बक्सवाहा और केन बेतवा लिंक के नाम पर काटे जाने वाले लाखों पेड़ों को बचाने के लिए भोपाल में एक दिवसीय राष्ट्रीय पर्यावरण संसद का आयोजन पॉलिटेक्निक चौराहा स्थित गांधी भवन में किया जा रहा है। 9 सितंबर को आयोजित होने वाले इस कार्यक्रम में नर्मदा बचाओ आंदोलन की प्रमुख मेधा पाटकर (Medha Patkar) और फॉरेस्ट मेन ऑफ इंडिया (Forest Man of India) की उपाधि हासिल कर चुके पद्मश्री जादव पायेंग (Jadav Payeng) भी विशेष रूप से भोपाल में शिरकत करेंगे।
साथ ही कार्यक्रम में पद्मश्री बाबूलाल दाहिया, पूर्व आईएएस निर्मला बुच, एससी बेहार, रानी दुर्गावती विवि के वीसी और पूर्व डीजीपी अरुण गुर्टु, पूर्व आईएएस विल्फ्रेड लकड़ा, पूर्व आईपीएस उपेंद्र वर्मा, पुरातत्व विशेषज्ञ प्रो. एसके छारी, कृषि वैज्ञानिक आकाश चौरसिया सहित कई लोग इस कार्यक्रम में शिरकत करेंगे।
पेड़ों की बलि देकर हीरे किसी काम के नहीं :
पर्यावरण बचाओ अभियान और बक्सवाहा जंगल बचाओ अभियान के प्रमुख शरद सिंह कुमरे ने बताया कि कोरोना काल में साबित हो गया कि मनुष्य के लिए सबसे ज्यादा कीमती वस्तु ऑक्सीजन ही है। यदि ऑक्सीजन न हो तो इंसान मात्र कुछ सेकेंड ही जीवित रहेगा। ऐसे में सरकार को वनों के विकास और संरक्षण में ज्यादा से ज्यादा काम करना चाहिए।
लेकिन वर्तमान में सरकार हीरों के लिए बक्सवाहा के हजारों हरे भरे पेड़ों की बलि देने का मन बना चुकी है। बुंदेलखंड का केवल यही क्षेत्र हरियाली के कारण थोड़ा सा संपन्न है अन्यथा आसपास के क्षेत्रों में तो हमेशा ही भीषण सूखे की स्थिति बनी रहती है। ऐसे में इस क्षेत्र में वनों के विनाश से भविष्य में भयंकर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।
केन बेतवा से तबाह हो जाएगा पन्ना टाइगर रिजर्व :
वहीं केन बेतवा प्रोजेक्ट का विरोध करते हुए कुमरे ने बताया कि इस परियोजना के भविष्य में भयंकर दुष्परिणाम सामने आएंगे। सबसे पहले तो इस प्रोजेक्टर के लिए 15 लाख से ज्यादा पेड़ों को काट दिया जाएगा। वहीं दो नदियों के पानी के पीएच में बहुत अंतर होता है, जिसके कारण दोनों नदियों को मिलाने से उनका पीएच आपस में मेल नहीं खाएगा, जिससे बड़ी संख्या में जलीय जीवों की मौत हो जाएगी।
वहीं यह प्रोजेक्ट पन्ना टाइगर रिजर्व से होकर जाएगा, जिसका नतीजा यह निकलेगा कि इस प्रोजेक्ट के कारण पन्ना टाइगर रिजर्व और यहां रहने वाले हजारों प्राणियों का भविष्य खतरे में पड़ेगा। इससे भी अधिक पूरे क्षेत्र का इको सिस्टम ही प्रभावित हो जाएगा। जिसके दुष्प्रभाव आने वाले कुछ सालों में नजर आने लगेंगे।