Bilkis Bano Rape Case: बिलकिस बानो केस देश के काफी संवेदनशील मामलों में से एक केस हैं। वर्ष 2002 में हुआ बिलकिस बानो सामूहिक बलात्कार (Bilkis Bano Rape Case) करने वाले 11 दोषियों को 2008 में उम्रकैद की सजा मिली थी, जिसमें14 साल की सजा पाने के बाद उन 11 लोगों को 15 अगस्त को गोधरा जेल से रिहा कर दिया गया था। इन दोषियों की रिहाई का पूरे देशभऱ में खूब विरोध देखने को मिल रहा हैं। साथ ही राज्य सरकार ने उनकी रिहाई को सही ठहराया हैं। इसके बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट में पंहुच गया। सुप्रीम कोर्ट मे 17 अक्टूबर को गुजरात सरकार ने एक हलफनामा (लिखित शिकायती पत्र) दायर कर 11 लोगों की रिहाई का कारण बताया। जिसमें राज्य सरकार की ओर से कहा गया हैं, कि इस साल 13 मई को SC ने अपना फैसला दिया था, कि इन 11 दोषियों की रिहाई के लिए 1992 में बनाई गई पुरानी नीति लागू होगी. उस नीति के अंदर किसी भी अपराध के बाद 14 साल जेल के अंदर बिताने के बाद उम्र कैद से रिहा करने की व्यवस्था है. और यह सभी लोग भी जेल के अंदर 14 साल से अधिक रहे हैं, इसलिए सभी जरूरी कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करने के बाद ही इन सभी की रिहाई की गई. साथ ही इसके लिए केंद्र सरकार की अनुमति भी ली गई थी.
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Bilkis Bano Case 2002? क्या हैं बिलकिस बानो,
Bilkis Bano 2002 Case वह केस हैं जिसको याद करने पर ही लोगों की रूह काप जाती हैं।Bilkis bano अपने परिवार के साथ गोधरा ट्रेन में सफर कर रही थी, इसी समय ट्रेन में आग लगाने की घटना के बाद, Bilkis bano के साथ सांप्रदायिक हिंसा के दौरान बेरहमी के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया. उस समय बिलकिस 21 साल की थी और वह 5 महीने की गर्भवती थी. साथ ही उनके परिवार के 7 सदस्यों की भी दंगाइयों द्वारा निर्मम हत्या कर दी गई थी.
दोषियों की 15 अगस्त, 2022 को हुई रिहाई
Bilkis Bano Rape Case में गुजरात सरकार द्वारा 11 दोषियों कोरिहा कर दिया गया था. जिनकी रिहाई के बाद CPM नेता सुभाषिनी अली, सामाजिक कार्यकर्ता रूपरेखा वर्मा, और रेवती लाल, कांग्रेस की नेता महुआ मोइत्रा ने आदेश को रद्द करने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की. वहीं अब गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में रिहाई को लेकर जवाब दाखिल कर दिया है. गुजरात सरकार का कहना है कि यह सभी लोग जेल में 14 साल से अधिक समय बिता चुके हैं. 1992 के नियमों में उम्र कैद की सजा पाए कैदियों की 14 साल बाद रिहाई की बात कही गई थी. जबकि 2014 में लागू नए नियमों में जघन्य अपराध के दोषियों को इस छूट से वंचित किया गया है.
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