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Ram mandir 1990: सरयू नदी में फेंक शव, देश के प्रधानमंत्री बदले, बाबरी मस्जिद हुई विध्वंश जाने सब कुछ!! 

बाबरी मस्जिद

Ram mandir: सन 1990 भारत के इतहास का वो वर्ष जब राम मंदिर आंदोलन को अपनी चरम सिमा पर ले जाने का कार्य भारतीय जनता पार्टी (BJP) के अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी ने आपने हाथो में लिया। या ये कहूं की वो वर्ष जान भारत के एक राज्य अयोध्या में जनरल डायर के आदेश की तरह पुलिस को आदेश दिया गया की लोगो में गोलियां दाग दी जाये। 

तो चलिए साथ जानते हैं क्या सच है 1990 का?

वी. पी. सिंह भाजपा के समर्थन से भारत के प्रधान मंत्री बने, जिन्होने चुनाव में 58 सीटें जीती थीं, जो कि उसकी पिछली 2 सीटों से भारी सुधार था। तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी ने राम जन्मभूमि स्थान पर राम मंदिर (Ram mandir) बनाने के लिए एक बड़ा कदम उठाया और समर्थन जुटाने के लिए एक भव्य राम रथयात्रा निकाली।

जो पुरे देश से होकर गुजारनी थी। 23 अक्टूबर को बिहार तत्कालीन मुख्यामंत्री लालू प्रसाद यादव के आदेश पर यात्रा के दौरान लाल कृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया गया। जिसके बाद बीजेपी ने सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया। कांग्रेस के समर्थन से चन्द्रशेखर भारत के प्रधानमंत्री बने। 30 अक्टूबर और 2 नवंबर 1990 इतिहास में याद रखे जाने वाली तारीख़, जो अयोध्या गोलीबारी के अवसर का वर्णन करती है जब उत्तर प्रदेश पुलिस ने उस समय के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के आदेश पर राम रथ यात्रा में शामिल हुए नागरिकों पर गोलीबारी की थी। नागरिक धार्मिक स्वयंसेवक या कार सेवक थे, वे राम रथयात्रा के प्रतिभागियों के रूप में अयोध्या में एकत्र हुए थे।

उनके शवों को सरयू नदी में फेंक दिया गया।

1991: चुनाव हुए सत्ता पलटी और क्या हुआ जानिए? 

1991 में चुनाव हुए और चुनावों के बाद कांग्रेस केंद्र में सत्ता में आई, जबकि किसकी को उम्मीद भी न थी फिर भी भाजपा केंद्र में प्रमुख विपक्षी दल बन कर सामने आई और मध्य प्रदेश, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और उत्तर प्रदेश जैसे कई भारत के प्रमुख राज्यों में सत्ता में आई। कल्याण सिंह भारती जनता पार्टी की ओर से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने।

राज्य सरकार यानि उत्तर प्रदेश सरकार ने क्षेत्र में से 2.77 एकड़ (1.12 हेक्टेयर) भूमि का अधिग्रहण किया और इसे रामजन्मभूमि न्यास ट्रस्ट को पट्टे (किराये) पर दे दिया। इलाहबाद उच्च न्यायालय ने क्षेत्र में किसी भी स्थायी निर्माण गतिविधि पर रोक लगा दी यानि न मंदिर बनेगा ना ही मस्जिद में किसी को जाने दिया जायेगा। कल्याण सिंह ने सार्वजनिक रूप से आंदोलन का समर्थन किया जबकि केंद्र सरकार ने बढ़ते तनाव को रोकने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की। हाई कोर्ट के फैसले के बावजूद विवादित क्षेत्र को जमींदोज कर दिया गया। 

तो हम आ गए सबसे मुख्य वर्ष में जब वो हुआ जिसकी पुरे हिंदुस्तान में किसी को कानों कान खबर भी नहीं थी:

1992: जिस वर्ष बाबरी मस्जिद विध्वंश हुई 

Ram mandir

कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने राम जन्मभूमि पर मंदिर (Ram mandir) निर्माण आंदोलन का समर्थन करने के लिए कदम उठाए, जैसे कि क्षेत्र में प्रवेश आसान बनाना, कारसेवकों पर गोलीबारी न करने का वादा करना जो इससे पहले रामरथ यात्रा के समय हुआ था, क्षेत्र में केंद्रीय पुलिस बल भेजने के केंद्र सरकार के फैसले का विरोध करना आदि। जुलाई में, कई हजार कारसेवक क्षेत्र में इकट्ठे हुए और मंदिर के रख-रखाव का काम शुरू। यह पहली बार था जब इतने सेवक एक साथ क्षेत्र में आये थे। प्रधानमंत्री के हस्तक्षेप के बाद यह गतिविधि रोक दी गयी। फिर कारसेवक का क्षेत्र में आने बंद कर दिया गया।

गृह मंत्री की मौजूदगी में बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी और विश्व हिन्दू परिषद (VHP) के नेताओं के बीच बैठकें शुरू हुईं। 30 अक्टूबर को विश्व हिंदू परिषद केअध्यक्ष ने दिल्ली में घोषणा की कि वार्ता विफल हो गई है और 6 दिसंबर से कारसेवा शुरू होगी। केंद्र सरकार क्षेत्र में केंद्रीय पुलिस बलों की तैनाती तथा राज्य सरकार को भंग करने पर विचार कर रही थी, अंततः इसके खिलाफ फैसला किया गया। मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में हो रही थी। जिसमें कहा गया कि इलाके में कानून-व्यवस्था सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की है, न की केंद्रीय सरकार की। कैबिनेट कमेटी की बैठक और राष्ट्रीय एकता परिषद में इस पर चर्चा की।

बीजेपी ने परिषद का बहिष्कार किया। इलाहाबाद हाई कोर्ट 1989 में रखी गई नींव की संरचना की वैधता के मामले पर सुनवाई कर रहा था।

और अब आता है वो दिन 06 दिसंबर 1992: 

बाबरी मस्जिद का ढांचा गिराया गया जिसके बाद मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने इस्तीफा दे दिया। जिस दिन विजड़ित ढांचा गिराया गया, रिपोर्ट्स कहती हैं की सुबह 10:30 बजे से हजारों लाखों की संख्या में कारसेवकों का आना प्रारम्भ हुआ। वहीँ करीब 12 बजे तक लाखों की संख्या में सेवक विवादित क्षेत्र के पास इकट्ठे हो गए और कारसेवकों का एक बड़ा हिस्सा मस्जिद की डोवारो पर चढाने लगता है। लाखो की भीड़ को संभालना किसी के लिए भी संभव नहीं था।

3 बजकर 40 मिनिट पर मस्जिद का पहला हिस्सा टूटा और 4 बजकर 55 मिनिट पर मस्जिद को पूरी तरह मिटटी में विध्वंश कर दिया। उसी जगह भीड़ ने ‘पूजा अर्चना’ की और भगवान राम की ‘राम शिला’ स्थापना की। पुलिस के अधिकारी मामले की गंभीरता को बता रहे थे। मस्जिद के विध्वंश ढांचे के आसपास के कारसेवको को रोकने का साहस किसी में न था। मुख्यमंत्री कल्याण सिंह का पुलिस को सीधा आदेश था, किसी भी कारसेवक पर गोली न चलाई जाये। 

Ram mandir

06 दिसंबर को बाबरी मस्जिद ढांचा नहीं रहा और उसके परिणाम स्वरूप देशभर में दंगे हुए। वहीं इस मामले पर नज़र देते हुए विश्व हिन्दू परिषद के अध्यक्ष अशोक सिंगल, भाजपा अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह, भाजपा प्रमुख मुरली मनोहर जोशी और मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमत्री उमा भारती सहित 49 दिग्गजों के खिलाफ बाबरी मस्जिद साजिश का मुकदमा चलने की मांग की गई। 

16 दिसंबर 1992: विध्वंश के 10 दिन बाद!!

बाबरी मस्जिद विध्वंश के 10 दिन बाद जहा केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी। पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व में एक जांच आयोग का गठन किया जिसका नेतृत्व जस्टिस लिब्रहान द्वारा किया जायेगा। 

1 जनवरी, 1993:

1 जनवरी, 1993 को उच्च न्यायालय ने कहा कि प्रत्येक हिंदू को उस स्थान पर पूजा करने का अधिकार है जिसे भगवान राम का जन्मस्थान माना जाता है।

7 जनवरी, 1993:

हालाँकि, आगे की परेशानी और दंगो को भांपते हुए, केंद्र सरकार ने 7 जनवरी, 1993 को एक अध्यादेश अयोध्या में मध्य क्षेत्र का अधिग्रहण (यानि जमीं पर कब्ज़ा) जारी किया और विवादित स्थल और उसके आसपास के क्षेत्रों सहित 67 एकड़ भूमि का अधिग्रहण कर लिया। साथ ही केंद्र सरकार ने यह निर्धारित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट को एक संदर्भ भेजा कि क्या बाबरी मस्जिद के निर्माण से पहले वहां कोई मंदिर था।

मार्च 1993: जस्टिस लिब्रहान ने जांच प्रारम्भ कि

मार्च में यानि गठन के 3 महीने बाद जस्टिस लिब्रहान ने जांच प्रारम्भ कि,बाबरी मस्जिद विध्वंश किसने और किस कारण से किया गया। क्या वहां मस्जिद से पहले कोई था। 

24 अक्टूबर 1994:

केंद्र सरकार द्वारा अधिग्रहण के तुरंत बाद, मोहम्मद इस्माइल फारूकी ने इसे चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक रिटेन याचिका दायर की। सुप्रीम कोर्ट ने संदर्भ पर सुनवाई के लिए पांच न्यायाधीशों की पीठ का गठन किया। 24 अक्टूबर 1994 को शीर्ष अदालत ने माना कि अधिग्रहण वैध था। 

 06 दिसंबर 2001: 

 मस्जिद विध्वंस की बरसी पर तनाव बढ़ गया क्योंकि विश्व हिन्दू परिषद (VHP) ने उस स्थान पर मंदिर बनाने के अपने संकल्प की पुष्टि की और अपने किये हुए संकल्प को याद दिलाया। 

27 फरवरी 2002: 2000 से ज्यादा लोगों के मारे जाने की खबर

राम मंदिर

गुजरात के गोधरा में अयोध्या से हिंदू स्वयंसेवकों को ले जा रही एक ट्रेन पर हुए हमले में कम से कम 58 लोग मारे गए। इसके बाद राज्य में दंगे हुए और इनमें अनौपचारिक तौर पर 2000 से ज्यादा लोगों के मारे जाने की खबर है। उस समय गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी थे। 

मार्च 2002:

मार्च 2002 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा मामला अपने हाथ में लेने के तेरह साल बाद, अयोध्या विवाद के मालिकाना हक के मुकदमे की सुनवाई शुरू हुई। 

जुलाई 2003: 

जुलाई 2003 में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने विवादित स्थल पर खुदाई का आदेश दिया।

 22 अगस्त 2003

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने खुदाई की और 22 अगस्त 2003 को अपनी रिपोर्ट सौंपी। अपनी रिपोर्ट में एएसआई ने कहा कि विवादित ढांचे के नीचे एक विशाल संरचना थी और हिंदू तीर्थयात्रा की कलाकृतियां थीं।

सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया की विवादित स्थल पर किसी भी धार्मिक गतिविधि की इजाजत नहीं दी जाएगी। 

सितंबर 2003:

अदालत ने फैसला सुनाया कि कुछ प्रमुख भाजपा नेताओं सहित सात हिंदू नेताओं पर बाबरी मस्जिद के विनाश के लिए उकसाने के लिए मुकदमा चलाया जाना चाहिए।

नवंबर 2004:

उत्तर प्रदेश अदालत ने फैसला सुनाया कि मस्जिद के विनाश में उनकी भूमिका के लिए लालकृष्ण आडवाणी को बरी करने वाले पहले के आदेश की समीक्षा की जानी चाहिए।

30 जून 2009:

लिब्रहान आयोग, जिसे 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के दस दिन बाद गठित किया गया था, ने अपनी जांच शुरू करने के लगभग 17 साल बाद 30 जून को अपनी रिपोर्ट सौंपी। जिस रिपोर्ट की सामग्री आज तक सार्वजनिक नहीं की गई। 

30 सितंबर 2010:

राम मंदिर

30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस धर्मवीर शर्मा, जस्टिस सुधीर अग्रवाल और जस्टिस एसयू खान की तीन जजों की बेंच ने मालिकाना हक के मुकदमे में अपना फैसला सुनाया। इसने विवादित भूमि को तीन हिस्सों में बांट दिया।  ⅓ हिंदू महासभा द्वारा प्रतिनिधित्व किए गए राम लला को जाता है,  ⅓ उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को जाता है,  ⅓ निर्मोही अखाड़े को जाता है। 

दिसंबर 2010: 

अखिल भारतीय हिंदू महासभा, सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़ा – ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले का विरोध करते हुए सुप्रीम कोर्ट में अपील की।

9 मई 2011: 

9 मई, को जस्टिस आफताब आलम और आरएम लोढ़ा की पीठ ने हिंदू और मुस्लिम दोनों संगठनों की अपीलों को स्वीकार करते हुए उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के 2010 के फैसले पर रोक लगा दी और पक्षों को यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया।

8 जनवरी 2019: उलटी गिनती शुरू हुई

8 जनवरी को, सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में मालिकाना हक के मुकदमे की सुनवाई के लिए पांच जजों की बेंच का गठन किया। दो दिन बाद जस्टिस यूयू ललित ने खुद को पांच जजों की बेंच से बहार कर लिया। फरवरी में, भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने अपने अधीन पांच न्यायाधीशों की पीठ का गठन किया, जिसमें न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति नज़ीर, न्यायमूर्ति बोबडे और न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ शामिल थे।

राम मंदिर

13 मार्च:

पीठ ने अदालत की निगरानी में बीच-बचाव का प्रस्ताव दिया, बीच-बचाव पैनल में पूर्व एससी जज जस्टिस एफएम कलीफुल्ला, श्री श्री रविशंकर और वरिष्ठ वकील श्रीराम पंचू शामिल थे। बीच-बचाव 13 मार्च को फैजाबाद के अवध विश्वविद्यालय में शुरू हुई। सात दौर की चर्चा हुई लेकिन नतीजा नहीं निकला। 

2 अगस्त:

2 अगस्त को कोर्ट ने 6 अगस्त से नियमित सुनवाई शुरू करने का फैसला किया था। 

6 अगस्त: 

6 अगस्त से शीर्ष अदालत ने नियमित रूप से 40 दिनों तक मामले की सुनवाई की और आखरी 11 दिनों में पक्षों को अपनी दलीलें पूरी करने के लिए एक घंटे का अतिरिक्त समय दिया गया। मामले में सभी पक्षों की बहस 16 अक्टूबर को पूरी हो गई। 

16 अक्टूबर:

सुप्रीम कोर्ट में अंतिम सुनवाई ख़त्म। पीठ ने अंतिम फैसला सुरक्षित रख लिया। पीठ ने विवादित पक्षों को ‘राहत की रूपरेखा’ या उन मुद्दों को सीमित करने पर लिखित नोट दाखिल करने के लिए तीन दिन का समय दिया, जिन पर अदालत को निर्णय देना आवश्यक है।

9 नवंबर: 

राम मंदिर

अंततः वो दिन आया जब सुप्रीम कोर्ट को आपने अंतिम फैसला सुनाना था, पुरे देश के हिन्दू और मुस्लिम दोनों आपने दिलो को थामे हुए थे। 

अंतिम फैसला सुनाया गया। सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर बनाने के लिए जमीन एक ट्रस्ट को सौंपने का आदेश दिया।  इसने सरकार को मस्जिद बनाने के उद्देश्य से उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को अयोध्या शहर की सीमा के अंदर 5 एकड़ (2.0 हेक्टेयर) जमीन देने का भी आदेश दिया।

12 दिसंबर: 

फैसले पर पुनर्विचार की मांग वाली सभी याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दीं। 

बहुत कम लोग ये जानते होंगे की मस्जिद बनाने के लिए कहां उन्हें स्थान दिया गया। 

5 फरवरी 2020: 

भारत सरकार ने वहां राम मंदिर बनाने के लिए ट्रस्ट बनाने की घोषणा कर दी।  इसने ध्वस्त बाबरी मस्जिद के स्थान पर मस्जिद बनाने के लिए धन्नीपुर, अयोध्या में एक वैकल्पिक स्थल भी आवंटित किया।

5 अगस्त 2020:

5 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण का भूमि पूजन किया। इसी के बाद से ही अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण जारी है।

20 जनवरी 2024 – राम मंदिर के गर्भगृह को 81 कलश, जिसमें अलग-अलग नदियों के जल इक्ट्ठा किए हैं उनसे पवित्र किया जाएगा. वास्तु शांति अनुष्ठान होगा। 

21 जनवरी 2024 – इस दिन यज्ञ विधि में विशेष पूजन और हवन के बीच राम लला का 125 कलशों से दिव्य स्नान होगा। 

22 जनवरी 2024 को प्राण प्रतिष्ठा होनी है।  

राम मंदिर

 

तो इतना सब कुछ जानने के बाद आप ये नहीं जानना चाहेंगे की हमारा राम मंदिर (Ram mandir) कितना भव्य और अद्भुद है, उससे पूर्ण होने में कितना समय लगेगा। क्या वो विश्व का सवसे बड़ा मंदिर है? और क्या एक बार काम प्रारम्भ होने के बाद कभी नहीं रुका, यदि रुका तो क्या क्या बिच में बाधाएँ आई? तो ये सब जानने के लिए क्लिक करे निचे दिए लिंक पर। 

वर्तमान राम मंदिर (Ram Mandir): कितना भव्य और अद्भुद है, कितना समय लगेगा, क्या विश्व का सबसे बड़ा मंदिर?

 

यदि आप जानना चाहते हैं की कहा से हुआ हमारे राम मंदिर का संघर्ष प्रारम्भ तो और क्या क्या कदम उठाये कब हुई थी मस्जिद में रामलला की मूर्ति प्रकट तो पढ़िए भाग 1 इस लिंक पर क्लिक कर के। 

क्या राम मंदिर (Ram Mandir) संघर्ष 1717 से शुरू हुआ? जाने पूरा सच!

 

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