Alluri Sitaram Raju story: उमेश पाल हत्याकांड में डेढ़ महीने से फरार चल रहा माफिया अतीक अहमद का बेटा असद गुरुवार (13 अप्रैल) को झांसी में यूपी एसटीएफ द्वारा मुठभेड़ में मारा गया है। उसके साथ ही शूटर गुलाम भी मारा गया है। गौरतलब है कि दोनों ने दिल्ली में भी कई दिनों तक पनाह ली थी। उमेश पाल हत्याकांड के आरोपी असद अहमद व शूटर गुलाम को दिल्ली में एनकाउंटर होने का डर सताता रहा था। यही वजह थी कि असद अहमद हमेशा तीन से चार हथियारों के साथ रहता था।
माफिया डॉन अतीक अहमद के बेटे असद अहमद के एनकाउंटर में मारे जाने के बाद इस पर अपने-अपने तरीके से बहस चल रही है। दुनिया में एनकाउंटर के मामले भारत में ही शुरू कहे जाते हैं। पहली बार अधिकारिक रिकॉर्डेड एनकाउंटर हैदराबाद और ब्रिटिश फौजों ने किया और इसे दर्ज भी किया। इसके बाद आजादी से पहले फिर हैदराबाद निजाम की पुलिस को एनकाउंटर करने के अधिकार ही मिल गए।
वर्ष 1922 में हैदराबाद रियासत की पुलिस ने जिस शख्स का एनकाउंटर किया था, वह आदिवासियों के हीरो थे और उस समय वहां चर्चित हुए रंपा विद्रोह के नायक, जिसने अंग्रेजों के साथ हैदराबाद निजाम की भी नींदें उड़ा दी थीं। पिछले साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस पहले अधिकारिक एनकाउंटर में शहीद हुए अल्लूरी सीताराम राजू की 30 फीट ऊंची प्रतिमा का अनावरण किया।
आंध्र प्रदेश देशभक्तों की भूमि
प्रधानमंत्री ने कहा कि आंध्र प्रदेश वीरों और देशभक्तों की भूमि है। महान स्वतंत्रता सेनानियों से लेकर ब्रिटिश राज के खिलाफ खड़े नेताओं तक ने स्वतंत्रता संग्राम में बहुत योगदान दिया है। यहां पिंगली वेंकैया जैसे स्वतंत्रता नायक थे, जिन्होंने देश का झंडा तैयार किया। यह कन्नगंती हनुमन्थु, कंदुकुरी वीरसलिंगम पंतुलु और पोट्टी श्रीरामुलु जैसे नायकों की भूमि है।
अंग्रेजों से लड़े थे Alluri
बता दें कि 4 जुलाई 1897 को जन्मे Alluri सीताराम राजू को पूर्वी घाट क्षेत्र में आदिवासी समुदायों के हितों की रक्षा के लिए अंग्रेजों के खिलाफ उनकी लड़ाई के लिए याद किया जाता है। उन्होंने रम्पा विद्रोह का नेतृत्व किया था, जिसे 1922 में शुरू किया गया था। उन्हें स्थानीय लोगों द्वारा “मन्यम वीरुडु” (जंगलों का नायक) कहा जाता है।
Alluri के बारे में जानने से पहले ये भी जान लेते हैं कि किस तरह देश की आजादी के आसपास जब हैदराबाद रियासत में अलग तेलंगाना के लिए संघर्ष शुरू हुआ तो हैदराबाद राज्य की पुलिस को खुला आदेश था कि तेलंगाना के समर्थक क्रांतिकारियों का चुन-चुनकर सफाया कर दिया जाए। इसमें बहुत से बेगुनाहों का भी कत्लेआम हुआ। बताया जाता है 1946 से 1951 तक चले इन एनकाउंटर्स में 3000 से ज्यादा लोग मार दिए गए।
जानिए कौन थे Alluri
Alluri ने पिछली सदी के दूसरे दशक में अंग्रेजी राज के खिलाफ ऐसी लड़ाई लड़ी थी, जिसने अंग्रेजों के होश फाख्ता कर दिये थे। वह गुरिल्ला युद्ध के विशेषज्ञ थे। कम उम्र में ही उनके अंदर एक नेतृत्व क्षमता थी।
वह आंध्र प्रदेश के गोदावरी क्षेत्र में रहने वाले आदिवासियों के नेता बने।
वह तब 20 के युवक ही रहे होंगे। संन्यास लेकर साधू बन चुके थे लेकिन उनकी आंखों में गजब का तेज था तो शरीर में बला की तेजी और फुर्ती। असंभव को संभव में बदलने वाले। जब वो बोलते थे तो समां बंध जाता था। ये पूरा इलाका तब हैदराबाद रियासत में था। हैदराबाद निजाम की पुलिस को खासे अधिकार मिले हुए थे।
संपन्न परिवार के Alluri
Alluri अच्छे परिवार से थे। उनके पिता फोटोग्राफर थे। जो उस जमाने और तकनीक के लिहाज से एक नया और अनोखा काम था। चाचा तहसीलदार। हाईस्कूल में ही घोड़े की सवारी करते हुए कब वह ग्रुप के नेता बन चुके थे, खुद उन्हें भी पता नहीं लगा।
वह जब विशाखापट्टनम पढ़ने गए, तभी एक लड़की सीता से उन्हें प्यार हो गया। दुर्भाग्य से सीता का निधन हो गया और Alluri का दिल टूट गया। उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी। हालांकि बताते हैं कि पढ़ाई में वह असाधारण स्टूडेंट थे। संस्कृत, हिंदी और अंग्रेजी के विद्वान थे। लेकिन पढ़ाई छोड़ने के बाद उनका ध्यान ज्योतिष, हस्तरेखा और घुड़सवारी में रमने लगा। जिस लड़की से उन्होंने प्यार किया था, उसका नाम अपने नाम से जोड़ लिया।
Alluri 18 की उम्र में संन्यासी
Alluri 18 साल की उम्र में संन्यासी बन गए। इसी दौरान अंग्रेजों ने जब गोदावरी इलाके के जंगलों में जब आदिवासियों की खेती पर पाबंदी लगाकर खुद बड़े पैमाने पर वन काटना शुरू किया तो उन्होंने आदिवासियों को इकट्ठा करना शुरू किया। वह बहुत विचलित थे कि अंग्रेजों की मनमानी से आदिवासी भूखे मरने की स्थिति में पहुंच रहे हैं।
रम्पा विद्रोही Alluri
तब 1922 के आसपास Alluri ने जो विद्रोह शुरू किया, उसको रम्पा विद्रोह कहा गया। हालांकि इसी नाम का एक कुछ साल पहले भी हो चुका था और उसकी यादें ताजा थीं। रम्पा गोदावरी जिले में एक पहाड़ी अंचल का नाम था। Alluri ने आदिवासियों को शस्त्रकला में दक्ष किया।
आदिवासी मानते थे चमत्कारी
आदिवासी उन्हें भगवान मानते थे। ये माना जाता था कि वह चमत्कारिक पुरुष हैं। उनके पास कुछ ऐसी शक्तियां हैं, जो मानवों में नहीं होतीं। Alluri की अगुवाई में गुरिल्ला युद्ध 700 वर्ग किलोमीटर के इलाके में फैल गया। इस इलाके में 28000 से ज्यादा आदिवासी रहते थे। उन्होंने इलाके से पुलिस थानों पर हमला करना शुरू किया।
थानों पर गुरिल्ला हमला
हमले के दौरान वह थाने का शस्त्रागार लूट लेते थे। फिर जाते समय लूट का विवरण देने वाली चिट्टी जरूर छेड़ जाते थे। कई पुलिस वाले भी इस दौरान मारे गए। अंग्रेजों ने उन्हें पकड़ने के लिए अपना सबकुछ झोंक दिया। रिकार्ड बताते हैं कि पुलिस वाले उन्हें तलाशने के लिए जाते थे और वह नहीं मिलते थे।
निजाम-अंग्रेजों ने खर्चे 40 लाख
दो सालों में अंग्रेजों और हैदराबाद रियासत ने उन्हें ढूंढने के अभियान में 40 लाख रुपए खर्च कर दिये थे। वह अबूझ पहेली बने हुए थे। घने जंगलों में वह अपनी सेना के साथ कहां रहते हैं किसी को पता नहीं चलता था। ठिकाने बहुत तेजी से बदलते रहते थे।
25 की उम्र में एनकाउंटर
खैर अंग्रेजों ने उन्हें चिंतापाले के जंगलों में ढूंढ निकाला। Alluri को गिरफ्तार कर लिया गया। उस समय उनकी उम्र 24-25 साल की ही थी लेकिन पूरे दक्षिण भारत में वह किवंदती बन चुके थे। उनकी गाथाएं सुनाई जाने लगी थीं। जब अंग्रेजों ने उन्हें पकड़ा तो वह हमेशा की तरह निर्भीक थे।
शासक वर्ग के खिलाफ उनके विद्रोह के चलते ब्रिटिश और हैदराबाद पुलिस ने उन्हें 7 मई, 1924 को गिरफ्तार कर लिया। फिर गोली मार दी गई। Alluri के साथ इस मुठभेड़ को एनकाउंटर के तौर पर हैदराबाद पुलिस द्वारा बकायदा दर्ज किया गया।