Iron Pillar of Delhi Qutub Complex: दिल्ली की कुतुब मीनार यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों की सूची में शामिल है। यहां पहुंचते ही पर्यटकों पूरी तरह से मंत्रमुग्ध हो जाते हैं।
वहीं कुतुब मीनार के परिसर में लगा लौह स्तंभ (Iron Pillar) भी किसी चमत्कार से कम नहीं है। यह लोहे का खंभा सदियों से खुले आसमान के नीचे खड़ा है, लेकिन इस पर आज तक कोई जंग नहीं लगी है।
लौह स्तंभ की ऊंचाई 7.21 मीटर है और यह जमीन में 3 फुट 8 इंच नीचे तक गड़ा हुआ है। इसका वजन 6000 हजार किलो से ज्यादा है।
इतिहासकारों का मत है कि इसे गर्म लोहे के 20-30 किलो के टुकड़ों को जोड़ कर बनाया गया है। हालांकि लोगों और इतिहासकारों के लिए यह एक पहेली है कि लोहे के टुकड़ों से बने इस खंभे (Iron Pillar) में कोई जोड़ क्यों नहीं दिखता है।
लोगों का क्या है कहना?
इस स्तंभ के बारे में एक सवाल हमेशा से उठता रहा है कि इस लौह स्तंभ (Iron Pillar) में आज तक जंग क्यों नहीं लगी? लंबे वक्त तक लोग यह मानते रहे हैं कि इस स्तंभ (Iron Pillar) को किसी ऐसी धातु से बनाया गया है,जो कि पृथ्वी की नहीं है। हालांकि यह संतोषजनक उत्तर नहीं हो सकता है।
वैज्ञानिक शोध के मायने
हालांकि इस स्तंभ (Iron Pillar) में जंग न लगने की वजह तलाशने की वैज्ञानिक कोशिश भी हुई है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक 1998 में IIT कानपुर के प्रोफेसर डॉ. सुब्रहा्ण्यम ने इस राज का पता लगाने का प्रयास किया।
उन्होंने अपनी रिसर्च में यह पाया कि लौह स्तंभ (Iron Pillar) को बनाते वक्त पिघले हुए कच्चे लोहे में फास्फोरस को मिलाया गया। इसी कारण से इसमें आज तक जंग नहीं लग पाई है। बता दें कि फास्फोरस से जंग लगी चीजों को साफ किया जाता है, क्योंकि जंग इसमें घुल जाती है।
खड़ा हुआ नया सवाल
हालांकि डॉ. आर. सुब्रहण्यम भी इस लौह स्तंभ (Iron Pillar) को लेकर जारी अटकलों को खत्म नहीं कर सकी, बल्कि इसने एक नया सवाल खड़ा कर दिया। दरअसल फास्फोरस की खोज 1669 ईस्वी में हैम्बुर्ग के व्यापारी हेनिंग ब्रांड ने की थी।
इस स्तंभ का निर्माण उससे करीब 1200 साल पहले किया गया। अब यही माना जा सकता है कि प्राचीन भारत के लोगों को फास्फोरस की जानकारी थी। हालांकि अगर ऐसा था तो इतिहासकारों ने इसका जिक्र क्यों नहीं किया?
रिसर्च में पाया गया है कि इस स्तंभ की संरचना में सुरक्षात्मक परत लगी है। मीसावाइट नाम की यह परत एक लौह ऑक्सिहाइड्रॉक्साइड है। यह दरअसल धातु और जंग के बीच इटरफेस का काम करती है। (Iron Pillar)
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कुछ इतिहासकार यह तर्क देते हैं कि इस स्तंभ (Iron Pillar) को बनाने में वूज स्टील का उपयोग किया गया है। इसमें कार्बन के साथ-साथ टंगस्टन और वैनेडियम भी पाया जाता है। इससे जंग लगना बहुत कम किया जा सकता है।
इस लौह स्तंभ पर जंग क्यों नहीं लगता, इसका कारण जानने के लिए इतिहासकार और वैज्ञानिक प्रयास करते रहेंगे, लेकिन एक बात तय है कि प्राचीन भारत के लोग धातुओं के संबंध में कुछ ऐसा जानते थे, जो आज भी लोगों को पता नहीं है। (Iron Pillar)
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