Nimbarka Sect: 5 हजार साल पुराना एक संप्रदाय जहां दुनिया की सबसे छोटी राधा-कृष्ण की मूर्ति है। इतनी छोटी कि बिना लेंस के आप उसे नहीं देख सकते। आपको ये बता दें कि महज चार साल की उम्र में ही एक बच्चे को कुंडली देखकर गद्दी का युवराज चुन लिया गया।
Nimbarka Sect कहां स्थित है-
राजस्थान के अजमेर में अरावली की पहाड़ियो पर बसा है सलेमाबाद यहां
कि श्रीनिम्बार्क पीट पूरे देश में बहुत ही प्रचलित है। यहां युगल रूप से राधा और कृष्ण भगवान की पूजा की जाती है।
यह संप्रदाय सबसे पुराना है। इस वैष्णव संप्रदाय में राधा को कृष्ण और कृष्ण को राधा का रूप माना जाता है। आपको बता दे कि जहां भगवान विष्णु के अलग-अलग स्वरुपों को आराध्य मानकर पूजा जाता हो ऐसा संप्रदाय वैष्णव कहलाता है।
Nimbarka Sect की शाखाएं-
मूलरूप से संप्रदाय की चार शाखाएं है- श्री, ब्रह्मा, रुद्र और निम्बार्क। आज ये सभी संप्रदाय अपने आचार्य के नाम से जाने जाते है, निम्बार्क संप्रदाय की 12वी सदी की स्थापना निम्बार्काचार्य ने की. उन्हें भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र का अवतार माना जाता है। चक्र, शंख और तिलक इस संप्रदाय की विशेष पहचान है।
राधा-कृष्ण के युगल रूप को पूजा जाता है-
Nimbarka Sect में राधा-कृष्ण के युगल रूप को पूजा जाता है। निम्बार्क संप्रदाय में विशेष रूप से लोग शालीग्राम के पत्थर पर बने राधा-कृष्ण यानि सर्वेश्वर भगवान के दर्शन के लिए आते है।
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कैसे चुना जाता है इस संप्रदाय का युवराज?
Nimbarka Sect वंशवाद से परे है। यहां निम्बार्क आचार्य की गद्दी के लिए 4 साल के बच्चे की कुंडली मिलाई जाती है, फिर कुंडली में राजयोग देखकर एक बच्चे को युवराज चुना जाता है। आचार्य के समाधि लेने के बाद युवराल इस संप्रदाय के अगले आचार्य बन जाते है।
कैसे होते है सर्वेश्वर भगवान के दर्शन-
मंदिर के पुजारी रूई के फाहे पर मूर्ति लेकर बैठते है, फिर मैग्नीफाइड ग्लास की मदद से बारी-बारी से भक्तों को सर्वेश्वर भगवान के दर्शन कराए जाते हैं। कहते हैं- ‘इनका दर्शन करना सौभाग्य की बात है। किस्मत वालों को ही इनका दर्शन करने को मिलता है।’
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