29 दिन के इस सावन माह में सप्तमी तिथि के अगले दिन फिर सप्तमी तिथि आ जाएगी। कृष्ण पक्ष की एकम के बाद द्वितिया एवं शुक्ल पक्ष की अष्टमी के बाद नवमी नहीं आएगी। नेशनल अवार्ड प्राप्त विज्ञान प्रसारक सारिका घारू ने StackUmbrella को क्षय होती एवं वृद्धि करती तिथियों के रहस्य के पीछे छिपे खगोलविज्ञान की जानकारी दी।
इस तरह तय होती है तिथियों की गणना :
सारिका ने बताया कि अमावस्या के दिन सूर्य और चंद्रमा के बीच अंतर जीरो डिग्री का होता है। अगले लगभग 24 घंटे में चंद्रमा आगे बढ़ जाता है और यह अंतर 12 डिग्री का हो जाता है। 12 डिग्री होने के लिए जो अवधि लगती है। उसे तिथि कहते हैं। चंद्रमा, पृथ्वी की परिक्रमा अंडाकर पथ में करता है।
इस कारण चंद्रमा पृथ्वी से हमेशा समान दूरी पर नहीं रहता है। इस कारण 12 डिग्री का कोण बनाने के लिए चंद्रमा को कभी ज्यादा चलना पड़ता है तो कभी कम दूरी तय करना पड़ती है। इसलिए तिथि की अवधि कभी 24 घंटे से अधिक होती है, तो कभी 24 घंटे से कम हो जाती है।
यह कारण है दो दिन तक तिथि के रहने का :
यह अवधि कभी 26 घंटे और कभी 19 घंटे के बीच हो सकती है। सारिका ने जानकारी दी कि किसी दिन सूर्योदय के समय जो तिथि होती है, वही तिथि पूरे दिन मानी जाती है। भले ही सूर्योदय के कुछ मिनिट बाद ही अगली तिथि आ रही हो।
अगर किसी तिथि की अवधि 24 घंटे से अधिक है और वह सूर्योदय से कुछ
देर पहले ही आरंभ हुई हो तो वह अगले सूर्योदय के बाद भी जारी रहेगी इससे अगले दिन भी वही तिथि मानी जाएगी। जैसा कि इस सावन में कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि दो दिन रहेगी। इसे तिथि वृद्धि कहते हैं।यह होता है तिथि का क्षय :
वहीं अगर किसी तिथि की अवधि 24 घंटे से कम हो और वह सूर्योदय के बाद आरंभ हुई हो और अगले सूर्योदय के पहले ही समाप्त हो गई हो तो यह तिथि क्षय कहलाता है। जैसा कि इस सावन में कृष्ण पक्ष की द्वितिया एवं शुक्ल पक्ष की नवमी का क्षय है।
सावन माह में इन दिनों होगी तिथियों की वृद्धि :
सावन माह में 30 जुलाई को सप्तमी तिथि के अगले दिन 31 जुलाई को फिर सप्तमी तिथि आ जाएगी।
इन दिनों होगा तिथियों का क्षय :
25 जुलाई को एकम के बाद 26 जुलाई को द्वितिया आएगी ही नहीं सीधे तृतीया तिथि आ जाएगी।
16 अगस्त को अष्टमी के बाद 17 अगस्त को नवमी आएगी ही नहीं सीधे दसवीं तिथि आ जायेगी।
सावन माह की अवधि :
सावन माह 25 जुलाई से आरंभ होकर 22 अगस्त तक चलेगा इसमें 29 दिन होंगे।
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