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पीपल, नीम और बरगद नर्मदा के भाई, इन्हीं से होगा नदी का संरक्षण 

नर्मदा जो पूरे मध्य प्रदेश के लोगों के जीवन का आधार है। आज अपने अस्तित्व को बचाने के लिए जूझ रही है। पिछले 5 दशकों में नर्मदा के किनारे स्थित वनों का बहुत अधिक दोहन हुआ है। साथ ही नदी के किनारों से रोजाना होता लाखों टन रेत के दोहन के कारण नदी का जलस्तर लगातार कम होता चला जा रहा है। इसके कारण नदी की वर्षा के जल को संग्रहित करने की क्षमता भी प्रभावित हुई है।

नर्मदा मप्र के 7.5 करोड़ लोगों के जीवन का आधार है। इसके दो मुख्य कारण है, पहला मप्र की लगभग एक तिहाई आबादी नर्मदा का पानी पीती है। वहीं इसके आसपास के जंगलाें के कारण ही मप्र को ऑक्सीजन की आपूर्ति हाेती है। साथ ही यहां के घने जंगल वर्षा के मेघों को आकर्षित करने के साथ ही कई तरह की जड़ी बूटियों का भी उत्पादन करते हैं।  
 
नर्मदा मप्र में अमरकंटक से अलीराजपुर तक 1077 किमी का सफर तय करती है। इस दौरान यह नदी प्रदेश के 16 जिलों से होकर गुजरती है। इस दौरान इन शहरों के सभी नालों और उद्योगों से निकलने वाला गंदा और अनुपचारित पानी नियमों को ताक पर रखकर सीधे नदी में छोड़ दिया जाता है।

इन कारणों से खतरे में नर्मदा का अस्तित्व : 
शोध बताते हैं कि इन सभी 16 जिलों से निकलने वाले सभी गंदे नालों को नदी में छोड़ा जा रहा है। वहीं नदी के आसपास वनों का दोहन भी बड़े पैमाने पर हो रहा है। पर्यावरणविद आनंद पटेल की मानें तो पिछले 5 दशकों में नदी के आसपास जंगलों का दोहन सबसे अधिक हुआ है। आनंद बताते हैं कि इस दौरान 50 प्रतिशत से अधिक घने जंगल और वन्य जीवन को नष्ट कर दिया गया है। 

नर्मदा के आसपास जंगलों को खत्म कर विकसित की गई कृषि भूमि ने भी नर्मदा को प्रदूषित करने में बड़ा योगदान दिया है। खेती में उपयोग होने वाली रासायनिक खाद और कीटनाशक कृषि भूमि से होते हुए भूजल में मिलते हैं और यही भूजल नदी में मिलने से नदी में खतरनाक कैमिकल्स की मात्रा लगातार बढ़ रही है। 

हम नदी की जल ग्रहण क्षमता को प्रभावित करने के साथ-साथ इसके आसपास के जंगलों को भी खत्म कर रहे हैं। वहीं आसपास के शहरों से सीवेज को नदी में छोड़ने से इसका पानी भी प्रदूषित हो रहा है। ऐसे में यदि इसके संरक्षण के उपाय नहीं किए गए, तो आने वाले कुछ वर्षों में नर्मदा भी यमुना की तरह भारत की सबसे अधिक प्रदूषित नदी बन सकती है।

नदियों किनारे रोपने होंगे पौधे : डॉ. तिवारी 
रिटायर्ड आईएफएस अधिकारी डॉ. एसपी तिवारी की मानें तो सबसे पहले नर्मदा को एक जीवित इकाई मानकर गंदा पानी और सीवेज सीधे नदी में छोड़ने के खिलाफ एक अभियान चलाना चाहिए। ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ते खतरे से निपटने के लिए नदी के आसपास बड़ी संख्या में पेड़ लगाने चाहिए। डॉ. तिवारी की मानें तो भोपाल का तापमान 45 से 35 डिग्री सेल्सियस तक लाने के लिए शहर में 5 करोड़ पेड़ लगाने होंगे।

डॉ. तिवारी बताते हैं कि जब पौधरोपण को एक बड़े अभियान के रूप में चलाया जाएगा। तभी शहरों का तापमान कम होगा और नदियों के सूखने का क्रम भी रुकेगा। उन्होंने बताया कि जंगल नदी की मां है। इसीलिए नर्मदा किनारे के 18 जिलों में जब तक हम जंगल विकसित नहीं करेंगे तब तक सब अंधेरे में ही रहेगा।

बरगद, पीपल और नीम को लगाया जाए : जाफरी 
जन अभियान परिषद के टास्क मैनेजर सैय्यद शाकिर अली जाफरी बताते हैं कि बरगद, पीपल और नीम नर्मदा के भाई हैं। इन्हीं तीनों पेड़ों से नदी का संरक्षण होगा। वे बताते हैं कि एक बरगद का पेड़ में लगभग 10 लाख लीटर पानी को संग्रहित कर सकता है। पीपल का पेड़ 8.5 लाख लीटर तक पानी को संग्रहित कर सकता है। इसके अलावा नीम के पेड़ में 5 से 6 लाख लीटर तक पानी संग्रहण की क्षमता होती है।

उनकी मानें तो नदी के सरंक्षण के लिए नदी के आसपास इन्हीं पेड़ों को लगाने की आवश्यकता है। इन्हीं पेड़ों की त्रिवेणी से नदी को बचाया जा सकता है। साथ ही अन्य नदियों का संरक्षण भी इन्हीं पेड़ों से किया जा सकता है।


मियावाकी तकनीक से विकसित किए जाएं जंगल : डॉ. रचना डेविड 
पर्यावरणविद आनन्द पटेल ने बताया कि नर्मदा किनारे किसान जैविक खेती की ओर अग्रसर हों। इससे नदी का प्रदूषण काफी हद तक रोक सकते हैं। वहीं नदी में सिक्के, प्रसाद, हवन सामग्री न डालने की बात पर जोर देते हैं। वहीं पर्यावरणविद डॉ. रचना डेविड ने जंगलों के विकास के लिए जापानी मियावाकी तकनीक का उपयोग करने पर जोर दिया।

डॉ. डेविड बताती हैं कि तकनीक के जरिए नर्मदा किनारे 3 साल में ही घना जंगल विकसित किया जा सकता है। जंगल विकसित होने से जमीन की उर्वरता बढ़ेगी और इससे किसानों को फायदा होगा।

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