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बक्सवाहा जंगल बचाओ अभियान : ऑक्सीजन को तरस रहे देश में सवा दो लाख पेड़ काटे जाने की तैयारी

एक ओर देश कोरोना महामारी के कारण लगातार ऑक्सीजन की कमी से जूझ रहा है। वहीं दूसरी ओर छतरपुर स्थित बक्सवाहा के जंगलों में सवा दो लाख हरे भरे पेड़ों को काटने की तैयारी प्रदेश सरकार ने कर ली है। सरकार के इस फैसले के बाद जहां देश भर के पर्यावरण प्रेमियों में रोष है।

वहीं आम आदमी भी ऑक्सीजन का महत्व समझ कर इस महाविनाश को रोकने के लिए सोशल मीडिया पर #Save_Buxwaha_forest #बक्सवाहा_बचाओ_अभियान जैसे हैशटैग का उपयोग कर सरकर के इस फैसले का विरोध कर रहा है। वहीं 5 जून पर्यावरण दिवस के अवसर पर देश भर से पर्यावरणविद इस प्रोजेक्ट का विरोध करने के लिए छतरपुर स्थित बक्सवाहा के जंगलों की ओर कूच करेंगे।

जंगल में करीब 40 हजार पेड़ सागौन के हैं, इसके अलावा केम, पीपल, तेंदू, जामुन, बहेड़ा, अर्जुन जैसे औषधीय पेड़ भी हैं।


क्या है बक्सवाहा प्रोजेक्ट 
देश में अब तक का सबसे बड़ा हीरा भंडार पन्ना में मिला है। एक अनुमान के मुताबिक पन्ना में कुल 22 लाख कैरेट हीरे हैं। जिनमें से 13 लाख कैरेट निकाले जा चुके हैं, लेकिन एक सर्वे के अनुसार छतरपुर स्थित  बक्सवाहा में पन्ना से 15 गुना ज्यादा हीरे निकलने का अनुमान है। माना जा रहा है कि इस क्षेत्र में 3.42 करोड़ कैरेट हीरे हैं, जिसके लिए 382.131 हेक्टेयर जंगल को खत्म किया जाएगा।



 

इस स्थान का सर्वे सबसे पहले ऑस्ट्रेलिया की कंपनी रियो टिंटो ने शुरू किया था और कंपनी ने उस दौर में बिना अनुमति 800 से ज्यादा पेड़ काट डाले थे। गौरतलब है कि बंदर डायमंड प्रोजेक्ट के तहत इस स्थान का सर्वे 20 साल पहले शुरू हुआ था। 

पहले रियो टिंटो को दिया गया था खनन का काम : 
करीब एक दशक पहले ऑस्ट्रेलिया की खनन कंपनी रियो टिंटो ने यहां खुदाई के लिए आवेदन किया था। करीब दो साल बाद मई 2013 में कंपनी सर्वेक्षण के नाम पर छतरपुर आई थी और यहां कंपनी ने बिना अनुमति 800 से ज्यादा हरे भरे पेड़ों को काट दिया था। जिसके बाद वन विभाग ने कार्रवाई करते हुए तीनों ट्रेक्टर जप्त कर लिए थे।


मई 2017 में संशोधित प्रस्ताव पर पर्यावरण मंत्रालय के अंतिम फैसले से पहले ही रियो टिंटो ने यहां काम करने से इनकार कर दिया था। बताया जाता है कि पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने को लेकर रियो टिंटो ऑस्ट्रेलिया में ही ब्लैक लिस्टेड है।

आदित्य बिड़ला ग्रुप को मिला है प्रोजेक्ट : 
ठीक दो साल पहले प्रदेश सरकार ने खनन के लिए इस जंगल की नीलामी की प्रक्रिया शुरू की। इस बार आदित्य बिड़ला समूह की एस्सेल माइनिंग एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड ने सबसे ज्यादा बोली लगाई। जिसके बाद प्रदेश सरकार ने यह जमीन 50 साल के लिए एस्सेल माइनिंग को लीज पर दे दी।


प्रदेश सरकार ने जंगल में 62.64 हेक्टेयर जंगल को चिह्नित कर खदान बनाने के लिए दिए जाने का फैसला किया है, लेकिन कंपनी ने 382.131 हेक्टेयर का जंगल मांगा है। कंपनी का तर्क है कि बाकी 205 हेक्टेयर जमीन का उपयोग खदानों से निकले मलबे को डंप करने में किया जाएगा। कंपनी इस प्रोजेक्ट में 2500 करोड़ रुपए का निवेश करने जा रही है।





हीरे निकालने बदल दी रिपोर्ट, पांच साल में गायब हो गए वन्य प्राणी : 
यह क्षेत्र सघन वन से घिरा हुआ है। साथ ही यह क्षेत्र जैव विविधता से भी परिपूर्ण है। मई 2017 में पेश की गई जियोलॉजी एंड माइनिंग मप्र और रियोटिंटो कंपनी की रिपोर्ट में इस क्षेत्र में तेंदुआ, भालू, बारहसिंगा, हिरण, मोर सहित कई वन्य प्राणियों काे यहां मौजूद होने की बात कही गई थी। इतना ही नहीं इस क्षेत्र में लुप्त हो रहे गिद्ध भी हैं।


दिसंबर में प्रस्तुत की गई नई रिपोर्ट में डीएफओ और सीएफ छतरपुर ने यहां पर एक भी वन्य प्राणी के नहीं होने का दावा किया है। वहीं हीरे निकालने से इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में पेड़ काटे जा रहे हैं। वहीं यहां मौजूद वन्य प्राणियों के अस्तित्व पर भी संकट खड़ा हो जाएगा।

सर्वे में मिली थीं किंबरलाइट की चट्टानें : 



2000 से 2005 के बीच मप्र सरकार ने आस्ट्रेलियाई कंपनी रियोटिंटो को यहां हीरे की मौजूदगी पता लगाने के लिए एक सर्वे करने की जिम्मेदारी दी थी। सर्वे में टीम को नाले के किनारे किंबरलाइट पत्थर की चट्‌टान दिखाई दी। गौरतलब है कि हीरा किंबरलाइट की चट्‌टानों में मिलता है। जिसके बाद से ही यहां पर खनन करने के लिए प्रयास तेज हो गए थे। 

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