भारत में मेजर सोशल इश्यूज में एक संकट सबसे ज्यादा लोगों को परेशान कर रहा है वो है Unemployment यानी कि बेरोजगारी की समस्या। यह कहना गलत नहीं होगा कि बेरोजगारी की समस्या ने देश को खोखला करना शुरू कर दिया है क्योंकि हमारे जन्म से पहले भी बेरोजगारी थी और आज के भारत में Unemployment बहुत ज्यादा बड़े लेवल पर बढ़ती जा रही है। और सरकारें आई और चली गई, लेकिन एक समस्या जो भारत में जस की तस बनी हुई है। बेहद बेरोजगारी।
भारत में Unemployment रेट महीने दर महीने लगातार बढ़ता जा रहा है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के अनुसार अप्रैल 2023 में भारत में अन इम्प्लॉयमेंट रेट 8.11% बढ़ा। इससे पहले मार्च में करीब 7.8 % था। और फरवरी में करीब 7.45%था |
भारत की जीडीपी लगातार बढ़ती हुई आपको दिख रही होगी। भारत वह देश है जहां 1947 में खाने की बहुत कमी थी,लेकिन आज भारत खाने की सारी चीजें एक्सपोर्ट करता है। पूरी दुनिया में, भारत में यूनिकॉर्न कंपनी की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है, जो कि 110 से ज्यादा हो चुकी है। लेकिन इतने सारे डेवलपमेंट के बीच भारत में जो अनइम्प्लॉयमेंट की समस्या है वो काफी ज्यादा है और जहां भारत में लिटरेसी करीब 77% है, फिर भी हम इतनी ज्यादा बेरोजगारी क्यों देखते आ रहे है,
कौन कौन से फैक्टर्स है जिससे भारत में Unemployment तेजी से बढ़ रहा है।
Unemployment की वजह से देश को क्या बड़ा नुकसान होता है? और इससे कैसे बाहर निकला जा सकता है, आपको शायद पता नहीं होगा कि इस साल भारत चीन से भी आबादी में आगे निकल चुका है। अगर रिपोर्ट के अनुसार देखे तो भारत की पॉपुलेशन करीब 142 करोड़ हो गई है।
जिसमें करीब 68% आबादी 15 से 64 साल के बीच है। जबकि 65 साल से ऊपर वाली आबादी सिर्फ 7% है। मतलब भारत अभी पूरी तरीके से जवान देश है। वही अगर यूथ पॉपुलेशन की बात करें तो देश की करीब 50% आबादी 25 साल से कम उम्र की है। यानी भारत को यूथ पॉपुलेशन वाला देश कहना गलत नहीं होगा। लेकिन आपको ये बात जानकर शॉक लगेगा कि भारत में जो 50% यूथ की आबादी है उसमें से आधे से ज्यादा लोगों ने जॉब की तलाश करना बंद कर दिया है। जी हां, हमारे देश में यूथ अब सब कुछ छोड़कर घर पर बैठ गया है। हालांकि इसमें उसकी खुशी नहीं बल्कि मजबूरी है।
महिलाओं के लिए Unemployment
सीएमआईई की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अपने लिए सही नौकरी न ढूंढ पाने की वजह से लोग हताश होकर लाखों भारतीय, विशेष रूप से महिलाएं पूरी तरीके से भारतीय वर्कफोर्स से बाहर होती जा रही है। इन नए आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में 2017 से 2022 के बीच में ओवरऑल लेबर पॉपुलेशन करीब 46% से गिरकर 40% हो गई है। लगभग 21 मिलियन लोग भारत के वर्कफोर्स से आज लेकर गायब हो चुके हैं।
जिसे वर्कफोर्स का मतलब नहीं पता। ये वो लोग आते हैं जो कि रोजगार कर रहे हैं या फिर रोजगार की तलाश कर रहे हैं। उन्हें वर्कफोर्स कहा जाता है। हैरानी की बात ये है कि भारत में 90 करोड़ कामकाजी लोगों में से करीब आधे से अधिक लोगों ने नौकरी की तलाश करना ही बंद कर दिया है और ये आंकड़ा महिलाओं के लिए और ज्यादा खराब हो जाता है। 2010 से 2020 के बीच अगर देखें तो भारत में जो वर्किंग महिलाएं उनकी संख्या करीब 26% घटकर करीब 19% आ चुकी है।
देश में पुरुषों और महिलाओं की वर्कफोर्स के बीच में करीब सिर्फ 1% का डिफरेंस है। ऐसे में अगर 2050 तक इस डिफरेंस को खत्म कर लिया गया तो भारत जीडीपी में वन थर्ड इन्क्रिमेंट हो सकती है, जो कि करीब सिक्स ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी के बराबर भारत पहुंचाएगा। यहां आपमें से जिन्हें नहीं पता है मैं बता दूं कि भारत की पॉपुलेशन में महिलाओं की भागीदारी करीब 48% है। लेकिन देश की जीडीपी में उनका योगदान सिर्फ 17 % ही है। जबकि चीन में महिलाएं अपने देश के लिए करीब 40 % इकनॉमी में कंट्रीब्यूशन किया करती हैं। और हम 17% कर रहे हैं और चीन करीब 40% कर रहा है महिलाओं का योगदान अपनी जीडीपी में।
काम पुरुष करें या महिलाएं, इकनॉमी में तो वही कंट्रीब्यूशन होगा?
लेकिन काफी बड़ा फर्क पड़ता है इसका। जब किसी पाँच सदस्य वाले परिवार में कोई पुरुष नौकरी करता है तो उसे अपने साथ परिवार के चार और लोगों का पेट भरना पड़ता है। जिससे उस पुरुष पर खर्चे का बोझ बढ़ता है।
वहीं उसी परिवार अगर एक महिला भी काम करे तो जिससे ज्याय पैसा घर में आएगा और ओवरऑल फैमिली का डेवलपमेंट ज्यादाहोगा |
एक्साम्प्ले,
अगर हम समझे तो मान लो किसी एक घर में एक आदमी करीब ₹20,000 कमाता है। उस घर में चार लोग रहते हैं तो उसका जो पूरा इनकम होगा वो 20000 में से चार लोगों में डिवाइड हो जाएगा जिस पर हर एक आदमी 5000 आएगे। लेकिन अगर उसी घर में एक महिला भी काम करती है वो भी ₹10,000 कमाती है तो total घर की इनकम होती है ₹30,000। जो कि चार लोगों जब डिवाइड होगा तो वो 7,500 रुपए करीब आ जाता है तो ओवरऑल फैमिली का डेवलपमेंट हो रहा है। लेकिन दुख की बात ये है कि वर्कफोर्स में महिलाओं की संख्या बढ़ने की बजाए लगातार घटती जा रही है और इसके पीछे वजह है महिलाओं को पुरुषों से कम आंकना।
क्या महिलाएं पुरुष के बराबर काम नहीं कर सकती?
इस बात का सबूत हमें कोरोना समय में सबसे ज्यादा देखने को मिला| जब पुरुषों की बजाय महिलाओं की काफी ज्यादा नौकरियां भारत में गई थी। साल 2019 की एक रिपोर्ट इस बात का दावा करती है कि भारत में साल 2019 में 3 करोड़ लोग Unemployment थे। जबकि लॉकडाउन के बाद करीब 10 करोड़ से ज्यादा लोगों ने अपनी नौकरी गवां दी। तीन साल बाद आज देश कोरोना को काफी ज्यादा पीछे छोड़ चुका है। लेकिन नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे का मानना है कि पिछले पांच साल में भारत में करीब 2 करोड़ से ज्यादा महिलाएं वर्कफोर्स से बाहर हो चुकी हैं। इन आंकड़ों के सामने आने के बाद कहीं ना कहीं साल 2014 में शुरू किया गया नरेंद्र मोदी सरकार का मेक इन इंडिया प्रोग्राम, जिसका उद्देश्य 2022 तक भारत मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में करीब 10 करोड़ जॉब प्रोड्यूस करना था, वो पूरी तरीके से फेल होता हुआ दिख रहा है।
कोरोना महामारी ने वाकई भारतीय अर्थव्यवस्था में संकट पैदा किया
सिर्फ कोरोना ही नहीं बल्कि ऐसे कई फैक्टर हैं जिसकी वजह से भारत में हर दूसरा व्यक्ति रोजगार की तलाश में दर दर भटकता हुआ है, अगर आप गौर फरमाएंगे तो आपको पता चलेगा कि हमारे देश का इंडियन लेबर लॉज इन फ्लेक्सिबल और काफी ज्यादा डिस्ट्रक्टिव है। यहां तक की इसका इंफ्रास्ट्रक्चर भी काफी ज्यादा खराब है और यही मैंने फैक्टर है जो भारत में अन इम्प्लॉयमेंट की स्थिति पैदा करता है।
Unemployment
भारत के जो बेसिक रीज़न है भारत की शिक्षा प्रणाली। यहां पर देखें तो शिक्षा का एक बेसिक अधिकार आजादी के बाद घोषित किया गया। लेकिन भारत में शिक्षा का स्तर उस तरीके से डेवलप नहीं हो पाया जिस तरह स्कूल कॉलेज काफी तेजी से बढ़े, लेकिन स्किल डेवलपमेंट पर किसी भी स्कूल और कॉलेज ने फोकस अभी तक नहीं किया है।
भारत में यह कहना गलत नहीं होगा
हमारा एजुकेशन सिस्टम प्रैक्टिकल ताज से ज्यादा क्वालिटी नॉलेज और रिटन एग्जामिनेशन पर ज्यादा फोकस करता है। और जब ग्रेजुएशन पूरा हो जाता है, तो इंटरव्यू के समय बच्चों में स्किल्स और कॉन्फिडेंस से काफी ज्यादा कमी देखने को मिलती है।
कैपिटल इंप्लॉयमेंट गारंटी
दिन प्रति दिन पॉपुलेशन में होने वाली ग्रोथ के कारण पर कैपिटल इंप्लॉयमेंट की गारंटी देना हमारे सरकार के कंट्रोल में नहीं है। पॉपुलेशन ग्रोथ से खेती पर काफी ज्यादा बोझ बढ़ता जा रहा है। साथ ही कृषि क्षेत्र में भी लो प्रोडक्टिविटी, डिफेक्टिव इकनॉमिक प्लैनिंग, कैपिटल की कमी जैसे कई मैंन फैक्टर्स हैं,
90 मिलियन जॉब पैदा आसान होगा ?
देश की Unemployment के लिए काफी बड़े जिम्मेदार हैं। लेकिन ग्लोबल इंस्टीट्यूट 2030 की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2030 तक अगर भारत को Unemployment के दलदल से बाहर निकलना है तो इसके लिए देश में करीब 90 मिलियन जॉब अपॉर्चुनिटी को पैदा करना होगा। और जैसा भारत की आज की स्थिति है उस हिसाब से 90 मिलियन जॉब पैदा करना काफी ज्यादा नामुमकिन सी बात हो जाती है। हम इंप्लॉयमेंट के सीक्वेंसेज की बात करें तो यह सिर्फ लोगों को ही नहीं पूरे देश को ही डिस्ट्रॉय कर सकता है।
Unemployment को इंडिकेटर ऑफ नेशनल डिस्ट्रक्शन भी माना जाता है। Unemployment अपने साथ इंडस्ट्रियल अनएक्सपेक्टेशन, क्राइम थेफ्ट, डकैती और पॉवर्टी जैसी चीजें लेकर आता है, जिससे ओवर नेशनल रेवेन्यू लगातार गिरता जाता है। अगर आप इसके पॉलिटिकल सीक्वेंसेज पर जाएंगे तो उससे पता चलता है कि देश में कितनी ज्यादा प्रॉब्लम इससे फैल सकती है।
Unemployment पर समाज का प्रभाव
जब देश में Unemployment होती है तो समाज में अशांति की स्थिति बनी रहती है। लोगों के दिलो दिमाग में सरकार के प्रति आक्रोश रहता है, और ऐसे समय में सरकार स्टेबल भी नहीं रह पाती है। बहुत लॉन्ग टर्म अजस्टमेंट में जो डिसिप्लीन देखने को मिला है, उसके पीछे भी रीजन अन इम्प्लॉयमेंट है, क्योंकि फैमिली प्रेशर की वजह से बच्चे पढ़ाई तो कर लेते हैं, लेकिन उनके माइंड में डर जरूर रहता है कि देश की जो ऐसी स्थिति है Unemployment की, उससे मुझे नौकरी मिलेगी या नहीं मिलेगी।
Unemployment और इसका प्रभाव भारतीय परिवारों पर
Unemployment के कारण आज पैरेंट्स अपने बच्चों को प्रॉपर एजुकेशन भी नहीं दे पाते हैं।परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए बहुत सारे बच्चों को छोटी उम्र में ही काम पर लगा दिया जाता है, जिस वजह से उनकी शिक्षा पूरी नहीं हो पाती है और गलत चीजों के भी शिकार हो जाया करते हैं। पैसे कमाने की जरूरत उनके बचपन को खा जाती है और कई बार बच्चे गलत संगति में पड़कर बाल अपराधी बन जाते हैं।
अगर ध्यान दिया जाए तो गरीबी और बेरोजगारी दोनों एक रिलेटिव चीज है। जहां भी गरीबी होगी, वहां पर बेरोजगारी आ ही जाएगी। जिस देश में बहुत ज्यादा Unemployment है वह देश गरीब जरूर रहता ही रहता है। भारत में हमेशा से ही गरीबी और बेरोजगारी नहीं रही है। एक समय में भारत दुनिया की सोने की चिड़िया कहलाया करती थी लेकिन उसके बाद ब्रिटिशर्स भारत आते हैं और उन्होंने भारत को लूटना शुरू कर दिया।
ब्रिटिश शासन के दौरान भारत की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
यह कहना गलत नहीं होगा कि ब्रिटिश शासन के दौरान ही भारत की अर्थव्यवस्था में बदलाव के साथ Unemployment की शुरुआत हुई। जैसे जैसे इंडस्ट्रियलाइजेशन की शुरुआत हुई, लोगों के छोटे उद्योग बंद होते गए। जिस वजह से लोगों को शहर की तरफ पलायन करना शुरू करना पड़ा। वहीं कृषि में मैकेनिकल डिवाइसेज के इस्तेमाल से एग्रीकल्चर वर्कर्स के लिए employment के अवसर कम हो गए और ऐसे में ये लोग भी गांव छोड़कर शहरों की तरफ भागने लगे। लेकिन उस समय शहरों में इतनी ज्यादा जॉब्स उपलब्ध नहीं थी,
शहरों में Unemployment
आज जितनी ज्यादा पॉपुलेशन शहरों में उतनी जॉब्स आज भी नहीं है। जिस वजह से शहरों में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को employment मिल पाना पॉसिबल नहीं हो पाता है। साथ ही हमारी शिक्षा व्यवस्था में भी इतने दोष हैं कि पढ़ा लिखा व्यक्ति नौकरी नहीं मिलने पर कोई छोटा मोटा काम करना अपनी शानो शौकत के खिलाफ देखा करता है।
जिस वजह से वह छोटे जॉब पाकर नहीं करता है। इससे उन लोगों की संख्या इन्क्रिमेंट होती है, जिनके पास कोई काम करने के लिए क्वालिफिकेशन तो है और वह काम करना भी चाहते हैं, लेकिन उनके पास आजीविका का कोई भी साधन नहीं हुआ करता है। जिस वजह से उनका नैतिक पतन होता जाता है। उनके परिवार को काफी ज्यादा मुश्किलों का सामना करना पड़ता है और इसके लिए कई बार लोग लॉ के खिलाफ भी चले जाते हैं और गलत काम करना भी शुरू कर देते हैं, जिस वजह से अन्य एंप्लॉयमेंट का रास्ता खोजना बहुत ज्यादा जरूरी हो गया है।
अब सवाल यह उठता है कि Unemployment सलूशन ढूंढा कैसे जाए ?
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