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विश्व मधुमक्खी दिवस : मधुमक्खियों पर ही निर्भर है इंसानों का अस्तित्व 

पूरी दुनिया की जलवायु में जिस तरह का परिवर्तन देखने को मिल रहा है, यदि अगले कुछ वर्षों में उसे नहीं रोका गया तो आने वाले कुछ वर्षों में परागण करने वाले जीवों के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगेगा। परागण करने वालो जीवों (मधुमक्खियों) के महत्व पर महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइन्सटीन ने कहा था कि “यदि धरती से मधुमक्खियां खत्म हो गईं, तो मानव जाति पृथ्वी पर चार साल से अधिक जीवित नहीं रह सकती है।”

आइंस्टीन के कथन से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि यह छोटा सा जीव हमारे पारिस्थितिक तंत्र में किस तरह से महत्वपूर्ण है। मानव जीवन में इनका कितना महत्व हैं और यह दैनिक जीवन में क्या भूमिका निभाती हैं। इसका अंदाजा अल्बर्ट आइंस्टीन के कथन से ही लगाया जा सकता है। 

20 मई को मनाया जाता है विश्व मधुमक्खी दिवस : 

इन नन्हें जीवों के महत्व को आम लोगों को समझाने पूरी दुनिया में 20 मई का दिन विश्व मधुमक्खी दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन मानव जाति के अस्तित्व यानि मधुमक्खियों और परागण के महत्व, मानव समुदाय के सतत विकास में उनके योगदान के साथ ही उनके संरक्षण के प्रति लोगो में जागरूकता बढ़ाने के लिए इस दिन को World Bee Day के रूप में प्रतिवर्ष मनाया जाता है।

भारतीय उपमहाद्वीप में पाई जाने वाली मधुमक्खियां : 


आइए जानते हैं कि भारतीय उपमहाद्वीप में पाई जाने वाली मधुमक्खियों के बारे में और उनकी प्रकृति किस तरह की होती है? भारतीय उपमहादीप में मधुमक्खियो की मुख्यत: 5 प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जिन्हें इनके आकार प्रकार के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है, 

1. एपीस सेरेना इंडिका : इसको सतपुड़ी, सतघरा,सतमुड़ी आदि स्थानीय नामों से भी जाना जाता है।

2. एपीस डोरसेटा: इसे यहां भौर, भंवर/बड़ी मक्खी के नाम से भी जानते हैं।
3. एपीस फ्लोरिया: इसे डार्वा, डंडा मच्छो, मोहरस, छोटी मक्खी आदि नाम से भी जानते हैं।
4. एपीस ट्राईगोना : यह डंक रहित मधुमक्खी है, जिसे कोथी, कोतीयार आदि स्थानीय नामों से भी जाना
जाता है।
5. मेलीफेरा: यह विदेशी मधुमक्खी है, जिसे इटालियन मधुमक्खी के नाम से भी जानते हैं।

इनमें से सभी मधुमक्खियां फूलों का परागण एवं शहद एकत्रीकरण करने में मदद करती हैं। इन 5 प्रजातियों में से पहली दो प्रजातियां एपीस सेरेना इंडिका, एपीस डोरसेटा जंगली एवं आक्रामक प्रवृत्ति की हाेती हैं। इस कारण इन्हें पाला नहीं जा सकता है। 

वहीं देश में लंबे समय से हो रही रासायनिक खेती और खेती में हो रहे रासायनिक कीटनाशकों के प्रयोग के कारण मधुमक्खियां खत्म होने की कगार पर आ गई हैं। इस कारण रासायनिक खेती पर लगाम लगाने की बहुत अधिक जरूरत है। वहीं इन सभी के कारण देशी प्रजाति की मधुमक्खियां भी आज बहुत कम देखने को मिल रही हैं।


आलेख : आनंद पटेल, पर्यावरणविद

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