, कब हुआ राम मंदिर (Ram Mandir) आंदोलन प्रारम्भ? 1989 में. 

तो आप गलत है, क्योकि राम मंदिर आंदोलन आरम्भ होता है। 

दिसम्बर 22 और 23, 1949 में, जब रामलला बाबरी मस्जिद में प्रकट हुए 

23 दिसंबर! जब बात अयोध्या की आती है तो यह तारीख कोई मायने नहीं रखती। बहुत कम लोग जानते हैं कि यही वह दिन था जब राम मंदिर आंदोलन की नींव का पहला पत्थर रखा गया था, जिसके कारण दिसंबर 1992 में बाबरी मस्जिद का विध्वंस हुआ था।

अब लोगों को शायद ही याद है कि बाबरी मस्जिद के विध्वंस की उत्पत्ति 22 और 23 दिसंबर, 1949 की मध्यरात्रि की तेज ठंडी हवाओ में हुआ था।  

क्या हुआ था 23 दिसंबर 1949 की मध्यरात्रि को, क्या यही प्रश्न है? 

23 दिसंबर, यह वह समय था, जब माना जाता है कि राम लल्ला (मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के बाल रूप का नाम ) की मूर्ति मस्जिद के अंदर “प्रकट” हुई थी, जिसके बारे में हिंदू दावा कर रहे थे कि इसका निर्माण रामजन्मभूमि पर  किया गया था। कई लोग कहते हैं कि मूर्ति बिल्कुल भगवान राम के घोषित जन्म स्थान पर “प्रकट” हुई थी। 

राम मंदिर

credit: google

लेकिन जब अयोध्या में यह खबर आई!  कि राम लल्ला बाबरी मस्जिद में हैं, तो बड़ी संख्या में श्रद्धालु मस्जिद में जमा हो गए और हिन्दुओ ने उस पर कब्ज़ा कर लिया।

इसके तुरंत बाद, सांप्रदायिक अशांति (हिन्दू मुस्लिम दंगे) की आशंका का हवाला देते हुए, फैजाबाद के तत्कालीन सिटी मजिस्ट्रेट गुरु दत्त सिंह ने मस्जिद की संपत्ति को ज़ब्त कर लिया और इसे हिंदुओं और मुसलमानों दोनों के लिए बंद कर दिया।
इसके बाद दोनों पक्षों ने साइट पर कब्जे के लिए अदालत का रुख किया, जिससे अयोध्या शीर्षक विवाद को जन्म दिया गया। 

तब से 23 दिसंबर, विश्व हिंदू परिषद और अन्य हिंदू संगठन इस दिन को “राम प्रकटोत्सव” के रूप में मनाते आ रहे हैं। 

16 जनवरी 1950, हिंदू महासभा के गोपाल सिंह विशारद ने मुकदमा किया दायर!!

16 जनवरी, को हिंदू महासभा के गोपाल सिंह विशारद इस मामले में स्वतंत्र भारत में मुकदमा दायर करने वाले पहले व्यक्ति बने। गोपाल विशारद ने आंतरिक प्रांगण में प्रार्थना करने और पूजा करने के अधिकार के लिए प्रार्थना करते हुए पांच मुसलमानों, राज्य सरकार और फैजाबाद के जिला मजिस्ट्रेट के खिलाफ मुकदमा दायर किया। उसी दिन, सिविल जज ने राम जन्मभूमि पर मालिकाना हक़ नहीं दिया परन्तु पूजा की अनुमति दी। 

25 मई, 17 दिसंबर 1959, 3 हिस्सों में राम जन्मभूमि

नौ साल बाद, 25 मई को दूसरा मुकदमा प्रमहंस रामचन्द्र दास ने जहूर अहमद और अन्य के खिलाफ दायर किया था और यह पहले मुकदमे के समान था। जिसमे जज का आदेश भी सामान ही था।

17 दिसंबर, 1959 को निर्मोही अखाड़े ने रिसीवर (यानि वो जीना राम जन्मभूमि पर संचालन था) से प्रबंधन लेने के लिए तीसरा मुकदमा दायर किया। 

2010 में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने निर्मोही अखाड़े के मुकदमे पर रोक लगा दी, लेकिन फिर भी उन्हें स्वामित्व अधिकार का एक तिहाई हिस्सा दिया गया।

18 दिसंबर, 1961: जब हुई मूर्ति हटाने की बात!!

दो साल बाद, 18 दिसंबर, 1961 को, सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड (Sunni Central Waqf Board) ने पहले के मुकदमों में नियुक्त सभी प्रतिवादियों के साथ, सिविल जज, फैजाबाद की अदालत में चौथा मुकदमा दायर किया, जिसमें मूर्तियों को हटाने और मस्जिद का कब्जा सौंपने की प्रार्थना की गई। 

20 मार्च, 1963: हिन्दुओ का बना संगठन

20 मार्च, 1963 को अदालत ने कहा कि पूरे हिंदू समुदाय का प्रतिनिधित्व कुछ व्यक्तियों द्वारा नहीं किया जा सकता। उन्होंने हिंदू समुदाय का प्रतिनिधित्व करने के लिए हिंदू महासभा, आर्य समाज और सनातन धर्म सभा को प्रतिवादी के रूप में शामिल करने के लिए एक सार्वजनिक नोटिस जारी करने का आदेश दिया। 

 1984: बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी को प्रचार का नेता बनाया गया है।

राम जन्मभूमि स्थान पर मंदिर बनाने का आंदोलन, जिसके बारे में हिंदुओं का दावा है कि वह भगवान राम का जन्मस्थान है, ने तब गति पकड़ी जब हिंदू समूहों ने राम जन्मभूमि स्थल पर मंदिर के निर्माण का नेतृत्व करने के लिए एक समिति का गठन किया। बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी को प्रचार का नेता बनाया गया है।

 राम मंदिर शिलान्यास के लिए ही 8 अप्रैल 1984 को दिल्ली के विज्ञान भवन में एक विशाल धर्म संसद का भी आयोजन किया गया था।

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“यह कही भी आंदोलन या मुक़दमे से संबंध तो नहीं रखते पर सन 1985 में  रामानंद सागर द्वारा निर्मित रामायण (Ramayana) दूरदर्शन पर प्रसारित हुई। जिसको प्रसारित न करने के लिए संसद में भी काफी दफा बहस हुई। परन्तु उस समय देश के प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने प्रसारण की अनुमति दी और उस वर्ष रामायण पुरे देश ने देखी और अयोध्या में राम मंदिर की मांग ने तेज़ी पकड़ी।” 

1986: पूजन फिर प्रारम्भ हुई

25 जनवरी 1986 को, वकील उमेश चंद्र पांडे ने मुंसिफ मजिस्ट्रेट, फैजाबाद के समक्ष एक आवेदन दायर किया, जिसमें प्रार्थना की गई कि ताले खोले जाएं और लोगों को अंदर पाई गई मूर्तियों के दर्शन और पूजन करने की अनुमति दी जाए। मुंसिफ मजिस्ट्रेट ने यह कहते हुए आवेदन खारिज कर दिया कि मामले से संबंधित फाइलें उच्च न्यायालय में हैं। वकील उमेश चंद्र पांडे ने 31 जनवरी, 1986 को फैजाबाद जिला अदालत में आदेश के खिलाफ अपील की। 

1 फरवरी को फैजाबाद के डीएम (DM) और एसपी (SP) दोनों ने कोर्ट में माना कि ताले खुलने पर शांति बनाए रखने में कोई दिक्कत नहीं होगी। कोर्ट ने ताले खोलने का आदेश दिया और ताले उसी दिन खोल दिये गये। वह अयोध्या विवाद में एक महत्वपूर्ण मोड़ था और इसने भारत की राजनीतिक दिशा बदल दी। ताले खुलने के बाद 6 फरवरी को मुस्लिम नेताओं की लखनऊ में बैठक हुई और जफरयाब जिलानी को संयोजक बनाकर बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन किया गया।

 1989: विश्व हिन्दू परिषद द्वारा शिलान्यास की घोषणा

राम मंदिर (Ram Mandir) निर्माण की मांग बढ़ती जा रही थी। फरवरी में, विश्व हिन्दू परिषद (VHP) ने घोषणा  की कि क्षेत्र के पास मंदिर निर्माण के लिए शिलान्यास  किया जाएगा। जिसके बाद विश्व हिन्दू परिषद के अध्यक्ष ने देश के हर राज्य में जाकर हिन्दुओ को एकजुट करने का काम जोरो-शोरो से प्रारम्भ कर दिया। 

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1 जुलाई, 1989 को, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश देवकी नंदन अग्रवाल द्वारा राम लला विराजमान (देवता, एक छोटा कानूनी व्यक्ति माना जाता है) के “अगले दोस्त” के रूप में फैजाबाद में सिविल जज के समक्ष पांचवां मुकदमा दायर किया गया था। इसमें प्रार्थना की गई कि नए मंदिर के निर्माण के लिए पूरी जगह राम लला को सौंप दी जाए। 1989 में शिया वक्फ बोर्ड (Shia Waqf Board) ने भी मुकदमा दायर किया और मामले में प्रतिवादी बन गया।

नवंबर में, विश्व हिन्दू परिषद ने गृह मंत्री बूटा सिंह और तत्कालीन मुख्यमंत्री एनडी तिवारी की उपस्थिति में “विवादित ढांचे” के निकट भूमि पर एक मंदिर की नींव रखी। बिहार के भागलपुर जैसे देश के कई राज्यों में हिन्दू मुस्लिम में झगड़े हुए।

तो क्या हुआ ऐसा 1990 में जिसके कारण 1992 के ढांचे को विध्वंश कर दिया गया और राम मंदिर के लिए नीव राखी गयी जाने के लिए क्लिक करे भाग 2 की लिंक पर और पढ़े पूरी कहानी!! 

Ram mandir 1990: सरयू नदी में फेंक शव, देश के प्रधानमंत्री बदले, बाबरी मस्जिद हुई विध्वंश जाने सब कुछ!! 

क्या आप नहीं जानना चाहेंगे की हमारा राम मंदिर कितना भव्य और अद्भुद है, उससे पूर्ण होने में कितना समय लगेगा। क्या वो विश्व का सवसे बड़ा मंदिर है? और क्या एक बार काम प्रारम्भ होने के बाद कभी नहीं रुका, यदि रुका तो क्या क्या बिच में बाधाएँ आई? तो ये जानने के लिए क्लिक करे निचे दिए लिंक पर और पढ़े भाग 3 

वर्तमान राम मंदिर (Ram Mandir): कितना भव्य और अद्भुद है, कितना समय लगेगा, क्या विश्व का सबसे बड़ा मंदिर?

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