3 दिसबंर को हर साल देश भारत के एक ऐसे क्रांतिकारी को याद करता है जिसने महज 18 साल की उम्र में देश के लिए जान दे दी। जी हां हम बात कर रहे हैं खुदी राम बोस को जिनका जन्म 3 दिसंबर 1889 को हुआ था और सिर्फ 18 साल की उम्र में खुदीराम हाथ में गीता लिए फांसी पर झूल गए थे ताकि देश की आजादी में अपना योगदान दे सकें।
कौन थे खुदीराम
वैसे तो सभी लोग खुदी राम को अच्छी तरह जानते हैं लेकिन उनके जीवन पर विस्तार से नजर डाली जाए तो पश्चिम बंगाल के भारतीय क्रांतिकारी खुदीराम बोस का जन्म 3 दिसंबर, 1889 को मिदनापुर जिले के हबीबपुर नामक गांव में हुआ था। वह उन लोगों में से एक थे जिन्होंने युवाओं से प्यार करना शुरू किया और देश के लिए अपना सब कुछ समर्पित कर दिया। किशोरावस्था की अवधि के बाद से, उन्होंने खुद को क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल कर लिया था।
किस जुर्म में मिली फांसी
खुदीराम ने एक अन्य क्रांतिकारी प्रफुल्ल चाकी के साथ, एक ब्रिटिश न्यायाधीश, मजिस्ट्रेट डगलस किंग्सफोर्ड की हत्या करने का प्रयास किया था, उन्होनें उनकी गाड़ी पर बम फेंक था, जिस पर उन्हें संदेह था कि वह आदमी अंदर है।
मजिस्ट्रेट किंग्सफोर्ड, एक अलग गाड़ी में बैठा था, और बम फेंकने के परिणामस्वरूप दो ब्रिटिश महिलाओं की मौत हो गई थी। गिरफ्तारी से पहले प्रफुल्ल ने खुद को गोली मार ली। और खुदीराम को गिरफ्तार कर लिया गया था
बाद में जब दो महिलाओं की हत्या के लिए मुकदमा चलाया गया, तो अंत में उन्हें अदालत ने मौत की सजा सुनाई। खुदीराम बंगाल के पहले स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे जिन्हें अंग्रेजों ने फांसी दी थी।
खुदीराम के जीवन से जुड़े अनसुने तथ्य
- फांसी के समय खुदीराम की उम्र 18 साल, 8 महीने और 11 दिन, 10 घंटे थी, जिससे वह भारत के सबसे युवा क्रांतिकारियों में से एक बन गए।
- आपको जानकर हैरानी होगी लेकिन सिर्फ 14 साल की उम्र में खुदीराम ने बॉम्ब बनाना सीख लिया था, भारत में ब्रिटिश राज को लेकर वे हमेशा से ही गुस्से में रहते थे और अग्रेजों को भारत का कट्टर दुश्मन मानते थे।
- बताया जाता है कि खुदीराम को पढने का भी काफी शौक था जब वह मरे तो उनके हाथ में हिंदूओं की सबसे प्रसिध्द किताब गीता थी।
- उस समय सरकार ने हमलावरों यानि खुदीराम पर एक हजार रुपये के इनाम की घोषणा की। उस सयम की सबसे ज्यादा रकम थी।