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भोपाल पुलिस की यह कैसी कार्रवाई, कोरोना पेशेंट्स के मददगार पर ही ठोक दिया मुकदमा

एहसान किसी का वो रखते नहीं, मेरा भी चुका दिया।
जितना खाया था नमक मेरा, मेरे जख्मों पर लगा दिया।।

बाग फरहत अफ्जा निवासी जावेद खान और भोपाल पुलिस पर यह पंक्तियां आज बिल्कुल सटीक बैठ रही हैं। मामला कुछ यूं है कि जावेद खान बीते 3 सप्ताह से अपने ऑटो में कोरोना पेशेंट को नि:शुल्क अस्पताल लाने ले जाने का कार्य कर रहे हैं।

इसके लिए उन्होंने अपने ऑटो में ऑक्सीजन सिलेंडर तक लगवा कर रखा है। वहीं भोपाल सहित पूरे देश की मीडिया में जावेद के द्वारा किए जा रहे काम की सराहना हो रही है। तो भी पुलिस द्वारा शनिवार को उन्हें रोक कर उन पर धारा 144 के उल्लंघन और धारा 188 के तहत मामला दर्ज कर लिया गया।

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पेशेंट का सीटी स्कैन करवाने जा रहे थे जावेद :                                 
शनिवार को जावेद को पीपुल्स कोविड केयर में एडमिट एक व्यक्ति की बेटी ने फोन कर बताया कि उनके पिता का सीटी स्कैन होना है और वे काफी देर से एंबुलेंस का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन एंबुलेंस नहीं आ रही। ऐसे में जावेद अपना ऑटो लेकर बस स्टैंड से छोला और फिर भानपुर होते हुए पीपुल्स हॉस्पिटल जा रहे थे।

इसी दौरान भानपुर चौराहे पर बेरिकेटिंग कर चैकिंग कर रही छोला पुलिस ने वहां सभी वाहनों को रोक रखा था। जावेद ने उन्हें बताया कि उनका ऑटो इमरजेंसी ऑटो है। इसके बाद भी जावेद को वहां से निकलने की अनुमति नहीं दी गई, बल्कि उन पर धारा 144 का उल्लंघन करने और कोरोना कफ्र्यू का उल्लंधन करने धारा 188 के तहत मुकदमा दर्ज कर दिया गया।

मामला बिगड़ता देख बैकफुट पर आ गई पुलिस : 
बाद में पूरा मामला सोशल मीडिया पर एक वायरल होने के बाद और मीडिया में आने के बाद शाम तक पुलिस बैकफुट पर आ गई और जावेद पर लगाई गई धाराएं और केस वापिस ले लिए गए। लेकिन ऐसे में सवाल यह उठता है कि कोरोना कफर्यू के दौरान यदि किसी को एंबुलेंस नहीं मिलेगी तो क्या परिजन दूसरे वाहन से अपने पेशेंट को अस्पताल नहीं ले जा सकते हैं। यदि ले जा सकते हैं, तो पुलिस द्वारा की गई इस तरह की कार्रवाई कहां तक उचित है?

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