Bhopal: द्वारका पीठ के जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरुपानंद सरस्वती का रविवार दोपहर 3.30 बजे मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के परमहंसी आश्रम में निधन हो गया है। रविवार शाम 6 बजे से उनके पार्थिव शरीर को भक्तों के दर्शन के लिए आश्रम में रखा गया है। सोमवार 12 सिंतबर को दोपहर 2 बजे तक लोग उनके पार्थिव शरीर के दर्शन कर पाएंगे और शाम 4 बजे गुरुदेव को भू समाधि दी जाएगी।
स्वामी शंकराचार्य स्वामी स्वरुपाननंद सरस्वती महराज सनातन धर्म के प्रमुखों में से एक थे वे द्वारका एंव ज्योतिमर्ठ के शंकराचार्य हैं।
स्वरुपानंद सरस्वती का जन्म 2सितंबर 1924 को मध्य प्रदेश राज्य के सिवनी जिले के ग्राम दिघोरी में श्री धनपति उपाध्याय और श्रीमति गिरिजा देवी के यहां हुआ। स्वामी जी ने अपनी 9 वर्ष की आयु में घर छोड़ दिया था और काशी जा पहुंचे यहां उन्होंने ब्रह्मलीन श्री स्वामी करपात्री महाराज वेद वेदांग शास्त्रों की शिक्ष ली।
वे एक क्रांतिकारी साधू के रुप में भी प्रसिद्ध हुए 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा लगा तो वे स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े वे महज 19 साल के थे।
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कैसे दी जाती है भू- समाधि
जिस जगह पर संत को समाधि दी जानी है वहां पर एक बड़ा गड्ढ़ा खोदा जाता है, फिर उस बड़े गड्ढे में भू समाधि के लिए एक और गड्ढा खोदा जाता है। उसे गोबर से लीपकर शुद्ध किया जाता है। उस गडढे में हवन भी किया जाता है।
गड्ढे में नमक डाला जाता है ताकि शरीर को गलन मे आसानी हो, गड्ढे के अंदर दक्षिण दिशा की और एक छोटा गड्ढा खोदा जाता है। संत के पूरे शरीर पर घी लगाया जाता है जिससे छोटी चींटी या छोटे जीव उनके शरीर की और जल्दी आकर्षित हो सके और संत को पद्मासन या सिद्धासन की मुद्रा में समाधि में बिठाया जाता है। उनके साथ कुछ चीजें कमंडल, रुद्राक्ष की माला, दंड भी रखा जाता है।
ये पूरी प्रक्रिया मंत्र उच्चारण के साथ होती है।
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