Karva Chauth का त्योहार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। करवा चौथ के दिन पूरे दिन व्रत रखने की परंपरा है जिसे करवा चौथ व्रत के नाम से जाना जाता है।
इस दिन, विवाहित महिलाएं अपने पतियों के जीवन की सुरक्षा और दीर्घायु सुनिश्चित करने के लिए सूर्योदय से चंद्रोदय तक सख्त उपवास रखती हैं।
Karva Chauth: चंद्रोदय और परंपराएँ
शाम को चंद्रमा निकलने के बाद ही महिलाएं अपना व्रत पूरा करती हैं। इस व्रत से जुड़ी कई अन्य मान्यताएं और परंपराएं भी हैं, जो इसे खास बनाती हैं। करवा चौथ हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, गुजरात और राजस्थान आदि राज्यों में मनाया जाता है।
आइए जानते हैं इस बार यह व्रत कब रखा जाएगा और करवा चौथ पर चंद्रमा कब निकलेगा।
कब मनाया जाएगा करवा चौथ?
- कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि प्रारम्भ: 31 अक्टूबर, मंगलवार, रात्रि 09 बजकर 30 मिनट से।
- कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि समाप्त: 1 नवंबर, बुधवार, रात्रि 09 बजकर 19 मिनट पर।
- चतुर्थी तिथि का सूर्योदय और चंद्रोदय दोनों 1 नवंबर को होगा, इसलिए करवा चौथ का व्रत इसी दिन मनाया जाएगा।
चंद्रोदय का समय
पंचांग के अनुसार इस बार Karva Chauth 1 नवंबर यानी बुधवार को है. तो इस हिसाब से चंद्रोदय का समय रात 08:15 बजे होगा. ऐसे में अलग-अलग स्थानों पर चंद्रोदय के समय में 5 से 7 मिनट का अंतर हो सकता है।
करवा चौथ कथा
इस व्रत की महत्वपूर्ण कहानी है। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार, देवी पार्वती ने पहले “Karva Chauth ” व्रत का पालन किया था, इससे वह अपने पति, भगवान शिव, के लिए अखंड सौभाग्य की प्राप्ति करने में सफल हुई थी। इस व्रत के माध्यम से, सुहागिनें अपने पति की दीर्घायु की कामना करती हैं और देवी पार्वती और भगवान शिव की पूजा करती हैं।
इसके अलावा, एक पुराने कथा के अनुसार, देवताओं और राक्षसों के बीच एक भयानक युद्ध हुआ था। इस संघर्ष में देवताओं को लाखों उपायों के बावजूद भी सफलता नहीं मिल रही थी, और राक्षस उन पर विजय प्राप्त कर रहे थे। तब ब्रह्मदेव ने सभी देवताओं की पत्नियों से “Karva Chauth ” व्रत करने की सलाह दी। इस कथा का जिक्र महाभारत और कई अन्य धार्मिक ग्रंथों में भी मिलता है।
Karva Chauth: मिट्टी का महत्व
करवा शब्द का अर्थ मिट्टी का बर्तन होता है। चौथ का शाब्दिक अर्थ चतुर्थी है। इस दिन विवाहित महिलाएं पति की लंबी उम्र और सफलता की मनोकामना पूरी होने के लिए व्रत रखती हैं। वहीं, अविवाहित युवतियां सुयोग्य वर की कामना के लिए इस व्रत को धारण करती हैं।
इस दिन शाम को चंद्रमा के दर्शन करने के बाद पति, पत्नी को मिट्टी के बर्तन (करवा) से पानी पिलाकर व्रत खुलवाता है। आज हम आपको बताते हैं कि इसमें करवा क्यों महत्वपूर्ण है।
पंच तत्वों का प्रतीक है करवा
- “करवा” मिट्टी के करवे को पानी में गलाकर बनाया जाता है, पंच तत्वों का प्रतीक।
- इस प्रक्रिया में, मिट्टी पृथ्वी और पानी जल तत्व का प्रतीक होते हैं।
- धूप और हवा से करवे को सुखाया जाता है, जो आकाश और वायु तत्व का प्रतीक होते हैं।
- आग में करवे को तपाकर बनाया जाता है, जो आग्नेय तत्व का प्रतीक होता है।
- इस पारंपरिक प्रक्रिया में, पति और पत्नी पंच तत्व और परमात्मा के साक्षी बनकर अपने दाम्पत्य जीवन को सुखी बनाने की कामना करते हैं।
- भारतीय संस्कृति में पानी को परब्रह्म का प्रतीक माना जाता है, क्योंकि जल ही सभी जीवों की उत्पत्ति का केंद्र है।
- आयुर्वेद में भी मिट्टी के करवे में पानी पीने को फायदेमंद माना जाता है।
“Karva Chauth ” का त्योहार मिट्टी के करवे के माध्यम से पंच तत्वों का प्रतीक है और यह महिलाओं की प्रेम और आदर की भावना को साझा करता है। इस दिन व्रती महिलाएं पति के लिए दीर्घायु और सुखी जीवन की कामना करती हैं, जो इस पारंपरिक त्योहार का महत्वपूर्ण हिस्सा है।