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अगर दादा नहीं होते तो पंचायत भवन में फंसा कोई भी आदमी जीवित नहीं बचता, प्रत्यक्षदर्शी सत्येंद्र रावत की जुबानी गृहमंत्री के शौर्य की गाथा 

यदि दादा (डाॅ. नरोत्तम मिश्रा, गृहमंत्री मप्र) नहीं होते तो पंचायत भवन में फंसा कोई भी आदमी जीवित नहीं बच पाता। उन्हीं की हिम्मत के बदौलत बचाव टीम बहाव के तेज पानी में लोगों को बचाने के लिए उतरी और ठीक समय पर जाकर पंचायत भवन में फंसे नौ लोगों को बचा लिया। यह बातें दतिया निवासी सत्येन्द्र रावत उर्फ मिस्त्री ने StackUmbrella से विशेष बातचीत में कहीं।

दरअसल 6 दिन पहले 4 अगस्त को भारी बारिश के बीच गृहमंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा अचानक ही दतिया पहुंच गए। बताया जा रहा है कि मौसम को देखते हुए पायलट ने भोपाल से दतिया तक हेलिकॉप्टर में उड़ान भरने में असमर्थता जाहिर कर दी थी। लेकिन डॉ. मिश्रा को बाढ़ पीड़ितों की इतनी चिंता थी कि उन्होंने ट्रेन से ही दतिया जाने का फैसला कर लिया। 

गृहमंत्री बोले नाव से चलेंगे और सब हो गए हैरान : 
सत्येंद्र आगे बताते हैं कि दतिया पहुंचकर गृहमंत्री सीधे ही बचाव कार्य में जुट गए और लोगों की हर संभव मदद करने लगे। इसी बीच किसी ने जानकारी दी कि पंचायत भवन में 9 लाेग मकान की छत पर फंसे हुए हैं और यदि समय पर मदद न पहुंचाई गई तो सबका बचना मुश्किल हो जाएगा। ऐसे में वायुसेना के बचाव दस्ते के दूर होने के कारण गृहमंत्री ने एनडीआरएफ की टीम के साथ बाढ़ के पानी में उतरने का फैसला कर लिया।


जैसे ही गृहमंत्री ने नाव पर चलने की बात कही। हर आदमी हैरान होकर उनका चेहरा देखने लगा। क्योंकि तब बाढ़ का पानी लगभग 10 फीट तक भर चुका था और पानी का बहाव लगभग 40 से 50 किमी का था। ऐसे में नाव से पंचायत भवन तक जाना खतरे से खाली नहीं था। 

गृहमंत्री की शौर्य भरी बातों से सबको मिली हिम्मत : 
सत्येंद्र की मानें तो शुरू में सबने उन्हें समझाने का बहुत प्रयास किया कि नाव से आगे जाना कदम जान को जोखिम में डालने वाला होगा। बोट को पानी में उतारने पर बोट चालक के हाथ पैर भी फूल रहे थे। लेकिन गृहमंत्री ने अपनी बात पर जोर देकर कहा कि आगे चलो जो होगा देखा जाएगा। मैं जनसेवक हूं और इन लोगों के प्राणों की रक्षा करना भी मेरी जिम्मेदारी है। 

(प्रत्यक्षदर्शी सत्येंद्र रावत)

यदि आगे कुछ होता भी है तो आप अकेले नहीं डूबोगे। हम भी आपके साथ डूबेंगे। गृहमंत्री की इन हिम्मत भरी बातों ने वहां मौजूद हर व्यक्ति में एक नई जान फूंक दी और बोट चालक ने बोट तैयार की और गृहमंत्री तुरंत बोट में बैठ गए। फिर उनका निजी सुरक्षाकर्मी और बचाव दल के लोग और रास्ते की जानकारी न होने के कारण मुझे भी बोट में बैठाया गया। 

शुरू में तो बोट सामान्य रूप से चली लेकिन जैसे ही बोट पानी के तेज बहाव में गई। धारा के विपरीत होने के कारण आगे बढ़ने में बहुत समस्या हो रही थी। बोट चालक पूरी शक्ति के साथ बोट को आगे ले जाने का प्रयास कर रहा था। इस दौरान गृहमंत्री साहस और शौर्य से भरी बातों से सबकी हिम्मत बांध रहे थे। बड़ी मुश्किल से हम सब लोग पंचायत भवन पहुंचे और इस दौरान बोट फेंसिंग के कारण पंचर हो गई और वहां स्थित एक पेड़ से टकराकर डेमेज हो गई।

सबको सुरक्षित निकालकर आखिर में बाहर आए गृहमंत्री : 
सत्येंद्र के अनुसार इस दौरान हम सब लोग पंचायत भवन तक पहुंच चुके थे। पानी लगभग 8 से 10 फीट रहा होगा और बहाव भी बहुत तेज था। ऐसा लग रहा था कि बस अगले ही पल सब खत्म होने वाला है। इसी दौरान हेलीकॉप्टर से बचाव दल हम लोगों को बचाने आ गया। गृहमंत्री ने सबसे पहले तीन बच्चियों और महिलाओं गीता वंशकार, भावना वंशकार, मुस्कान वंशकार को वहां से बाहर निकाला।

बाद में बाकी के लोगों को बाहर निकाला गया।अनिल रावत, रामरतन रावत, याेगेश पाल, मुकेश पाल, नरेंद्र पाल, मुरारी वंशकार को सुरक्षित हेलीकॉप्टर से निकाला गया। बोट को पानी में उतारने प अंत में स्वयं दादा अपने अदम्य साहस और शौर्य की एक वीरगाथा लिखकर वहां से बाहर निकल आए। सत्येन्द्र अपनी इस बात को फिर से दोहराते हुए कहते हैं कि यदि दादा नहीं होते तो उस दिन पंचायत भवन का कोई भी व्यक्ति जीवित नहीं बचता।

दतिया में अब जनजीवन सामान्य होने लगा है। बाढ़ का पानी लगभग हर जगह से नीचे उतर गया है, लेकिन अब भी क्षेत्र में एक एक फीट तक कीचड़ और मलबा लोगों की परेशानी बढ़ा रहा है। लेकिन इन सबके बीच लोगों के बीच अब भी इस बात को लेकर चर्चा हो रही है। दतिया के हर घर में अपने जनप्रतिनिधि के इस काम की चर्चा है। ऐसा ही बिरला ही होता है कि दूसरों की जान बचाने के लिए कोई जनप्रतिनिधि अपनी जान खतरे में डाल दे।

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