Makar Sankranti 2024: जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है, तो इस संक्रांति को वास्तव में मकर संक्रांति कहा जाता है। मकर संक्रांति की तिथि को लेकर लोगों में एक बार फिर असमंजस की स्थिति है। Makar Sankrantiहर साल 14 जनवरी को मनाई जाती है, लेकिन इस साल ग्रहों की चाल के कारण यह तारीख 15 जनवरी हो गई है।
Makar Sankranti में बन रहे है कई शुभ मुहूर्त
इस वर्ष सूर्य 14 तारीख को दोपहर 2:44 बजे धनु राशि से Makar Sankranti में प्रवेश करता है। इसलिए यह पर्व 15 तारीख में उदया तिथि को ही मनाया जाता है। 15 जनवरी को मकर संक्रांति पर कई शुभ मुहूर्त हैं। इस दिन पौष शुक्ल पक्ष पंचमी तिथि है और शतभिषा नक्षत्र इसे विशेष बनाता है और इस दिन सुबह 11:31 बजे से दोपहर 2:14 बजे तक अभिजीत मुहूर्त मनाया जाता है। अमृत काल का मुहूर्त रात्रि 10:49 बजे एवं अमृत योग का अभ्यास सुबह 8:07 बजे तक।
दान और स्नान का Makar Sankranti पर विशेष महत्व है।
शास्त्रों में Makar Sankranti के दिन स्नान, ध्यान और दान का विशेष महत्व बताया गया है। पुराणों में Makar Sankranti को देवताओं का दिन बताया गया है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन किए गए दान से सैकड़ों गुना अधिक फल प्राप्त होता है।
देह त्याग के लिए चुना था भीष्म पितामाह ने मकर संक्रांति का दिन
कहा जाता है कि Makar Sankranti के दिन किया गया दान पुण्य 100 गुना होकर वापस मिलती है। इस दिन कम्बल और शुद्ध घी का दान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। महाभारत काल में भीष्म पितामह ने Makar Sankranti को अपनी देह त्यागने का निर्णय लिया था। मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से जाकर सागर में जा मिलीं थी।
Makar Sankranti की पौराणिक कथा
श्रीमद्भागवत और देवी पुराण के अनुसार शनि महाराज अपने पिता से वैर भाव रखते थे। सूर्य देव ने शनि महाराज की मां छाया को उनकी दूसरी पत्नी संज्ञा के पुत्र यमराज से भेद-भाव करते हुए देखा और क्रोधित होकर सूर्य देव ने संज्ञा और अपने पुत्र शनि को अपने से अलग कर दिया। इस कारण सूर्य देव को कुष्ठ रोग का श्राप शनि और छाया ने दे दिया।
यमराज को यह देखकर बहुत दुख हुआ कि उनके पिता सूर्यदेव कुष्ठ रोग से पीड़ित हैं। यमराज को सूर्यदेव को कुष्ठ रोग से मुक्त करने के लिए तपस्या की। हालाँकि, सूर्य को क्रोध आ गया और उन्होंने शनि महाराज के घर कुम्भ (जिसे शनि की राशि भी कहते है) को जला दिया। इस वजह से शनि और उनकी मां छाया को कष्ठ सहना पड़ा। जब यमराज ने देखा कि उनकी सौतेली माँ और छोटा भाई शनि संकट में हैं तो उन्होंने उनके कल्याण के लिए अपने पिता सूर्य को बहुत समझाया।
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तब सूर्य देव शनि के घर कुंभ पहुंचे। जब सूर्यदेव वहां पहुंचे तो देखा कि वहां कुछ भी नहीं है, सब कुछ जलकर नष्ट हो गया है। इसके बाद शनिदेव ने अपने पिता का स्वागत काले तिलों से किया। शनि देव के इस व्यवहार से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने उस दिन उन्हें एक नया घर दिया, जिसका नाम मकर रखा गया। इसके बाद शनिदेव दो राशियों कुंभ और मकर के स्वामी बने।
शनिदेव के इस व्यवहार से प्रसन्न होकर सूर्यदेव ने उन्हें यह भी बताया कि जब भी वह मकर संक्रांति के अवसर पर उनके घर आते हैं, तो उनका घर धन-धान्य से भर जाता है। उन्हें किसी चीज की जरूरत नहीं पड़ेगी। उन्होंने यह भी कहा कि जो लोग Makar Sankranti के अवसर पर मुझे काले तिल चढ़ाएंगे, उनके जीवन में सुख और समृद्धि आएगी। इसलिए मकर संक्रांति के अवसर पर सूर्य देव की पूजा करते समय काले तिल का प्रयोग करने से व्यक्ति के घर में धन-धान्य की कमी नहीं होगी।