Supreme Court: यह मुकदमा भगवान काशी विश्वनाथ मंदिर से सटी ज्ञानवापी मस्जिद में पूजा करने के अधिकार मांगने वाले याचिकाकर्ताओं द्वारा किया गया है।
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) एक मंदिर के “पुनर्स्थापन” के लिए मुकदमों की स्थिरता पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय (High Court) के आदेश को चुनौती देने वाली ज्ञानवापी मस्जिद समिति की याचिका पर सुनवाई करने के लिए सहमत हो गया है। अदालत ने याचिका को विवाद पर अन्य लंबित मामलों के साथ टैग कर दिया है। यानि अब राम जन्मभूमि मुकदमे के प्रकार यह भी सुप्रीम कोर्ट में दायर हो गया है जिसपे दलीले और सबूत पेश जायेंगे।
Supreme Court के न्यायमूर्ति के नाम जो करेंगे जाँच:
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ (D Y Chandrachud) और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला (J B Pardiwala) और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा (Manoj Misra) की पीठ ने कहा, “हम इसे मुख्य मामले के साथ टैग करेंगे।”
ये थे इलाहाबाद उच्च न्यायालय का शब्द:
इलाहाबाद उच्च न्यायालय (High Court) ने मुस्लिम पक्ष द्वारा दायर याचिकाओं के एक बैच को खारिज कर दिया था, जिसमें सिविल मुकदमे की स्थिरता पर सवाल उठाया गया था। अदालत के आदेश में कहा गया कि वाराणसी अदालत के समक्ष लंबित मंदिर के जीर्णोद्धार की मांग करने वाला एक दीवानी मुकदमा सुनवाई योग्य है। हाई कोर्ट (High Court) ने कहा था कि किसी विवादित स्थान का “धार्मिक चरित्र” केवल अदालत द्वारा तय किया जा सकता है।
मुकदमा उस स्थान पर एक मंदिर के जीर्णोद्धार की मांग करता है जहां वर्तमान में ज्ञानवापी मस्जिद है। हिंदू पक्ष के अनुसार, माना जाता है कि मस्जिद का निर्माण एक मंदिर के अवशेषों पर किया गया था, जो इसे धार्मिक संरचना का एक अभिन्न अंग बनाता है।
मुस्लिम समिति ने पूजा पर प्रतिबंधित लगाने पर तर्क दिया।
उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड (SCWB) और अन्य पक्षों के साथ ज्ञानवापी मस्जिद के प्रबंधन के लिए जिम्मेदार अंजुमन इंतजामिया मस्जिद समिति ने मुकदमे की स्थिरता के खिलाफ तर्क दिया था। उन्होंने तर्क दिया कि मुकदमे को पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 के तहत प्रतिबंधित किया गया था।
यह अधिनियम राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद स्थल को छोड़कर, पवित्र स्थलों के धार्मिक चरित्र में बदलाव पर रोक लगाता है जैसा कि भारत की स्वतंत्रता के दिन था।
उच्च न्यायालय (High Court) ने माना था कि जिला अदालत के समक्ष दायर मुकदमा पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 द्वारा वर्जित नहीं है, जो 15 अगस्त 1947 को मौजूद किसी स्थान के “धार्मिक चरित्र” के “रूपांतरण” पर रोक लगाता है।
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