Bombay High Court : वैवाहिक विवादों में बच्चों को गुलाम या चल संपत्ति की तरह इस्तेमाल किए जाने पर गंभीर चिंता जताई। बॉम्बे हाई कोर्ट ने मंगलवार को एक महिला को अपने 15-वर्षीय बेटे के साथ थाईलैंड से भारत आने का निर्देश दिया ताकि वह अपने पिता और भाई-बहनों से मिल सके। अदालत ने कहा कि वैवाहिक विवादों में बच्चों को चल संपत्ति की तरह माना जाता है। यह देश में सबसे कड़वे मामले हैं।
‘बच्चे का कल्याण ज्यादा महत्वपूर्ण’
Bombay High Court न्यायमूर्ति आर डी धानुका और न्यायमूर्ति गौरी गोडसे की खंडपीठ ने कहा कि इस तरह के विवाद हमारे देश में सबसे कड़वी लड़ाई वाले मुकदमे हैं। Bombay High Court खंडपीठ ने कहा कि एक बच्चे का कल्याण उस पर माता-पिता के अधिकारों से ज्यादा महत्वपूर्ण है। अदालत एक व्यक्ति की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें उसने थाईलैंड में अपनी मां के साथ रहने वाले बेटे से मिलने की मांग की थी।
‘कड़वाहट से बेटे को लगा झटका’
Bombay High Court ने कहा कि लड़के को अपने माता-पिता के बीच कड़वाहट के कारण झटका लगा है और वह अपने पिता से मिलने का इच्छुक है। खंडपीठ ने कहा, हमारे देश में वैवाहिक विवाद सबसे तीखी लड़ाई वाली प्रतिकूल मुकदमेबाजी है। एक समय ऐसा आता है जब जोड़े झगड़े करते हैं, बच्चों को अपनी संपत्ति के रूप में देखते हैं।
याचिकाकर्ता का पत्नी पर आरोप
Bombay High Court ने आगे कहा, बच्चों को संपत्ति या संपत्ति के रूप में नहीं माना जा सकता है, जहां माता-पिता का अपने बच्चों के भविष्य और जीवन पर पूर्ण अधिकार होगा। बच्चे का कल्याण सर्वोपरि विचार है, न कि माता-पिता के कानूनी अधिकार।
विरक्त युगल के तीन बच्चे हैं। एक महिला के साथ थाईलैंड में है। जब दो अन्य एक बेटा और बेटी अपने पिता के साथ रहते हैं। दोनों बालिग हैं। व्यक्ति ने दावा किया कि सितंबर 2020 में एक पारिवारिक अदालत ने उसकी पत्नी को निर्देश दिया था कि वह उसे, लड़के के बड़े भाई बहनों और दादा-दादी को लड़के (मां के साथ रह रहा) तक पहुंच प्रदान करे, लेकिन उसे इसका पालन नहीं किया।
‘लड़के के विचारों का सम्मान जरूरी’
याचिका में कहा गया था कि Bombay High Court को महिला को गर्मी की छुट्टियों में बेटे को भारत लाने का निर्देश देना चाहिए। महिला के वकील ने अदालत से कहा कि वह अपने बेटे के साथ भारत आने को तैयार है, लेकिन पहले यह सुनिस्चित करने के लिए जरूरी आदेश दिया जाना चाहिए कि वह छुट्टी खत्म होते ही अपने बेटे के साथ सुरक्षित थाईलैंड लौट सके।
अदालत ने कहा कि लड़का अपने विचारों और अपनी संभावनाओं को लेकर बहुत स्पष्ट प्रतीत होता है। इसलिए उसे एक व्यक्ति के रूप में माना जाना चाहिए और उसके विचारों का सम्मान करना जरूरी है।
‘शिकायत नहीं कर पाएगा पति’
Bombay High Court ने आगे कहा, माता-पिता की जरूरतों और बच्चे के कल्याण के बीच संतुलन बनाना जरूरी है। इसलिए अगर लड़के के विचारों का उचित विचार नहीं किया गया तो यह उसके भविष्य के लिए हानिकारक हो सकता है।
Bombay High Court ने कहा, बच्चे के लिए विकास के लिए जरूरी है कि उसे अपने माता-पिता और भाई-बहन दोनों का साथ मिले। इसने महिला को निर्देश दिया कि वह अपने बेटे के साथ भारत आए ताकि वह अपने पिता और बड़े भाई-बहनों से मिल सके।
अदालत ने कहा कि पिता, महिला और उनके बेटे के भारत में होने के दौरान उनकी गिरफ्तारी या हिरासत के लिए कोई शिकायत नहीं करेगा या कोई कार्रवाई नहीं करेगा। अदालत ने निर्देश दिया कि संबंधित राज्य और केंद्रीय एजेंसियां यह सुनिश्चित करें कि बाद में उनकी थाईलैंड वापसी में कोई बाधा पैदा न हो।
पति की याचिका पर सुनवाई
Bombay High Court एक व्यक्ति की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसने थाईलैंड में अपनी मां के साथ रहने वाले अपने 15-वर्षीय बेटे से मिलने की अनुमति देने का अनुरोध किया था। अदालत ने कहा कि लड़के को अपने माता-पिता के बीच कड़वाहट भरे मुकदमे के कारण गहरा झटका लगा है और वह अपने पिता से मिलने का इच्छुक है।