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भोपाल में वर्चुअली हुआ नाटक चौपट राजा का मंचन, गुरु चेले के किस्से ने लोगों को खूब गुदगुदाया 

कोरोना काल में बहुत से प्रतिबंधों के बीच वर्चुअल दुनिया एक नए उपयोगी साधन के रूप में उभर कर आई है। कोरोना के कारण जहां सरकार की बैठकें, प्रशासनिक कामकाज और बच्चों की पढ़ाई तक वर्चुअल हो गई है। ऐसे में रंगकर्म भला कहां पीछे रहने वाला है? इसी वर्चुअल दुनिया का लाभ उठाते हुए भोपाल की रंग त्रिवेणी साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समिति द्वारा ऑनलाइन नाट्य प्रस्तुति का आयोजन किया जा रहा है।

यह आयोजन संस्था के फेसबुक पेज और यूट्यूब चैनल पर शाम 7 बजे किया जा रहा है। इसी तारतम्य में पहले दिन ऑनलाइन नाटक हरिशचन्द्र के चौपट राजा का मंचन मंगल शाम 7 बजे किया गया। नाटक की प्रस्तुति मण्डप सांस्कृतिक एवं कला केन्द्र रीवा द्वारा दी गई। 

गोवर्धन को छोड़ चले जाते हैं गुरु : 
इस नाटक में एक नगरी की कहानी बताई गई है। जहां टके सेर भाजी टके सेर मिलती है। इस नगरी में एक ज्ञानी अपने शिष्यों के साथ पधारते हैं, लेकिन उस नगरी के हाल देखकर वहां निकल जाने का निर्णय ले लेते हैं, लेकिन एक शिष्य गोवर्धनदास यहां सब चीजें एक ही भाव में देखकर अन्धेर नगरी में रहना चाहता है।


लेकिन गाेवर्धनदास के गुरु उसको ऐसी जगह पर रहने के लिए मना कर देते हैं, जहां प्रतिभा का कोई मोल नहीं है। लेकिन गोवर्धनदास गुरु की बात नहीं मानता और गुरु वहां से रवाना होने से पहले उससे कहते हैं कि ठीक है यदि तुम्हारे जीवन में कभी मुसीबत आए, तो हमें याद कर लेना और वे उस नगरी से चले जाते है।

गलती करने पर बेकसूर को सजा देता था चौपट राजा : 
गुरु के जाने के बाद गोवर्धन दास अन्धेर नगरी में सुख से रहने लगता है। जिसके बाद एक दिन अन्धेर नगरी में एक बकरी दीवाल से दब कर मर जाती है, तो राजा मिस्त्री को सजा देने के लिए बुलाते हैं। लेकिन मिस्त्री किसी ओर पर आरोप मढ़ देता है, अखिरी में आरोप मढ़ते-मढ़ते कोतवाल पर आरोप आ जाता है कि उसकी वजह से बकरी दब कर मर गई।


बकरी मरने के कारण कोतवाल को फांसी की सजा सुनाई जाती है, तो मंत्री सोचते हैं कि यह मूर्ख राजा एक दिन सबको मरवा देगा। तो कोतवाल को बचाने के लिए मंत्री राजा से यह फैसला करवाते हैं कि जो व्यक्ति अंधेर नगरी में सबसे मोटा होगा। उसको कोतवाल के जगह फांसी दी जाएगी। तब सिपाही मोटे आदमी की तलाश में निकलते हैं।

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गुरु की सूझबूझ से बचती है सबकी जान : 
इस दौरान गोवर्धनदास खूब माल खा खा कर मोटा हो जाता है। सिपाही उसे पकड़ लाते हैं और उसको फांसी की सजा देने का फैसला किया जाता है। सर पर मुसीबत देख गोवर्धन दास को गुरु की याद आती है और वो अपनी अंतिम इच्छा में गुरे से मिलने की बात कहता है। गुरुजी आकर गोवर्धन दास की पूरी कहानी सुनते हैं और गोवर्धन के कान में कुछ कहकर फांसी के फंदे की तरफ दौड़ जाते हैं और कहते हैं कि पहले मैं फांसी के फंदे पर चढ़ूंगा।

वहीं गोवर्धनदास कहता है कि नहीं पहले मैं फांसी पर चढ़ूंगा। और दोनों आपस में लड़ने लगते हैं। यह देख सिपाही राजा को जाकर पूरा किस्सा बताता है। जिसके बाद चाैपट राजा आकर गुरुजी से पूछता है कि क्या कारण है कि आप पहले फांसी पर चढ़ना चाहते हैं।

तो गुरु बताते हैं कि अभी जो पहले फांसी चढ़ेगा उसको स्वर्ग में इंद्र का राज सिंहासन मिलेगा। क्योंकि राज सिंहासन अभी खाली पड़ा हुआ है। यह सुनकर राज कहता है मैं राजा हूं मैं पहले फांसी पर चढ़ूंगा और वो फांसी पर झूल जाता है। इस तरह राजा के मर जाने पर सब सुख की सांस लेते हैं। इस नाटक को भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने लिखा है और वर्तमान में निर्देशन विनोद मिश्र ने किया।

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