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मंदसौर का द्विमुखी चिंताहरण मंदिर, पूरी दुनिया में गणपति का एकमात्र ऐसा मंदिर

Dvimukhee Chintaharan Temple Of Mandsaur: मंदसौर जिले को पुराने समय में दशपुर के नाम से जानते थे। मध्य प्रदेश का यह जिला अपने आप में पुरातात्विक और ऐतिहासिक विरासत संजो कर रखता है। इस जिले की खात बात है पशुपतिनाथ मंदिर, और भगवान गणेश का अद्भुत मंदिर है। पशुपतिनाथ मंदिर में भगवान शिव की अष्टमुखी प्रतीमा पाई जाती है एकमात्र ऐसी प्रतीमा पूरे विश्व में केवल यही पर देखने को मिलती है। यह मंदिर शिवनी तट पर स्थित है ऐसा कहा जाता है की यह प्रतिमा शिवनी नदी में ही मिली थी। इस मंदिर के दरवाजे चारों दिशाओं में है, प्रवेश द्वार केवल पश्चिम में खुलता है। 

विघ्नहर्ता की अनूठी प्रतिमा

जहां मंदसौर जिले में एक तरफ भगवान शिव का पशुपतिनाथ मंदिर है तो वहीं भगवान शिव के दुलारे पुत्र गणेश का ऐसा अनूठा मंदिर है जो पाषाण युग से बना हुआ है, ऐसा मंदिर विश्व में कहीं और देखने को नहीं मिलेगा।

यह मंदिर मंदसौर जिले के गणपति चौक पर स्थित है। इस मंदिर का नाम श्री द्विमुखी  चिंताहरण गणपति है। इस मंदिर के अदंर गणपति बप्पा की 8 फीट ऊंची प्रतिमा स्थापित है जो मंदिर के बीचों बीच स्थापित की गयी है ताकि भक्तगण प्रतिमा के दोनों तरफ बने गणपति बप्पा के दर्शन कर सकें। खास बात ये है की गणपति बप्पा की जो प्रतिमा बनी है जो एक ही शिला पर दोनों तरफ बप्पा के दो भिन्न-भिन्न स्वरुपों को बनाया गया है जो अपने आप में अद्भुत है। इस प्रतिमा को खड़े अवस्था में बनाया गया है जिसे गणेश स्थानक भी कहा जाता है। प्रतिमा को उत्तर-दक्षिण दिशा के अनुसार स्थापित किया गया है। उत्तरी भाग की  तरफ पंच सुंडी  गणेश का रुप है और दक्षिण भाग की तरफ पगड़ी वाले सेठ गणेश की प्रतिमा बनी है।

ऐसा है आगे का स्वरुप

प्रतिमा के आगे के स्वरुप को पंचसुंडी गणेश के नाम से जाने जाते है। यह स्वरुप युवा जैसा प्रतित होता है और प्रतिमा के पंचसुंडी से मतलब पंचतत्वों से है। इसे धर्म,कर्म, मोक्ष और नैवेद्य माना जाता है। प्रतिमा के आगे के स्वरुप में चार हाथ है जिनमें अंकुश, पाश,कमंडल और माला लिए हुए है और सिर पर मुकुट विराजित है।

पीछे का स्वरुप

प्रतिमा का पीछे का स्वरुप सेठ जैसा प्रतीत होता है, जिसे सेठ गणेश कहा जाता है सिर पर पगड़ी पहने गर्दन टेढ़ी है। इस प्रतीमा से ऐसा लगता है की गणेश ही कह रहे है कहो क्या बात है?  जैसे हमसे घर के बड़े बुजुर्ग पूछते है टेढ़ी गर्दन करके।  

मंदिर का इतिहास

इस मंदिर में जो गणपति बप्पा की प्रतिमा स्थापित है। वह 9वीं सदी की बताई जाती है, आज से करीब डेढ़ सौ साल पहले नरसिंहपूरा में रहने वाले एक समाज सेवक मूलचंद सोनी के सपने में भगवान आए थे, सपने के अनुसार इस प्रतिमा को नाहर सैय्यद तालाब से निकाला गया था जिसके बाद इस प्रतिमा को बैलगाड़ी में रखकर नरसिंहपुरा ले जाया जा रहा था,लेकिन बैलगाड़ी जनकुपुरा जगह से आगे नही बढ़ पाई और प्रतिमा को यहीं पर स्थापित कर दिया गया। तब से ही इस स्थान का नाम गणपति चौक पड़ गया।

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