Rambhadracharya: एक शख्स जिसकी आंखों की रोशनी दो साल की उम्र में चली गई। वो शख्स एक दो नहीं लगभग 22 भाषाएं जानता है। साथ ही उसने 80 ग्रंथ रच दिए। आपको लगता होगा मैं किसी फिल्मी कहानी का पटकथा सुना रहा हूं।
आपको जानकर आश्चर्य होगा ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। आज के व्यक्ति विशेष सेगमेंट में हम आपको उस धर्म गुरु के जीवन परिचय से रूबरु करवाने जा रहे हैं जिसने रामलला जन्मभूमि केस के दौरान सुप्रीम कोर्ट में अपनी गवाही से मामले की दिशा ही मोड़ दी। बता दें कि वो कोई और नहीं बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री के गुरु Rambhadracharya जी हैं।

गुरु Rambhadracharya ने चित्रकूट में तुलसी पीठ की स्थापना की थी। वह 2 साल की आयु से ही दृष्टिहीन हैं। वह रामकथा वाचक के तौर पर काफी लोकप्रिय हैं। छोटी उम्र से ही दृष्टिहीन होने के बाद भी रामभद्राचार्य 22 भाषाओं के जानकार हैं और अब तक 80 ग्रंथों की रचना कर चुके हैं।
बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री गुरु Rambhadracharya के शिष्य हैं। धीरेंद्र शास्त्री के चमत्कारों को लेकर जब विवाद बढ़ा तो गुरु Rambhadracharya ने उनका बचाव किया। उन्होंने कहा कि कुछ लोग धीरेंद्र शास्त्री को बदनाम करने की कोशिशों में जुटे हैं।
पद्मविभूषण से सम्मानित
जगद्गुरु Rambhadracharya का जन्म उत्तर प्रदेश के जौनपुर में सरयूपारीण ब्राह्मण परिवार में मकर संक्रांति के दिन 1950 में हुआ था। रामभद्राचार्य 2 महीने की उम्र में आंखों की रोशनी जाने के बाद भी 4 साल की उम्र से ही कविताएं करने लगे और 8 साल की छोटी सी उम्र में उन्होंने भागवत व रामकथा करनी शुरू कर दी थी। जगद्गुरु Rambhadracharya को भारत सरकार ने उनकी रचनाओं के लिए पद्मविभूषण से भी सम्मानित किया है।
चार महाकाव्य की रचना
गुरु Rambhadracharya चित्रकूट में रहते हैं। उनका वास्तविक नाम गिरधर मिश्रा है। वह एक विद्वान्, शिक्षाविद्, बहुभाषाविद्, रचनाकार, प्रवचनकार, दार्शनिक और हिंदू धर्मगुरु हैं। वह रामानन्द संप्रदाय के मौजूदा चार जगद्गुरु में से एक हैं और इस पद पर 1988 से हैं।
पद्मविभूषण से सम्मानित
वह चित्रकूट में जगद्गुरु Rambhadracharya विकलांग विश्वविद्यालय के संस्थापक हैं। वह विश्वविद्यालय के आजीवन कुलाधिपति भी हैं। उन्होंने दो संस्कृत और दो हिंदी में मिलाकर कुल चार महाकाव्य की रचना की है। वह भारत में तुलसीदास पर सबसे बेहतरीन विशेषज्ञों में गिना जाता है। साल 2015 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मविभूषण से सम्मानित किया था।

जानिए मौजूदा विवाद
जगद्गुरु Rambhadracharya ने तुलसीकृत हनुमान चालीसा की चौपाइयों में चार अशुद्धियां बताईं। साथ ही कहा कि इन्हें सही किया जाना चाहिए। इसके बाद उनके बयान को लेकर विवाद खड़ा हो गया। गुरु Rambhadracharya का कहना था कि हनुमान भक्तों को चालीसा की चौपाइयों का शुद्ध उच्चारण करना चाहिए।
Rambhadracharya ने कहा कि चालीसा की एक चौपाई में ‘शंकर सुवन केसरी नंदन’ छपा है, जबकि इसमें सुवन की जगह स्वयं होना चाहिए। उन्होंने तर्क दिया कि हनुमान जी स्वयं भगवान शिव के अवतार है। वह शंकर जी के पुत्र नहीं हैं। इसलिए चौपाई में छपा ‘सुवन’ अशुद्ध है।
इसके अलावा एक चौपाई में ‘सब पर राम तपस्वी राजा’ के बजाय ‘सब पर राम राज फिर ताजा’ होना चाहिए। एक चौपाई में छपा ‘सदा रहो रघुपति के दासा’ की बजाय ‘सादर रहो रघुपति के दासा’ होना चाहिए। चौथी अशुद्धि के तौर पर उन्होंने बताया कि ‘जो सत बार पाठ कर कोई’ के बजाय ‘यह सत बार पाठ कर जोही’ होना चाहिए।