टेक्नोलॉजी। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन(ISRO) ने श्रीहरिकोटा के अंतरिक्ष केंद्र से लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान (SSLV-D2) की दूसरी विकासात्मक उड़ान को सफलता पूर्वक लॉन्च किया।
इसरो ने शुक्रवार सुबह 9 बजकर 18 मिनट पर सबसे छोटा रॉकेट SSLV-D2 को लॉन्च किया। यह प्राथमिक पेलोड के रूप में पृथ्वी अवलोकन उपग्रह (EOS-07) और दो अन्य सह उपग्रह, जानुस-1 और आजादी एटी-2 (Azadi AT-2) को आसमान में ले जाएगा।
एसएसएलवी-डी2 15 मिनट की उड़ान अवधि के बाद ईओएस-07, जानुस-1 और आजादी एटी2 उपग्रहों को 450 किलोमीटर गोलाकार कक्षा में स्थापित करेगा।
इतना है वजन
अमेरिका का जानुस-1 सैलेलाइट भी इसमें जा रहा है, जो 10.2 किलोग्राम का है। इसके अलावा भारतीय स्पेस कंपनी स्पेसकिड्स का AzaadiSAT-2 जा रहा है, जो 8.7 किलोग्राम का है।
आजादीसैट को देश के ग्रामीण इलाकों से आने वाली 750 लड़कियों ने मिलकर बनाया है। इसमें स्पेसकिड्ज के वैज्ञानिकों ने उनकी मदद की है।
SSLV के बारे में
SSLV की लंबाई 34 मीटर है और इसका व्यास 2 मीटर है। SSLV का वजन 120 टन है।
SSLV 10 से 500 किलो के पेलोड्स को 500 किलोमीटर तक पहुंचा सकता है। SSLV सिर्फ 72 घंटे में तैयार हो जाता है।
SSLV के लिए अलग पोर्ट
फिलहाल SSLV को श्री हरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर के लॉन्च पैड एक से छोड़ा गया है। इस रॉकेट की लॉन्चिंग के लिए अलग से स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च कॉम्प्लेक्स बनाया जा रहा है।
तमिलनाड़ु के कुलाशेखरापट्नम में नया स्पेस पोर्ट बन रहा है। फिर SSLV की लॉन्चिंग वहीं से होगी।
इसलिए पड़ी जरूरत
SSLV की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि छोटे सैटेलाइट्स को लॉन्च करने के लिए PSLV के बनने की प्रतीक्षा करनी पड़ती थी और वह महंगा भी पड़ता था।
उन्हें बड़े सैटेलाइट्स के साथ असेंबल करके भेजना होता था। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर छोटे सैटेलाइट्स काफी ज्यादा तादात में आ रहे हैं।
उनकी लॉन्चिंग का बाजार बढ़ता जा रहा है। इसलिए इसरो ने यह रॉकेट बनाया। एसएसएलवी रॉकेट के एक यूनिट पर 30 करोड़ रुपये का खर्च आएगा। जबकि PSLV पर 130 से 200 करोड़ रुपये आता है।
इसरो द्वारा डिजाइन
EOS-07 को इसरो द्वारा डिजाइन, विकसित और निर्मित किया गया है। नए प्रयोगों में एमएम-वेव ह्यूमिडिटी साउंडर और स्पेक्ट्रम मॉनिटरिंग पेलोड शामिल हैं।
जानुस-1 अंतरिक्ष अमेरिका से जुड़ा है। यह आजादी एटी2 स्पेस किड्स इंडिया, चेन्नई में देशभर की करीब 750 छात्राओं का संयुक्त प्रयास है।
पिछले साल अगस्त में पहला SSLV मिशन असफल हो गया था और कंपन गड़बड़ी के चलते उपग्रहों को सही कक्षा में स्थापित नहीं किया जा सका। फिलहाल इस प्रोजेक्ट पर पूरी टीम को बधाई दी जा रही है।
Also Read: OLA Electric Bike होने जा रही है लॉन्च, एक बार चार्ज करने पर चलेगी 174 किलोमीटर