Science News: खुश रहने के लिए किस चीज की जरूरत होती है। अक्सर लोग किसी ना किसी बात को लेकर परेशान दिखते हैं। लोग छोटी-छोटी चीजों में भी खुशियां खोज लेते हैं।
लोगों का कहना है कि खुशी पैसों से नहीं खरीदी जा सकती है। कम तनख्वाह पर भी नाखुशी होना शायद कुछ लोगों के लिए वजह हो सकती है या किसी चीज को नहीं पा सकना भी एक कारण हो सकता है। (Science News)
एक रिसर्च के अनुसार पैसों से ना केवल खुशी मिलती है, बल्कि जैसे-जैसे दौलत बढ़ती है, प्रसन्नता का ग्राफ भी बढ़ता जाता है। सालाना इनकम 80 लाख से ऊपर जाते ही खुशी का भी एकदम से बढ़ने लगती है और बढ़ती चली जाती है।
इतने रुपयों से मिलेगी खुशी (Science News)
नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री डेनियल कान्हमैन ने 33 हजार से ज्यादा अमेरिकी वयस्कों को शोध का हिस्सा बनाया, जिनकी सालाना इनकम 10 हजार अमेरिकी डॉलर से कम थी।
यानी भारतीय मुद्रा में करीब सवा 8 लाख रुपए। 18 से 65 साल के इन लोगों की प्रतिक्रिया के बाद साइंटिस्ट ने मानाकि हां, दौलत का खुश रहने से नाता है। (Science News)
ये वही नोबेल विजेता हैं, जिन्होंने साल 2010 में कहा था कि पैसों से खुशी का कोई लेनादेना नहीं है। ताजा रिपोर्ट नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज में छपी। (Science News)
ऐसा इंसान जिससे साइंस हैरान
साल 1946 में जब हमारा देश ब्रिटिश हुकूमत से आजादी की लड़ाई लड़ रहा था। तभी फ्रांस के सुदूर गांव में एक बच्चे का जन्म हुआ। मैथ्यू रिचर्ड नाम के इस बच्चे के माता-पिता फिलॉसफी पढ़ाते थे।
मैथ्यू बाकी फ्रेंच बच्चों की तरह ही सामान्य स्कूल-कॉलेज गया और मॉलिक्यूलर जेनेटिक्स में पीएचडी कर डाली। ये बड़ी डिग्री उस दौर में बड़ी नौकरी दिलाने के लिए काफी बढ़िया थी, लेकिन ये फ्रांसीसी युवक नाखुश था।
आनंदित रहना आने लगा
खुशी की तलाश में मैथ्यू ने फ्रांस छोड़ा और तिब्बत पहुंच गए। वहां वे दलाई लामा के फ्रेंच दुभाषिए का काम करने लगे। साथ में वे मेडिटेशन किया करते थे। बौध्द धर्म से जुड़ी बाकी चीजें सीखते। (Science News)
धीरे-धीरे वक्त निकलता गया। उनके पास आने वाले लोग भी अलग तरीके से खुश रहने लगे। मैथ्यू खुद मानने लगे कि उन्हें हरदम खुश रहने का तरीका आ गया है और कोई भी बदलाव उन्हें उदास नहीं करता है। (Science News)
मस्तिष्क में पैदा होंगी गामा किरणें
विस्कॉन्सिन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने इसकी जांच की ठानी। वहां के न्यूरोलॉजिस्ट्स ने उनकी खोपड़ी पर 256 सेंसर लगा दिए। इससे भीतर हो रही हर एक हलचल का पता चल सके। (Science News)
ये शोध 12 सालों तक चली. इसमें दिखा कि जब भी मॉन्क ध्यान करते, उनका मस्तिष्क गामा विकिरणें पैदा करता था। ये ध्यान और याददाश्त को बढ़ाने में मदद करती है। (Science News)
लेफ्ट ब्रेन था ज्यादा एक्टिव
सेंसर के जरिए ये भी दिखा कि मैथ्यू के ब्रेन का बायां हिस्सा जिसे प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स कहते हैं। दाहिने भाग से काफी ज्यादा एक्टिव था। ये हिस्सा क्रिएटिविटी से तो जुड़ा ही है, साथ ही खुशी से भी जुड़ा है।
साइंटिस्ट्स के दल ने ऐसा कभी नहीं देखा था। आखिरकार शोध करने वालों ने मान लिया, मैथ्यू के अंदर इतनी ज्यादा खुशी है कि निगेटिविटी के लिए कोई स्थान ही बाकी नहीं है। (Science News)
यही रिसर्च बाकी बौध्द संतों पर भी हुई। इस दौरान पाया गया कि लंबे वक्त तक ध्यान की प्रैक्टिस करने वालों के दिमाग में काफी सारे बदलाव होते हैं। यहां तक कि लगातार तीन हफ्तों तक 20 मिनट तक ध्यान से भी दिमाग के अंदर परिवर्तन आने लगे। (Science News)
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खुश रहने का आसान तरीका
रिचर्ड की किताब हैप्पीनेस ए गाइड टू डेवलपिंग लाइफ्स मोस्ट इंपोर्टेंट स्किल में बताया गया है कि कैसे आम लोग भी दिन के सिर्फ 15 मिनट निकालकर खुश रह सकते हैं। लेकिन इसके लिए ट्रेनिंग की जरूरत होती है।
रोज सुबह सबसे पहले कोई खुशी की बात सोचें। हर दिन 10 से 15 मिनट तक सिर्फ और सिर्फ अच्छी बातें सोचना शुरू करें। पहले-पहल दिमाग यहां-वहां भागेगा, उस पर काबू पाकर दोबारा प्यार और खुशी वाली घटनाओं के बारे में सोचें।
सिर्फ तीन हफ्तों के भीतर ब्रेन में परिवर्तन होने लगेगा। आप पाएंगे कि मुश्किल हालातों में भी दिमाग कंट्रोल कोए बिना सामान्य रहने लगता है। (Science News)