इस दौरान शरीर में इतनी एंटीबॉडी डेवलप हो जाती हैं कि यह कोरोना से लड़ने में पूरी तरह पर्याप्त होती हैं। जबकि जो लोग कोरोना संक्रमित नहीं हैं। उनका वैक्सीन का पहला डोज देने के बाद एंटीबॉडी बनने में 3 से 4 सप्ताह का वक्त लगता है।
यह शोध बनारस हिंदू विवि के जूलाजी विभाग के प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे, प्रज्जवल सिंह, प्रणव गुप्ता के साथ न्यूरोलॉजी विभाग के प्रो. वीएन मिश्र और प्रो. अभिषेक पाठक ने किया है।
पीएम को लिखा पत्र संक्रमित लोगों को केवल एक डोज ही दें
वैज्ञानिकों ने अपने इस शोध का हवाला देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) को पत्र लिख कर सुझाव दिया है कि कोरोना से संक्रमित हो चुके लोगों को वैक्सीन का एक ही डोज दिया जाए। देश में अब तक दो करोड़ से ज्यादा लोगों में कोरोना की पुष्टि हो चुकी है।
यदि इन्हें केवल एक ही डोज दिया जाएगा, तो देश में पैदा हुए वैक्सीन संकट पर भी काफी हद तक लगाम लग सकती है। वहीं वैक्सीन कम समय में ज्यादा से ज्यादा लोगों तक भी आसानी से पहुंच सकेगी।
(प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे, बनारस हिंदू विवि)
20 लोगों पर किया गया शोध :
प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे बताते हैं कि शुरुआत में पायलट शोध केवल 20 लोगाें पर ही किया गया था। इस शोध में पाया गया कि कोरोना वैक्सीन की पहली खुराक इन लोगाें में तेजी से एंटीबॉडी बनाती है, जो पहले संक्रमित हो चुके हैं। वहीं जो लोग संक्रमित नहीं हुए हैं। उनमें एंटीबॉडी बनने में 3 से 4 सप्ताह का समय लगता है।
यह शोध कोविड-19 के लिए जिम्मेदार SARS-Cov-2 वायरस के खिलाफ शरीर में बनने वाली नेचुरल एंटीबाडी का शरीर में काम और इसके फायदे जानने के लिए किया गया था।
कुछ समय बाद खत्म हो रही है एंटीबॉडी :
प्रो. चौबे ने अपने शोध में पाया कि संक्रमण से ठीक हो चुके लोगों में एंटीबॉडी कुछ दिनों के बाद खत्म भी हो जाते हैं। इस संक्रमण से निजात पाने के लिए भारत को 70 से 80 करोड़ लोगोंं का टीकाकरण करना होगा। वहीं वैक्सीन निर्माता कंपनियां सीमित मात्रा में डोज बना पा रही हैं। ऐसे में कम समय में ज्यादा से ज्यादा लोगों तक वैक्सीन पहुंचानी होगी।