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Chandrayaan-3 का Propulsion Module धरती की ऑर्बिट में आया वापस

Propulsion Module

Propulsion Module: चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग के बाद भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने एक बार फिर सभी को चौंका दिया। इस बार, इसरो ने चांद के चक्कर लगा रहे Propulsion Module को पृथ्वी की कक्षा में वापस लौटा दिया। इस प्रयोग से इसरो ने साबित कर दिया कि वह अपने अंतरिक्ष यान को भी वापस बुला सकता है।

इसरो द्वारा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर एक पोस्ट किया गया। इसरो के इस अनूठे प्रयोग में प्रोपल्शन मॉड्यूल को चंद्र कक्षा से पृथ्वी की कक्षा में लाया गया। चंद्रयान-3 मिशन का मुख्य उद्देश्य चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास सॉफ्ट लैंडिंग करना और विक्रम और प्रज्ञान पर यंत्रीकृत प्रयोग करना था। इस अंतरिक्ष यान को 14 जुलाई, 2023 को लॉन्च किया गया था।

किस तरह लाया गया चंद्रमा से पृथ्वी तक Propulsion Module

Propulsion Module

Propulsion Module ने चंद्रमा के चारों ओर उड़ान भरी। इसकी कक्षा 150×5112 किमी थी। पहले, यह 100 किमी की ऊंचाई पर कक्षा में 2.1 घंटे में चंद्रमा की परिक्रमा करता था। इसके बाद Propulsion Module 7.2 घंटे में लगाने लगा। इसके बाद वैज्ञानिकों ने लगाने लगा में मौजूद ईंधन की जांच की। इसके बाद 13 अक्टूबर को दूसरी कक्षा बदलकर 1.8 लाख x 3.8 लाख किलोमीटर कर दिया गया। इसे ट्रांस-अर्थइंजेक्शन मैन्यूवर कहा जाता है।

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फिर इसमें 22 नवंबर को ऑर्बिट सही किया गया। मध्याह्न रेखा 1.15 मिलियन किमी थी। जबकि एपोजी हमसे केवल 3.8 मिलियन किलोमीटर दूर है। अब वह अन्य ग्रहों, चंद्रमाओं, उल्काओं और क्षुद्रग्रहों के खतरों से दूर एक स्थान से पृथ्वी का अवलोकन करता है। योजना के अनुसार, SHAPE पेलोड पृथ्वी की ओर घूमाया गया।

23 अगस्त को हुई थी चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग

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Credit: Google

23 अगस्त को, विक्रम लैंडर ने चंद्रमा की सतह पर ऐतिहासिक लैंडिंग की, उसके बाद प्रज्ञान उतरा गया। इसरो ने एक बयान में कहा, “चंद्रयान -3 मिशन के उद्देश्य पूरी तरह से हासिल कर लिए गए हैं।” उन्होंने कहा कि Propulsion Module का मुख्य उद्देश्य लैंडर को जियोस्टेशनरी ट्रांसफर ऑर्बिट (जीटीओ) से चंद्रमा की अंतिम ध्रुवीय कक्षा में लॉन्च करना, लैंडर मॉड्यूल को अंतिम ध्रुवीय गोलाकार कक्षा में प्रवेश करना और मॉड्यूल को अलग करना था। अंतरिक्ष एजेंसी ने कहा कि अलग होने के बाद, प्रोपल्शन मॉड्यूल ने “स्पेक्ट्रो-पोलरीमेट्री ऑफ हैबिटेबल प्लेनेट अर्थ” पेलोड भी संचालित किया।

उन्होंने कहा कि मूल योजना इस पेलोड को Propulsion Module के जीवन के दौरान लगभग तीन महीने तक संचालित करने की थी, लेकिन चंद्र कक्षा में एक महीने से अधिक समय तक ऑपरेशन के बाद, प्रोपल्शन मॉड्यूल के पास 100 किलोग्राम से अधिक ईंधन शेष था। इसरो ने कहा कि उसने भविष्य के चंद्र अभियानों के लिए अधिक जानकारी एकत्र करने के लिए प्रोपल्शन मॉड्यूल में उपलब्ध ईंधन का उपयोग करने का निर्णय लिया है। उनके अनुसार, प्रोपल्शन मॉड्यूल वर्तमान में पृथ्वी की कक्षा में हैं और 22 नवंबर को 1.54 मिलियन किलोमीटर की ऊंचाई पर चंद्र कक्षा में पृथ्वी के निकटतम बिंदु को पार कर लिया।

Propulsion Module 17 अगस्त को हुआ था विक्रम लैंडर से अलग

Propulsion Module

Propulsion Module 17 अगस्त, 2023 को विक्रम अंतरिक्ष यान से अलग हो गया। ऐसा कहा जाता था कि इसका जीवनकाल 3 से 6 महीने का था। लेकिन इसरो ने ऐसा दावा किया था वह अभी भी वर्षों तक काम कर सकता है। अब यह स्पष्ट है कि परमाणु तकनीक की मदद से, प्रोपल्शन मॉड्यूल अंततः कई वर्षों तक चंद्रमा की परिक्रमा करने में सक्षम होंगे।

जब चंद्रयान-3 लॉन्च किया गया तब प्रोपल्शन मॉड्यूल में 1696.4 किलोग्राम ईंधन था। फिर प्रोपल्शन मॉड्यूल की मदद से पृथ्वी के चारों ओर की कक्षा को पांच बार बदला गया। इंजन को ऑर्बिट करेक्शन को मिलाकर छह बार चालू किया गया। इसके बाद चंद्रयान-3 चांद के मार्ग के लिए रवाना हुआ। इसका मतलब यह है कि यह ट्रांसलूनर कक्षा में पहुंच गया है।

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Propulsion Module ने कितना खर्च किया, कब और कहां?

प्रोपल्शन मॉड्यूल को चंद्रमा के चारों ओर छह बार ऑन किया गया। कुल 1546 किलोग्राम ईंधन की खपत हुई। इस प्रोपल्शन मॉड्यूल के थ्रस्टर्स को छह बार पृथ्वी के चारों ओर ऑर्बिट में ऑन किए गए। तब 793 किलोग्राम ईंधन की खपत हुई थी।  इसके बाद इंजन को चांद के चारों तरफ छह बार ऑर्बिट घटाने के लिए थ्रस्टर्स ऑन किए गए। तब 753 किलोग्राम ईंधन की खपत हुई थी। कुल 1546 किलोग्राम ईंधन की खपत हुई। जिसके बाद 150 किलो ईंधन बचा हुआ है।

इसका मतलब है कि प्रोपल्शन मॉड्यूल केवल 3 से 6 महीने तक ही नहीं बल्कि यह वास्तव में वर्षों तक काम कर सकता है। इसकी घोषणा इसरो के चेयरमैन डॉ. एस. सोमनाथ ने भी की थी। उन्होंने कहा कि उम्मीद से ज्यादा ईंधन बचा हुआ है। इसका मतलब यह है कि अगर सब कुछ ठीक रहा और कोई बड़ी समस्या नहीं रही तो प्रोपल्शन मॉड्यूल वर्षों तक काम कर सकता है। यह सब चंद्रमा के चारों ओर कक्षा के ऑर्बिट करेक्शन पर निर्भर करता है।

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