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Kaal Bhairav Jayanti 2023: कल पूजा के समय जरूर करें काल भैरव के 108 नामों का मंत्र जाप, बनेंगे सारे बिगड़े काम

Kaal Bhairav Jayanti 2023

Kaal Bhairav Jayanti 2023: मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को काल भैरव जयंती मनाई जाती है। इस दिन भगवान शिव के रौद्र रूप की विधिवत पूजा की जाती है। जानें काल भैरव जयंती का शुभ मुहूर्त, महत्व और कथा।

कल काल भैरव जयंती है। यह पर्व हर वर्ष मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भगवान शिव के रौद्र रूप काल भैरव की पूजा-अर्चना की जाती है। साथ ही विशेष कार्य में सिद्धि प्राप्ति हेतु व्रत रखा जाता है। धार्मिक मान्यता है कि काल भैरव जयंती पर भगवान शिव के रौद्र रूप की पूजा करने से जीवन में व्याप्त सभी प्रकार के दुख और संताप यथाशीघ्र दूर हो जाते हैं। साथ ही साधक के सकल मनोरथ सिद्ध होते हैं। अतः साधक श्रद्धा भाव से काल भैरव की पूजा-उपासना करते हैं। अगर आप भी काल भैरव की कृपा के भागी बनना चाहते हैं, तो मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को विधिपूर्वक काल भैरव की पूजा करें। साथ ही पूजा के समय काल भैरव के 108 नामों का मंत्र जाप अवश्य करें।

कब है काल भैरव जयंती? (Kaal Bhairav Jayanti 2023 Date)

हिंदू पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 4 दिसंबर को रात 9 बजकर 59 मिनट से शुरू हो रहा है, जो 6 दिसंबर को सुबह 12 बजकर 37 मिनट पर समाप्त है। ऐसे में काल भैरव जयंती 5 दिसंबर 2023 को मनाया जाएगा।

काल भैरव जयंती 2023 महत्व (Kaal Bhairav Jayanti 2023 Significance)

हिंदू शास्त्रों के अनुसार, काल भैरव को भगवान शिव का रौद्र रूप माना जाता है। इसलिए इनकी जयंती के दिन विधिवत पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में खुशियां ही खुशियां बनी रहती हैं। इसके साथ ही हर तरह के पापों से मुक्ति मिल जाती है। माना जाता है कि अगर जातक के ऊपर काल भैरव जी प्रसन्न हो जाएंगे, तो वह नकारात्मक शक्तियों के अलावा ऊपर बाधा और भूत-प्रेत की जैसी समस्याएं नहीं होती है।

कैसे हुए काल भैरव प्रकट?

कालभैरव जयंती का दिन काल भैरव के साथ भगवान शिव की आराधना करने का विशेष महत्व है। हिंदू कथाओं के अनुसार, जब भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश में इस बात में बहस छिड़ गई थी कि सबसे श्रेष्ठ कौन है, तो ऐसे में ब्रह्मा जी ने भगवान शिव को कुछ अपशब्द कह दिए थे, जिससे वह अधिक क्रोधित हो गए है। इके बाद भगवान शिव के माथे से भैरव प्रकट हुए। उनका रौद्र रूप देखकर हर कोई डर गया और इसी समय उन्होंने भगवान ब्रह्मा का एक सिर काट दिया, जिससे उनके चार सिर हो गए। इसके बाद सभी देवी-देवताओं ने उन्हें शांत किया और वह पुन: शिव जी के स्वरूप में वापस आ गए। लेकिन उन्होंने ब्रह्म हत्या कर दी थी। ऐसे में उन्होंने इस पाप से मुक्ति पाने के लिए काशी की शरण ली और वहीं पर रहकर पापों से मुक्ति पाई।

काल भैरव के 108 नाम

1. ॐ ह्रीं भैरवाय नम:

2. ॐ ह्रीं विराजे नम:

3. ॐ ह्रीं क्षत्रियाय नम:

4. ॐ ह्रीं भूतात्मने नम:

5. ॐ ह्रीं सिद्धाय नम:

6. ॐ ह्रीं सिद्धिदाय नम:

7. ॐ ह्रीं सिद्धिसेविताय नम:

8. ॐ ह्रीं कंकालाय नम:

9. ॐ ह्रीं कालशमनाय नम:

10. ॐ ह्रीं कला-काष्ठा-तनवे नम:

11. ॐ ह्रीं कवये नम:

12. ॐ ह्रीं खर्पराशिने नम:

13. ॐ ह्रीं स्मारान्तकृते नम:

14. ॐ ह्रीं रक्तपाय नम:

15. ॐ ह्रीं श्मशानवासिने नम:

16. ॐ ह्रीं मांसाशिने नम:

17. ॐ ह्रीं पानपाय नम:

18. ॐ ह्रीं त्रिनेत्राय नम:

19. ॐ ह्रीं बहुनेत्राय नम:

20. ॐ ह्रीं पिंगललोचनाय नम:

21. ॐ ह्रीं शूलपाणाये नम:

22. ॐ ह्रीं खड्गपाणाये नम:

23. ॐ ह्रीं धूम्रलोचनाय नम:

24. ॐ ह्रीं भू-भावनाय नम:

25. ॐ ह्रीं क्षेत्रज्ञाय नम:

26. ॐ ह्रीं क्षेत्रपालाय नम:

27. ॐ ह्रीं क्षेत्रदाय नम:

28. ॐ ह्रीं माया-मन्त्रौषधी-मयाय नम:

29. ॐ ह्रीं सर्वसिद्धि प्रदाय नम:

30. ॐ ह्रीं अभीरवे नम:

31. ॐ ह्रीं भैरवीनाथाय नम:

32. ॐ ह्रीं भूतपाय नम:

33. ॐ ह्रीं योगिनीपतये नम:

34. ॐ ह्रीं धनदाय नम:

35. ॐ ह्रीं कालाय नम:

36. ॐ ह्रीं कपालमालिने नम:

37. ॐ ह्रीं भूतनाथाय नम:

38. ॐ ह्रीं कामिनी-वश-कृद्-वशिने नम:

39. ॐ ह्रीं जगद्-रक्षा-कराय नम:

40. ॐ ह्रीं अनंताय नम:

41. ॐ ह्रीं कमनीयाय नम:

42. ॐ ह्रीं कलानिधये नम:

43. ॐ ह्रीं त्रिलोचननाय नम:

44. ॐ ह्रीं ज्वलन्नेत्राय नम:

45. ॐ ह्रीं त्रिशिखिने नम:

46. ॐ ह्रीं त्रिलोकभृते नम:

47. ॐ ह्रीं नागकेशाय नम:

48. ॐ ह्रीं व्योमकेशाय नम:

49. ॐ ह्रीं कपालभृते नम:

50. ॐ ह्रीं त्रिवृत्त-तनयाय नम:

51. ॐ ह्रीं डिम्भाय नम:

52. ॐ ह्रीं शांताय नम:

53. ॐ ह्रीं शांत-जन-प्रियाय नम:

54. ॐ ह्रीं भिक्षुकाय नम:

55. ॐ ह्रीं परिचारकाय नम:

56. ॐ ह्रीं अधनहारिणे नम:

57. ॐ ह्रीं धनवते नम:

58. ॐ ह्रीं प्रतिभागवते नम:

59. ॐ ह्रीं नागहाराय नम:

60. ॐ ह्रीं धूर्ताय नम:

61. ॐ ह्रीं दिगंबराय नम:

62. ॐ ह्रीं शौरये नम:

63. ॐ ह्रीं हरिणाय नम:

64. ॐ ह्रीं पाण्डुलोचनाय नम:

65. ॐ ह्रीं प्रशांताय नम:

66. ॐ ह्रीं शां‍तिदाय नम:

67. ॐ ह्रीं शुद्धाय नम:

68. ॐ ह्रीं शंकरप्रिय बांधवाय नम:

69. ॐ ह्रीं अष्टमूर्तये नम:

70. ॐ ह्रीं बटुकाय नम:

71. ॐ ह्रीं बटुवेषाय नम:

72. ॐ ह्रीं खट्वांग-वर-धारकाय नम:

73. ॐ ह्रीं भूताध्यक्ष नम:

74. ॐ ह्रीं पशुपतये नम:

75. ॐ ह्रीं सर्पयुक्ताय नम:

76. ॐ ह्रीं शिखिसखाय नम:

77. ॐ ह्रीं भूधराय नम:

78. ॐ ह्रीं भूधराधीशाय नम:

79. ॐ ह्रीं भूपतये नम:

80. ॐ ह्रीं निधिशाय नम:

81. ॐ ह्रीं ज्ञानचक्षुषे नम:

82. ॐ ह्रीं तपोमयाय नम:

83. ॐ ह्रीं अष्टाधाराय नम:

84. ॐ ह्रीं षडाधाराय नम:

85. ॐ ह्रीं भूधरात्मजाय नम:

86. ॐ ह्रीं कपालधारिणे नम:

87. ॐ ह्रीं मारणाय नम:

88. ॐ ह्रीं क्षोभणाय नम:

89. ॐ ह्रीं शुद्ध-नीलांजन-प्रख्य-देहाय नम:

90. ॐ ह्रीं मुंडविभूषणाय नम:

91. ॐ ह्रीं बलिभुजे नम:

92. ॐ ह्रीं बलिभुंगनाथाय नम:

93. ॐ ह्रीं बालाय नम:

94. ॐ ह्रीं नाग-यज्ञोपवीत-वते नम:

95. ॐ ह्रीं जृम्भणाय नम:

96. ॐ ह्रीं मोहनाय नम:

97. ॐ ह्रीं स्तम्भिने नम:

98. ॐ ह्रीं दुष्ट-भूत-निषेविताय नम:

99. ॐ ह्रीं कामिने नम:

100. ॐ ह्रीं कला-निधये नम:

101. ॐ ह्रीं कांताय नम:

102. ॐ ह्रीं बालपराक्रमाय नम:

103. ॐ ह्रीं सर्वापत्-तारणाय नम:

104. ॐ ह्रीं दुर्गाय नम:

105. ॐ ह्रीं मुण्डिने नम:

106. ॐ ह्रीं वैद्याय नम:

107. ॐ ह्रीं प्रभविष्णवे नम:

108. ॐ ह्रीं विष्णवे नम:

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