वण्डोली है यही, यहीं पर
है समाधि सेनापति की।
महातीर्थ की यही वेदिका
यही अमर–रेखा स्मृति की
एक बार आलोकित कर हा
यहीं हुआ था सूर्य अस्त।
चला यहीं से तिमिर हो गया
अन्धकार–मय जग समस्त
आज यहीं इस सिद्ध पीठ पर
फूल चढ़ाने आया हूँ।
आज यहीं पावन समाधि पर
दीप जलाने आया हूँ
महाराणा प्रताप की शौर्य गाथा
Story of Maharana Pratap: बचपन में इस कविता को पढ़ा तब से अब तक ये कविता महाराणा प्रताप के व्यक्तित्व को समझने में काफी मददगार रही। कविता में महाराणा के स्वाभिमान का रोबीला वर्णन मुझे श्याम नारायण पांडेय का मुरीद बनाता है। राणा प्रताप ने सम्राट अकबर के साथ हल्दीघाटी में युद्ध लेकर अपने लिए मुसीबत खड़ी कर ली लेकिन इसी युद्ध ने इतिहास में राणा को महान तेजस्वी क्षत्रिय का दर्जा दिया।
कहते हैं मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप सिंह और मानसिंह के नेतृत्व वाली अकबर की विशाल सेना जब हल्दीघाटी में उतरी तो युद्ध में इंसान तो छोड़िए सदा-सर्वदा के लिए एक घोड़ा भी अमर हो गया। इसकी बानगी कविता रण बीच चौकड़ी में देखने को मिलती है जहां श्याम नारायण जी कहते हैं…
रण बीच चौकड़ी भर-भर कर
चेतक बन गया निराला था
राणा प्रताप के घोड़े से
पड़ गया हवा का पाला था।
जो तनिक हवा से बाग हिली
लेकर सवार उड़ जाता था
इन सभी बातों से आप सब समझ ही गए होंगे कि इतिहास की इस खास सेगमेंट में हम आपके लिए महाराणा प्रताप की गौरवशाली गाथा लेकर आए हैं। वैसे तो महापुरुषों को याद करने के लिए किसी तिथि या उपलक्ष्य की कोई आवश्यकता नहीं होती, बल्कि यह आजकल की सोशल मीडिया का रिवाज ही है कि हम उसे ही याद करते हैं जो ट्रेंड में होता है। खैर, आज हम आपको व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी या विकिपीडिया पर पसरे पक्षपाती ज्ञान से इतर महाराणा प्रताप की स्वाधीनता, स्वाभिमान और आत्मसम्मान की लड़ाई से परिचीत करवाएंगे।
तो आइए जानते हैं महाराणा प्रताप को…
Maharana Pratap का जन्म
भारत भूमि के वीरों का जब भी जिक्र होगा इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज मेवाड़ी राजा महाराणा प्रताप का नाम जरूर लिया जाएगा। उनका का जन्म सोलहवीं शताब्दी में 9 मई, 1540 को कुंभलगढ़ में हुआ था। उन्होंने मुगल सम्राट अकबर को रणभूमि में कई बार टक्कर दी।
वहीं, शक्तिशाली साम्राज्य के खिलाफ स्वर उठाने के कारण वो अपने परिवार के साथ जंगलों में दर-दर भटकने को विवश भी हुए। लेकिन उन्होंने न तो दुश्मनों के सामने हार मानी और न ही विषम परिस्थितियों के समक्ष पराजय स्वीकार की। यही कारण है कि उनके शौर्य और वीरता की कहानी आज भी सुनाई जाती है।
Maharana Pratap का परिवार
उनके पिता महाराणा उदयसिंह और माता जीवत कंवर या जयवंत कंवर थीं। वे राणा सांगा के पौत्र थे। महाराणा प्रताप को बचपन में सभी ‘कीका’ नाम से पुकारा करते थे। राजपूताना राज्यों में मेवाड़ का अपना एक विशिष्ट स्थान है जिसमें इतिहास के गौरव बाप्पा रावल, खुमाण प्रथम, महाराणा हम्मीर, महाराणा कुम्भा, महाराणा सांगा, उदयसिंह और वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप ने जन्म लिया है।
कुल देवता
महाराणा प्रताप उदयपुर, मेवाड़ में सिसोदिया राजवंश के राजा थे। उनके कुल देवता एकलिंग महादेव हैं। मेवाड़ के राणाओं के आराध्यदेव एकलिंग महादेव का मेवाड़ के इतिहास में बहुत महत्व है। एकलिंग महादेव का मंदिर उदयपुर में स्थित है। मेवाड़ के संस्थापक बाप्पा रावल ने 8वीं शताब्दी में इस मंदिर का निर्माण करवाया और एकलिंग की मूर्ति की प्रतिष्ठापना की थी।
महाराणा की प्रतिज्ञा
महाराणा प्रताप ने भगवान एकलिंगजी से सामने प्रतिज्ञा ली कि जिंदगीभर उनके मुख से अकबर के लिए सिर्फ तुर्क ही निकलेगा और वे कभी अकबर को अपना बादशाह नहीं मानेंगे। अकबर ने उन्हें समझाने के लिए चार बार शांति दूतों को अपना संदेशा लेकर भेजा था लेकिन महाराणा प्रताप ने अकबर के हर प्रस्ताव को नामंजूर कर दिया था।
Maharana Pratap और उनका घोड़ा
अब बात महाराणा प्रताप के सबसे प्रिय घोड़े ‘चेतक’ की। महाराणा जिस घोड़े पर बैठते थे वह घोड़ा दुनिया के सर्वश्रेष्ठ घोड़ों में से एक था। कहते हैं कि चेतक महाराणा को इतना प्रिय था कि उस पर कभी महाराणा प्रताप को चाबुक नहीं चलाना पड़ा।