मध्य प्रदेश की आबादी लगभग 7.5 करोड़ के आसपास है और यहां के दो तिहाई यानि 5 करोड़ लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से नर्मदा जल पर निर्भर हैं। लेकिन पिछले कुछ दशकों में हमने नर्मदा के आसपास बड़े पैमाने पर रेत का खनन किया है और नर्मदा किनारे की मिट्टी भी बड़े पैमाने पर खोद कर निकाल दी है। इसी कारण नर्मदा के प्रवाह में बड़े पैमाने में बदलाव आ गया है।
पिछले कुछ समय से हम देख रहे हैं कि नर्मदा किनारे बसे शहरों में बार बार बाढ़ का आना और कभी सूखा पड़ना। यह सब इसी बदलाव के कारण हो रहे हैं। यह कहना है पर्यावरणविद आनंद पटेल (Anand Patel) का। आनंद पिछले कई वर्षों से पर्यावरण में हो रहे बदलावों पर अध्ययन कर रहे हैं। इसके अलावा मधुमक्खियों के संरक्षण पर भी महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं।
StackUmbrella ने उनसे मप्र में लगातार बनती सूखे की स्थिति और नर्मदा संरक्षण पर विस्तार से बात की।
विश्व की एकमात्र नदी जिसकी होती है परिक्रमा :
आनंद बताते हैं कि नर्मदा पूरी दुनिया में एकमात्र ऐसी नदी है, जिसकी प्रदक्षिणा (परिक्रमा) होती है। इस नदी का वैज्ञानिक, धार्मिक, आर्थिक, सामाजिक और पारिस्थितिक महत्व है। इस नदी का उद्गम अमरकंटक में मैकल पहाड़ियों से होता है। इस कारण इसे ‘मैकलसुता’ भी कहते हैं। यहां से नर्मदा लगभग 1080 किमी का सफर तय कर गुजरात के भड़ूच में जाकर अरब सागर में जाकर मिल जाती हैं।
इस दौरान यह नदी पूर्व से पश्चिम की ओर बहती है। भारत की अन्य नदियां पश्चिम से पूर्व की ओर बहती हैं। बकौल आनंद नर्मदा हमारी संस्कृति में ऐसी रची बसी है। जब हम बचपन में नर्मदा तटों पर खेला करते थे तो कोई यदि नर्मदा मैया को नर्मदा नदी कहता था, तो हम लोग उससे कहते थे। इन्हें नर्मदा नदी नहीं है। इन्हें नर्मदा जी कहो।
नर्मदा में मिलने वाली महाशीर हमारी राजकीय मछली :
आनंद नर्मदा में मिलने वाले जीवों के बारे में बताते हुए कहते हैं कि नर्मदा में एक समय में बड़े पैमाने पर मिलने वाली महाशीर मछली (Mahseer Fish) मप्र की राजकीय मछली है। खास बात यह है कि यह मछली बहती हुए जल में ही प्रजनन करती है। लेकिन लगातार इसको पकड़ने से इसकी संख्या नदी में लगातार कम हो रही है। यह मछलियां नदी के जल को स्वच्छ करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसके अलावा नर्मदा में बड़ी संख्या में मगरमच्छ भी पाए जाते हैं।
जंगलों की कटाई से ही पैदा हुई सूखे की स्थिति :
आनंद की मानें तो पिछले 5 दशक में नर्मदा किनारे बड़े पैमाने पर जंगल काटे गए हैं। इसके अलावा रेत और मिट्टी का भी बड़े पैमाने पर उत्खनन हुआ है। इसके कारण जलीय जैव विविधता में भी बड़े पैमाने पर अंतर आ गया है। वर्तमान में आनंद सरकार से नदी को नदी का घर और जंगल को जंगल का घर देने की मांग कर रहे हैं।
वे बताते हैं कि जंगल को बड़े पैमाने पर काटा गया है। इस जंगल या कैचमेंट से होकर वर्षा का जल नदी में आता है और इसी की वजह से जल में ठहराव भी आता है, लेकिन बड़े पैमाने पर की गई कटाई के कारण इसमें बड़े पैमाने पर बदलाव आ गया है।
धार्मिक आस्थाओं और खेती से लगातार बढ़ रहा प्रदूषण :
आनंद के मुताबिक नर्मदा में उद्योगों और कारखानों से तो प्रदूषण बढ़ा ही है। इसके दो मुख्य कारण धार्मिक आस्था और रासायनिक खेती भी है। नर्मदा किनारे बने खेतों में बड़े पैमाने पर रासायनिक खाद और कीटनाशक का उपयोग करना और हवन आदि या किसी भी धार्मिक अनुष्ठान के बाद सामग्री को नदी में डालना और नदी में सिक्के डालने से भी इसमें प्रदूषण बढ़ रहा है।
इसके अलावा नदी के पास वाहन धाेने, मवेशियों को नहलाने, कपड़े धाेने और नहाने से भी नदी में प्रदूषण का स्तर बढ़ रहा है। क्योंकि नर्मदा के किनारे बड़ी संख्या में लोग रहते हैं। इस कारण इस प्रदूषण का स्तर भी बढ़ जाता है। वहीं कई जगहों पर तो शहर के नाले और सीवेज सीधे नदी में छोड़े जा रहे हैं।
समस्या भी हम लोग समाधान भी हमें करना होगा :
आनंद बताते हैं कि नर्मदा में पैदा हुई सभी समस्याओं को हमने पैदा किया है। इसलिए इसका समाधान भी हमें करना होगा। नर्मदा के संरक्षण में सरकार की जिम्मेदारी तो अपनी जगह है। लेकिन हमारी जिम्मेदारी भी उतनी ही है। नर्मदा के संरक्षण में सबसे पहला उपाय है, लोगों के मन में इसके संरक्षण के प्रति जागरुकता। हमें पुरानी सारी कुरीतियों को छोड़ना होगा।
एक गौर करने वाली बात यह भी है कि लॉक डाउन के पीरियड में नर्मदा का जल बिल्कुल निर्मल हो गया है। पिछले लॉक डाउन से लेकर अब तक हम देखें तो इस दौरान नर्मदा में मानवीय हस्तक्षेप कम हुआ है। इस कारण नर्मदा बिल्कुल निर्मल हो गई हैं।
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