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महाराष्ट्र के अष्टविनायक मंदिर जो स्वयंभू हैं, जगत प्रसिद्ध है यह मंदिर

प्रथम पूज्य श्री गणेश को कई नामों से जाना जाता है, बप्पा, सिद्धि विनायक, लंबोदर, गजानन और विघ्नहर्ता। श्री गणेश के 8 मंदिर जो महाराष्ट्र के पूणे के समीप अष्ट विनायक के नाम से जाने जाते है।

विघ्नहर्ता के अष्ट विनायक स्वरुप के दर्शन करने के लिए आपको 1000 किलोमीटर का सफर तय करना होगा कहा जाता है कि इन मूर्तियों ने स्वयंभू दर्शन दिए थे। इन मूर्तियों के दर्शन करने के लिए मोरगांव से यात्रा शुरु होकर यहीं पर समाप्त होती है क्योंकि यह मूर्तियां मिलने के क्रम में एक समूह में स्थापित है इसलिए इन्हें अष्टविनायक नाम दिया गया है।

अष्टविनायक मंदिरों का क्रम इस प्रकार है

1. मयूरेश्र्वर मंदिर

अष्टविनायक मंदिरों की यात्रा का पहला पड़ाव मयूरेश्र्वर मंदिर है जिसे मोरेश्र्वर के नाम से भी जाना जाता है। पूणे से 80 किलोमीटर की दूरी पर एक मोरेगांव नाम का गांव है जहां यह मंदिर बना हुआ है। मंदिर की बनावट कुछ इस प्रकार है की मंदिर के अंदर चार कोनों में मीनारें और लंबे पत्थर की दीवारें है। मंदिर के चारों दरवाजों को चारों युगों का प्रतीक माना जाता है। मंदिर के मुख्यद्वार पर शिव वाहन नंदी की मूर्ति स्थापित है नंदी का मुख श्री गणेश की और है।

श्री गणेश की प्रतीम बैठी मुद्रा में है उनकी सुंड बांये तरफ है उनका स्वरुप चतुर्भुजाधारी का बना हुआ है और उनके तीन नेत्र भी दिखाए गए है। मन्यताओं के अनुसार श्री गणेश  सिंधुरासुर नामक राक्षस का वध करने के लिए मयूर पर सवार होकर आए थे। इसलिए ही इस मंदिर का नाम मयूरेश्र्वर रखा गया।

2. सिद्धिविनायक मंदिर

इस यात्रा का दूसरा पड़ाव है सिद्धिविनायक मंदिर जो पुणे से करीब 48 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह पुणे का सबसे पुराना मंदिर माना जाता है जो पहाड़ की चोटी पर बना हुआ है जिसका द्वार उत्तर दिशा की और खुलता है। मान्यता के अनुसार भगवान विष्णु ने यही पर सिद्धियां हासिल की थी। श्री गणेश की मूर्ति लगभग 3 फीट ऊंची और ढाई फीट चौड़ी है और उनकी सुड़ सीधे हाथ की और है।

3. बल्लालेश्र्वर मंदिर

 इस यात्रा का तीसरा पड़ाव मुंबई-पुणे हाईवे से होते हुए पाली से टोयन में गोवा राजमार्ग पर नागोथाने से पहले 11 किलोमीटर दूर स्थित है। मन्याता के अनुसार प्राचीन काल में बल्लाल नाम का भक्त हुआ करता था। उसके घर वालों ने श्री गणेश की प्रतीमा के साथ उसे जंगल में फेंक दिया था, तो बल्लाल गणेशजी के मंत्रों के साथ अपना जीवन-यापन काटा करता था। श्री गणेश बल्लाल से प्रसन्न होकर दर्शन देने आए और बल्लाल ने श्री गणेश से प्रार्थना वह यहां पर सदा के लिए रुक जाएं तब से ही इस मंदिर में श्री गणेश बल्लालेश्र्वर नाम से यहां पर विराजमान है।

4. वरदविनायक गणपति

इस यात्रा का चौथा पड़ाव वरदविनायक मंदिर है जो की महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के कोल्हापुर क्षेत्र में बसा है। यह मंदिर एक पर्वतीय गांव महाड़ पर स्थित है।इस मंदिर का अपना एक पौराणिक महत्व है, लेकिन आधुनिक काल में इस मंदिर का निर्माण सन् 1725 में सूबेदार रामजी बिलवलकर ने करवाया था। मान्यताओं के अनुसार यहां पर मांगी गयी सभी इच्छाएं पूरी हो जाती है।

5. चिंतामणि मंदिर

इस यात्रा का पांचवा पड़ाव चिंतामणि मंदिर है जो पुणे जिले से लगभग 30 किलोमीटर दूर हवेली इलाके नाम की जगह बना हुआ है। मान्यता के अनुसार यदि किसी का मन बहुत विचलित हो और जीवन में दुख ही दुख हो तो इस मंदिर में आने पर उसकी सभी समस्याँए दूर हो जाएंगी। इस मंदिर में विराजमान गणपति को एक माता की तरह माना जाता है क्योंकि चिंतामणि गणपति के दर्शन मात्र से ही शारीरिक, आर्थिक और मानसिक चिंताएं समाप्त हो जाती हैं।

6. श्री गिरजात्मज गणपति मंदिर

इस यात्रा का छठा पड़ाव है श्री गिरजात्मज मंदिर जो की पुणे- नासिक राजमार्ग पर करीब 90 किलोमीटर की दूरी पर लेनयादरी पहाड़ पर स्थित है। गिरजात्मज का अर्थ है गिरिज यानी माता पार्वती के पुत्र गणेश। इस मंदिर पूरे मंदिर को एक बड़े पत्थर को काटकर बनाया गया है। यहां पर18 बौद्ध गुफाएं है जिनमें से 8वीं गुफा में श्री गणेश की स्थापित है। इन गुफाओं को गणेश गुफा भी कहा जाता है।   

7. विघ्नेश्वर गणपति मंदिर

इस यात्रा के सातंवे पड़ाव में आपको विघ्नेश्वर गणपति जी के दर्शन करने का मौका मिलेगा जो की पुणे के ओझर जिले में जूनर क्षेत्र में है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस क्षेत्र में विघनासुर नामक असुर था जो की संतों को प्रताड़ित करता था श्री गणेश जी के हाथों से इस असुर का वध हुआ तब से ही श्री गणेश को विघ्नहर्ता के नाम से पुकारने लगे।

8. महागणपति मंदिर

इस यात्रा का आठवां और अंतिम पड़ाव है महागणपति जी के दर्शन से जो पुण- अहमदनगर राजमार्ग पर 50 किलोमीटर की दूरी पर है। इस मंदिर का द्वार बहुत विशाल और सुदंर है जो पूर्व दिशा की और खुलता है। प्रचलित मान्यताओं के अनुसार पुराने समय में विदेशियों ने यहां पर आक्रमण कर दिया था तो इसलिए मंदिर की प्रमुख मूर्ति तहखाने में छुपा दी थी।

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