Holika Dahan: मध्यप्रदेश के सिरोंज में सैकड़ों साल से एक परंपरा मनाई जाती है जिसमें बंदूक से Holika Dahan किया जाता है। बताया जाता है की यह बड़ी परम्परा होलकर राज्य में रावजी की होली कहलाती थी। होलकर राज्य के कानूनगो परिवार ने बंदूक से फायर करके होलिका जलायी जाती है।
मध्यप्रदेश में हर तीज त्योहार पर अलग अलग परंपराएं देखने को मिलता है। होली का त्योहार पूरे प्रदेश में काफी धूमधाम से मनाया जाता है। प्रदेश में ही हर जगह अलग अलग तरीकों और परंपराओं से लोग होली का त्योहार मनाते हैं।
कहां मनाई जाती है ऐसी Holika Dahan ?
ऐसी ही एक परंपरा मध्यप्रदेश के विदिशा जिले के सिरोंज में होलकर शासन के समय से चली आ रही है। प्रदेश के अन्य स्थानों पर भले ही होलिका दहन माचिस या मशाल से जलाई जाती हो, लेकिन सिरोंज में Holika Dahan बंदूक की गोली से किया जाता है। सदियों पुरानी इस परंपरा का निर्वहन इस बार भी किया गया था। सोमवार रात एक बजे मुहूर्त अनुसार इस बार होलिका दहन किया गया।
सिरोंज में सबसे पुरानी और बड़ी होली पचकुंइया हनुमान मंदिर के पास जलाई जाती है। इस होली का दहन माचिस से नहीं ब्लकि बंदूक से होता है। Holika Dahan के पहले होली की पूजा पं. नलिनीकांत शर्मा द्वारा करवाई जाती है। होली सजाकर उसके पास घास का ढेर रखा जाता है, और फिर उसी घास के ढेर को निशाना बनाकर बंदूक से गोली दागी जाती है।
जिससे घास में चिंगारी लगते ही, तत्काल वह आग सामने सजी होली में डाली जाती है। होली के जलते ही उल्लास उमड़ पड़ता है। इसी होली की आग से शहर की अन्य होली और घर-घर में जलाई जाने वाली होली की आग भी सुलगती है।
क्यूँ मनाई जाती है ऐसी Holika Dahan ?
जानकार बताते हैं कि तकरीबन 150 वर्ष पूर्व से ही सिरोंज में रावजी की हवेली के पीछे मुन्नू भैया की हवेली हुआ करती थी। जिसे 52 चौक की हवेली कहा जाता था। यहां की बात करे तो यहां कानूनगो रहा करते थे। ये मुन्नू भैया के नाम से जाना जाता था। ये दौर टोंक रियासत का दौर हुआ करता था। टोंक रियासत के नवाब ने होलिका दहन पर रोक लगा दी थी। जिससे हिन्दुओं की भावनाएँ आहत हुई थी।
अंदर ही अंदर सभी गुस्सा रहे थे कि सांकेतिक ही सही होली तो जलना चाहिए, इसलिए कुछ सनातनी लोगों ने योजना बनाई। चुपके से लकड़ी-कंडों का ढेर लगाकर उसे सूखी घास के गट्ठों से ढंक दिया गया। ऊपर से यह ढेर घास का था। योजनाबद्ध तरीके से धार्मिक परंपराओं का निर्वहन करने Holika Dahan की रात माथुर परिवार के सदस्यों ने इसी ढेर पर बंदूक चला दी, जिससे होली जल उठी। इसके बाद त्योहार की रस्म पूरी हुई, तभी से यहां होलिका दहन बंदूक से करने की परंपरा शुरू हो गई थी।
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वर्तमान में भी कानूनगो माथुर परिवार इस परंपरा का निर्वहन कर रहा है। इस परिवार के वंशज महेश माथुर ने एक कथा भी इस संदर्भ में बताई। उन्होंने बताया कि जब सिरोंज में नवाबी शासन आया था तब, तो इस परंपरा पर रोक लगाने का प्रयास किया था। तब होली के चबूतरे पर घास का एक ढेर में लगा दिया। जिस पर उनके पूर्वजों ने बंदूक से फायर कर होली जला दी थी। उसके बाद पीढ़ी दर पीढ़ी यह परंपरा निरंतर चली आ रही है।
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