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बक्सवाहा जंगल बचाओ अभियान : 15 गांवों के लोग ही खनन के पक्ष में, इन्हें ढाल बनाकर आम लोगों की आवाज दबा रहा शासन 

कपिल तुलसानी।
राजधानी भोपाल से लगभग 278 किमी की दूरी पर स्थित बक्सवाहा आजादी के बाद से ही विकास को तरस रहा है। जब StackUmbrella ने यहां पर पहुंचकर वास्तविक स्थिति का जानी तो पता लगा कि यहां के लोगों के लिए जीवन यापन की सामग्री जुटाना ही विकास है। दरअसल बक्सवाहा छतरपुर जिले के अंतर्गत आने वाला एक ब्लाॅक है और यहां की आबादी लगभग 90 हजार है। 

5 जून विश्व पर्यावरण दिवस (World environment day) के दिन यहां पहुंचने पर हमें पता लगा कि यहां होने वाले खनन का विरोध बक्सवाहा की 90 हजार की आबादी कर रही है। केवल खनन क्षेत्र के आसपास बसे 15 गांव के लोग ही इसके पक्ष में हैं। बीरमपुरा, कसेरा, तिलई, जगारा, हरदुआ, हिरदयपुरा, सगोरिया, जरा निमानी, मझोरा, गड़ोई, शहपुरा, तेरियामार और दरदोनिया के लगभग परिवार खनन के पक्ष में हैं।

अब शासन इन्हीं लोगों को ढाल बनाकर यहां पर पर्यावरण प्रेमियों और पत्रकारों को नहीं पहुंचने देना चाहता है। ताकि यहां खनन शुरू करने में किसी तरह की परेशानी न हो। 

15 साल पहले न बिजली थी, न मिलता था साफ पानी :
इस दौरान हमने बक्सवाहा के मामले को करीब से जानने की कोशिश की। अपनी तफ्तीश में हमें यह जानकारी मिली की। बक्सवाहा में हीरे के खनन का काम लगभग 15 साल पहले ही शुरू हो गया था। उस दौरान बक्सवाहा ब्लॉक के अंतर्गत आने वाले 15 ग्रामों की स्थिति बहुत ही दयनीय थी।

(रियो टिंटो द्वारा जंगल में निर्मित एक इमारत यहीं पर हीरों को तराशा जाता था, अब इसे जल्दी ही एस्सेल माइनिंग के हवाले कर दिया जाएगा।)

दरअसल देश आजाद होने के बाद से ही सरकारों ने यहां विकास को लेकर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया। 15 साल पहले तक इस क्षेत्र में न तो नियमित बिजली थी और न ही पेय जल की उचित व्यवस्था थी। इतना ही नहीं शिक्षा के लिए भी लोगों को छतरपुर या सागर का रुखा करना पड़ता था। लेकिन 2005 में यह स्थिति अचानक से बदलना शुरू हुई।

लगभग 2 दशक पहले 2001-02 में ऑस्ट्रेलिया की कंपनी रियो टिंटो (Rio Tinto) यहां हीरों की खोज में आई। उस दौरान यहां घना जंगल था। कंपनी को अपनी खोज में यहां के बरसाती नाले के तट में किंबरलाइट चट्टानों के टुकड़े मिले और हीरा ज्यादातर इन्हीं चट्‌टानों में पाया जाता है। जिसके बाद लगभग 3 साल बाद कंपनी 2005 ने यहां आकर डेरा डाल दिया। 

2338 एकड़ में खनन करना चाहती थी रियो टिंटो : 
इस दौरान कंपनी ने बिना अनुमति सैकड़ों पेड़ों को काट दिया। रिकार्ड के मुताबिक इस दौरान लगभग 800 पेड़ों की बलि दी गई, लेकिन यहां के स्थानीय लोग इसकी संख्या कहीं अधिक बताते हैं। इस दौरान कंपनी ने लगभग 935 हेक्टेयर क्षेत्र या 2338 एकड़ जगह खनन के लिए लीज पर मांगी थी। इस जगह को लीज पर लेने से पहले कंपनी ने हीरे की खोज के लिए प्रोसपेक्टिंग लीज की अनुमति प्रशासन से मांगी।

जिसके मिलते ही कंपनी ने यहां पर हीरे की खोज शुरू की और इस दौरान यहां के सैकड़ाें लोगों को रोजगार दिया गया। जिन लोगों को रोजगार मिला। वे बक्सवाहा से 5 से 15 किमी के दायरे में बसे 15 गांवों के लोग थे।

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कंपनी ने सीएसआर के तहत किया काम लोगों ने समझा विकास : 
रियो टिंटो ने इस दौरान हजारों करोड़ के हीरे का खनन किया और कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसबिलिटी (CSR) के तहत यहां पर नियमित बिजली और पानी इस क्षेत्र में देना शुरू किया। साथ प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और एक स्कूल की व्च्यवस्था भी लोगों के लिए की। कंपनी को यह सारे काम नियमों के कारण करने थे, लेकिन लोगों ने इन्हें विकास समझ लिया।

इस दौरान कंपनी यहां लगातार पेड़ों को काटती रही, जिसका समय समय पर पर्यावरण प्रेमी विरोध करते रहे। लगातार बढ़ते विरोध के कारण कंपनी 2016 में यहां पर खनन खत्म कर वापिस ऑस्ट्रेलिया लौट गई। वापिस लौटते समय नियमित कर्मचारियों को लाखों रुपए का भुगतान भी किया। जिसके कारण यहां के 400 परिवार यहां फिर से खनन का कार्य शुरू करवाने के पक्ष में हैं।

15 लाख लोगों को होगा पेयजल संकट : 
रियो टिंटो के जाने के बाद मप्र सरकार यहां फिर से खनन करवाने में जुट गई। अब की बार टेंडर आदित्य बिड़ला ग्रुप की एस्सेल माइनिंग एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड (Essel mining & industries ltd) को मिला। कंपनी यहां के 382.131 हेक्टेयर या 955.32 एकड़ जंगल में माइनिंग की अनुमति मांगी है। जिसका पर्यावरण प्रेमियों द्वारा विरोध किया जा रहा है। बताया जा रहा है कि इस दौरान लगभग 2.5 लाख पेड़ों को काटा जाएगा, लेकिन स्थानीय लोग पेड़ों की संख्या को 10 लाख से अधिक बता रहे हैं।

(बक्सवाहा ब्लॉक के आगे बसे ग्रामीण क्षेत्र।)

स्थानीय लोगों का तर्क है कि यदि खनन शुरू हुआ तो केवल बिड़ला ग्रुप को और 15 गांवों के 400 परिवारों को इसका लाभ होगा, लेकिन इसका नुकसान स्थाई होगा और इसके कारण लगभग 15 लाख लोग साफ पानी और स्वच्छ पर्यावरण से वंचित हो जाएंगे।

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