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मलयालम न्यूज चैनल MediaOne पर केंद्र की पाबंदी SC ने की रद्द, जानिए क्या है मामला

Supreme Court

Supreme Court: मलयालम समाचार चैनल मीडियावन (MediaOne) को Supreme Court से बड़ी राहत मिली है। मीडियावन चैनल को सुरक्षा मंजूरी के अभाव में प्रसारण लाइसेंस को नवीनीकृत करने से इनकार करने के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के आदेश को सुप्रीम ने खारिज कर दिया है।

दरअसल MediaOne चैनल को गृह मंत्रालय द्वारा सुरक्षा मंजूरी नहीं मिलने की वजह से केंद्र सरकार ने उसके प्रसारण लाइसेंस का नवीनीकृत करने से इंकार कर दिया था। जिसको चुनौती देते हुए Supreme Court में याचिका दाखिल की गई थी।

Supreme Court: भारत के प्रधान न्यायाधीश (CJI) की अध्यक्षता वाली बेंच ने आज इस मामले पर अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि एक मजबूत लोकतंत्र के लिए एक स्वतंत्र प्रेस आवश्यक है। सरकार की नीतियों की आलोचना व अभिव्यक्ति की आजादी को प्रतिबंधित करने का आधार नहीं हो सकता। प्रेस की सोचने की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता है।

किसी मीडिया संगठन के आलोचनात्मक विचारों को प्रतिष्ठान विरोधी नहीं कहा जा सकता है। जब ऐसी रिपोर्ट लोगों और संस्थाओं के अधिकारों को प्रभावित करती हैं, तो केंद्र जांच रिपोर्ट के खिलाफ पूर्ण छूट का दावा नहीं कर सकता है। लोगों को उनके अधिकारों से वंचित करने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा को उठाया नहीं जा सकता।

क्या है मामला?

केरल के टीवी चैनल MediaOne का लाइसेंस जनवरी 2022 में रिन्यू होना था। केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्रालय ने 31 जनवरी 2022 को लाइसेंस रिन्यू करने से यह कहते हुए मना कर दिया कि गृह मंत्रालय ने चैनल को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताया है।

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इस चैनल के प्रमोटर्स मध्यमम ब्रॉडकास्टिंग लिमिटेड के संबंध इस्लामी संगठन जमात-ए-इस्लामी हिंद से होने की बात कही। इसके साथ ही चैनल ऑफ एयर कर दिया गया। सूचना प्रसारण मंत्रालय के फैसले के खिलाफ मीडिया वन चैनल ने फरवरी 2022 में केरल हाईकोर्ट में अपील की।

केरल हाईकोर्ट में क्या हुआ?

अपनी अपील में चैनल ने कहा कि गृह मंत्रालय की अनुमति की जरूरत सिर्फ पहली बार आवेदन करने पर होती है, लाइसेंस रिन्यू के समय नहीं। सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने हाईकोर्ट को बताया कि लाइसेंस रद्द करने का फैसला राष्ट्रीय सुरक्षा के आधार पर लिया गया है। 9 फरवरी 2022 को हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने चैनल पर लगे बैन को बरकरार रखा।

इसके बाद चैनल ने हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच में अपील की। 2 मार्च को डिवीजन बेंच ने भी सिंगल बेंच के फैसले को बरकरार रखा। यानी चैनल ऑफ एयर ही रहेगा।

क्या कहा हाईकोर्ट ने?

  • केरल हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने सुनवाई के दौरान कहा कि जब बात राज्य की सुरक्षा से जुड़ी हो तो सरकार बिना वजह बताए लाइसेंस रिन्यू करने से मना कर सकती है। सरकार को ऐसा करने की पूरी छूट है।
  • डिवीजन बेंच ने कहा कि उसके सामने पेश की गई फाइलों में इंटेलिजेंस ब्यूरो और अन्य जांच एजेंसियों की रिपोर्ट के आधार पर पब्लिक ऑर्डर या राज्य की सुरक्षा को प्रभावित करने वाले कुछ पहलू हैं।
  • बेंच ने कहा कि सरकार ने बताया है कि मध्यमम ब्रॉडकास्टिंग लिमिटेड के कुछ अवांछनीय ताकतों के साथ संबंध हैं, जो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बन सकते हैं। इस पर चैनल ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की।

सुप्रीम कोर्ट में क्या हुआ?

MediaOne चैनल के प्रमोटर्स ने Supreme Court में दलील दी कि उन्हें अपना पक्ष रखने का भी मौका नहीं दिया गया क्योंकि सरकार ने लाइसेंस रिन्यू न करने की वजहें सीलबंद लिफाफे में हाईकोर्ट को सौंपी थी। Supreme Court ने केरल हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी, जिससे चैनल का प्रसारण शुरू हो गया।

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

Supreme Court: चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने 134 पेज के फैसले में ये 5 अहम बातें कही-

  • स्वतंत्र और निडर मीडिया जरूरीः कोर्ट ने कहा कि सरकार की नीतियों के खिलाफ चैनल के आलोचनात्मक विचारों को सत्ता विरोधी नहीं कहा जा सकता, क्योंकि मजबूत लोकतंत्र के लिए स्वतंत्र और निडर प्रेस बहुत जरूरी है। प्रेस की ड्यूटी है कि वह सत्ता के सामने सच बोले और लोगों के सामने उन ठोस तथ्यों को पेश करे, जिनकी मदद से वे लोकतंत्र को सही दिशा में ले जाने वाले विकल्प चुन सकें। प्रेस की आजादी पर पाबंदी लोगों को सोचने पर मजबूर करती है।
  • सीलबंद लिफाफे से प्राकृतिक न्याय का उल्लंघनः जस्टिस हिमा कोहली ने कहा कि सुरक्षा कारणों से मंजूरी नहीं देने के कारण का खुलासा नहीं करने और केवल हाईकोर्ट को सीलबंद लिफाफे में जानकारी देने से प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन हुआ है। सीलबंद लिफाफे में जवाब देना याचिकाकर्ता को अंधेरे में रखने जैसा है।
  • सरकार हवा में राष्ट्रीय सुरक्षा का दावा नहीं कर सकतीः सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट में अपनाई गई सीलबंद प्रक्रिया की भी आलोचना की, जिसमें केंद्र सरकार ने सुरक्षा मंजूरी देने पर राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला दिया था। कोर्ट ने कहा, ‘हम मानते हैं कि कोर्ट्स के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा फ्रेज को डिफाइन करना अव्यावहारिक और नासमझी होगी, लेकिन हम ये भी मानते हैं कि राष्ट्रीय सुरक्षा के दावे हवा में नहीं किए जा सकते। इस तरह के अनुमान का समर्थन करने के लिए मटेरियल होना चाहिए।’
  • राष्ट्रीय सुरक्षा को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही सरकारः इस केस में नोट किया गया कि सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा को एक हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है। साथ ही इसके जिक्र भर से नागरिकों के अधिकार नहीं छीने जा सकते।
  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब जमात-ए-इस्लामी हिंद एक प्रतिबंधित संगठन नहीं है, तो राज्य के लिए यह तर्क देना ठीक नहीं है कि संगठन के साथ संबंध रखने वाले चैनल राज्य की सुरक्षा के लिए हानिकारक हैं। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा का इस्तेमाल नागरिकों को मिले कानूनी उपायों से दूर रखने के लिए टूल की तरह किया। ये कानून के शासन के लिए अच्छा नहीं है।

CBI और IB की सभी रिपोर्ट गुप्त नहीं

Supreme Court ने गृह मंत्रालय के उस तर्क को भी खारिज कर दिया जिसमें कहा गया था कि IB की रिपोर्ट का खुलासा नहीं किया जा सकता। बेंच ने कहा कि हम ऐसे तर्क स्वीकार नहीं कर सकते। CBI और IB जैसी एजेंसियों की सभी इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्ट को ब्लैंकेट इम्युनिटी नहीं दी जा सकती। यानी इन एजेंसियों की सारी रिपोर्ट सीलबंध लिफाफे में नहीं स्वीकार की जाएंगी।

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