AIADMK: पार्टी विवाद को लेकर पलानीस्वामी को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी राहत दी है। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को मद्रास हाई कोर्ट के आदेशानुसार बरकरार रखते हुए, पनीरसेल्वम की याचिका को खारिज कर दिया है।
सुप्रीम कोर्ट से AIADMK के नेता पलानीस्वामी को बड़ी राहत दी है। SC ने गुरुवार को मद्रास हाई कोर्ट के उस फैसले को सही ठहराया, जिसमें पलानीस्वामी को पार्टी के नेता के रूप में बहाल किया गया था। इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने पनीरसेल्वम के उस याचिका को खारिज किया, जिसमें उन्होंने मद्रास हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी।
पलानीस्वामी के वकील बालाजी श्रीनिवासन ने कहा हैं, पनीरसेल्वम की याचिका खारिज कर दी गई है। SC ने 2 सितंबर के मद्रास हाईकोर्ट की एक खंडपीठ द्वारा पारित आदेश पर मुहर लगा दी गई थी, SC से मिली इस बड़ी राहत के बाद पलानीस्वामी ने चेन्नई में अपने समर्थकों के साथ जमकर जश्न मनाया।
AIADMK: पनीरसेल्वम हुए काफी कमजोर, जिसका फायदा पलानीस्वामी को हुआ
AIADMK: 14 जून को जिला सचिव की मीटिंग के बाद से ही पार्टी में सिंगल लीडरशिप की मांग तेज हो गई थी। दोनों गुटों के द्वारा इसे सुलझाने के लिए कई बार बातचीत की गयी परंतु वो असफल रही। पनीरसेल्वम ने पलानीस्वामी को एक लेटर भी लिखा था जिसमें पार्टी की भ्रमित करने वाली हालत का हवाला देते हुए जनरल कमेटी की बैठक रद्द करने को कहा गया था।
Celebrations outside the #AIADMK office. Chorus growing lounder for #EPS as the sole leader of the party pic.twitter.com/ZLAMzezKuc
— Poornima Murali (@nimumurali) February 23, 2023
हालांकि, पलानीस्वामी ने इसे नहीं माना और तब से ही पनीरसेल्वम गुट ने जनरल कमेटी के सदस्यों के 23 प्रस्ताव पिछले महीने खारिज कर दिए थे। पलानीस्वामी का खेमा सिंगल लीडरशिप पर 23 जून को बैठक में प्रस्ताव पारित करने वाला था, इसके विरोध में पनीरसेल्वम ने भी कहा कि पार्टी नियम के अनुसार यह काम उनके हस्ताक्षर के बिना नहीं हो सकता।
पनीरसेल्वम की तुलना में पलानीस्वामी को बड़ी संख्या में पार्टी विधायकों और जिला सचिवों का समर्थन प्राप्त था। पलानीस्वामी खेमे में करीब 75 जिला सचिव, 63 विधायक और 2190 जनरल काउंसिल मेम्बर्स शामिल थे। वहीं लम्बे समय से चल रहे ड्रामे के बीच पनीरसेल्वम के कुछ वफादार भी पलानीस्वामी से मिल गए थे।
कब से शुरू हुई पार्टी में गुटबाजी ?
बता दें कि AIADMK के भीतर नेतृत्व को लेकर विवाद की शुरुआत 2016 से हुई। पार्टी की प्रमुख रहीं जयललिता के निधन के बाद पार्टी के साथ-साथ सरकार में दो गुट बन गए थे। पलानीस्वामी मुख्यमंत्री बने तो पनीरसेल्वम डिप्टी सीएम बनाया गया था।
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वहीं पार्टी में पनीरसेल्वम को समन्वयक बनाया और पलानीस्वामी को संयुक्त समन्वयक भी बनाया गया। कुछ ही दिनों बाद इन दोनों नेताओं को बीच मतभेद शुरू हो गयी थी। देखते ही देखते मतभेद इतना बढ़ गया की दोनों ही नेता आमने-सामने आ गए। इसके बाद ये सारा का सारा मामला हाई कोर्ट तक पहुंचा गया था।
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