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सायबर अपराधों को रोकना चुनौती, इनकी रोकथाम के लिए पुलिस को करनी होगी बड़े पैमाने पर तैयारी : आईपीएस अतुल सिंह 

जिस तरह से सरहद पर भारतीय सेना के कंधों पर आम आदमी की सुरक्षा की जिम्मेदारी होती है। उसी तरह से देश के अंदर लोगों को सुरक्षा देने की जवाबदारी पुलिस की है। पुलिस विभाग साल के 365 दिन और दिन के 24 घंटे आम आदमी की सुरक्षा के लिए सड़कों पर मौजूद रहते हैं। पुलिस की इस कार्यशैली पर StackUmbrella ने प्रदेश के सीनियर आईपीएस ऑफिसर और सागर एसपी अतुल सिंह से विशेष बातचीत की। 

इस दौरान उन्होंने पुलिस की कार्यशैली, अपराधों की रोकथाम में नई टेक्नोलॉजी, पुलिस का आम लोगों के साथ सकारात्मक व्यवहार जैसे मुद्दों पर हमारे सवालों के जवाब दिए। इस दौरान उन्होंने आम लोगों से अपने की मन की बात साझा करते हुए कहा कि विभाग में यदि कोई अच्छा काम होता है तो जो प्रशंसा पुलिस को मिलनी चाहिए वो नहीं मिल पाती है।

लेकिन इसके विपरीत यदि कोई बड़ा अपराध घटित हो जाता है या लॉ एंड ऑर्डर बनाए रखने के लिए कोई घटना घटित हो जाती है तो आम लोगों और मीडिया का इसमें बड़ा दबाव सामने आता है। मेरा इतना ही कहना है कि दबाव डालने से पहले हमेशा दोनों पहलुओं पर नजर डाली जाए। मेरा मानना है पुलिस विभाग आम लोगों की सेवा में जो समय देता है। शायद ही कोई अन्य विभाग हो जो इतना समय आम लोगों के लिए देता हो। 

1. ऑनलाइन ही दर्ज हाे सकेंगी एफआईआर : 
आम लोगों को रिपोर्ट लिखवाने में किसी तरह की समस्या का सामना न करना पड़े इसके लिए पुलिस विभाग ने पिछले कुछ समय में कई तरह के बड़े बदलाव किए हैं। हर थाने में आम लोगों के लिए विसिटर रूम बनाए जा रहे हैं, ताकि लोगों को रिपोर्ट लिखवाने में किसी तहर की परेशानी का सामना न करना पड़े। साथ ही अब लोग सामान्य चोरी या गाड़ी चोरी होने की एफआईआर को ऑनलाइन ही दायर भी कर सकते हैं। इसके अलावा काम में पारदर्शिता रहे इसके लिए सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर सभी थानों में सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं।

2. पुलिस के प्रति नकारात्मक रवैया विभाग की बड़ी चुनौती : 
सोसायटी का जो नजरिया पुलिस के प्रति है, उसको लेकर हमें कई बार बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। पुलिस के पास बहुत से मामले ऐसे पहुंचते हैं, जिसमें पुलिस सीधा दखल नहीं दे सकती। फॉरेस्ट से जुड़े हुए मामलों और ग्रामीण क्षेत्रों में जमीन को लेकर होने वाले विवादों में हमें इसी तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। भूमि विवाद में जमीन का क्या रिकार्ड क्या है? क्या परमिशन है? इसमें न तो पुलिस विभाग कोई निर्णय दे सकता है और न ही कोई स्टे दे सकता है।


लेकिन ऐसे मामलों में यदि कोई झगड़ा है, तो झगड़े को शांत करवाने और झगड़ा आगे न हो तो पुलिस को इन मामलों में दखल देना ही पड़ता है। वहीं शहरी क्षेत्रों में घरेलू झगड़ों में भी पुलिस को सीधा दखल देना पड़ता है। कई बार तो ऐसे मामले बहुत लंबे समय तक चलते हैं। लेकिन ऐसे में लोगों का जो पुलिस के प्रति नजरिया है। इसके कारण हमें कई बार विरोधाभास का सामना करना पड़ता है। 

3. लैंगिक समानता को लेकर भी हो रहे हैं प्रयास : 
लैंगिक समानता को लेकर भी पुलिस ने पिछले कुछ समय में बड़े बदलाव किए हैं। आज हर थाने में एक महिला डेस्क होती है। जहां कोई भी महिला बैफिक्र होकर अपनी शिकायत दर्ज करा सके। इन डेस्क का सभी काम महिला पुलिसकर्मी ही संभालती हैं। इसके साथ ही संवैधानिक रूप से हर रैंक में महिलाओं को आज बराबर का अधिकार दिया जा रहा है।


साथ ही यदि विभाग के अंदर ही महिलाकर्मी किसी तरह की शिकायत करती है तो एक विभागीय कमेटी इसकी जांच भी करती है। साथ ही महिला पुलिसकर्मी हर काम कर रही हैं, जो एक पुरुष कर सकता है। कुछ मामलों में तो एफआईआर और जांच का अधिकार ही महिला पुलिसकर्मियों के पास है। 

4. पुलिसकर्मियों के स्वास्थ्य को लेकर काफी काम करने की जरूरत : 
हाल ही में कुछ समय से विभाग पुलिसकर्मियों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को देखते हुए सुबह योग क्लास और साप्ताहिक अवकाश जैसे कदम उठा रहे हैं, लेकिन मेरा मानना है इस विभाग के काम में जितना तनाव है। उसे देखते हुए कुछ अन्य प्रयास भी करने होंगे। खासकर के यदि किसी पुलिस कर्मी पर कोई आरोप लगे या उसका व्यवहार कुछ असहज सा लगे। तो उनकी काउंसलिंग होना बहुत जरूरी है। मेरा मानना है इस दिशा में काफी काम करने की जरूरत है। 

5. शहरी और ग्रामीण पुलिस के पास समान सुविधाएं मौजूद : 
सन 2000 के बाद से ही पुलिस आधुनिकीकरण के तहत बहुत सा काम हुआ है। वर्तमान में यदि देखेंगे ग्रामीण और शहरी क्षेत्र में समान ही काम हो रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में भी नए भवन का निर्माण किया गया है और पुलिस को नए वाहन दिए गए हैं। प्रदेश के हर थाने में अब बोलेरो वाहन दिया जा रहा है। वहीं देहात या शहर में तैनात किए गए डायल 100 वाहन टाटा सफारी है। जिसमें जीपीएस, नेविगेशन जैसी आधुनिक सुविधाएं भी दी जा रही हैं। 

6. अन्य की राज्यों की तुलना में ज्यादा पारदर्शी मप्र पुलिस : 
प्रदेश में दर्ज होने वाली शिकायतों और एफआईआर की संख्या देखेंगे तो हो सकता है मप्र का आंकड़ा कुछ प्रदेशों से ज्यादा हों। लेकिन यदि गंभीर अपराधों की संख्या देखेंगे तो मप्र की स्थिति देश के अन्य राज्यों से काफी बेहतर है। यह भी देखा गया है कि अन्य राज्य के लोग या निरीक्षण दल जब हमारे प्रदेश के थानों में आते हैं तो उनका कहना है कि मप्र पुलिस के काम करने के तरीके में ज्यादा पारदर्शिता है। 


यदि थाने में आकर कोई कंप्लेंट करता है या शिकायत दर्ज कराता है तो उसकी सुनवाई होती है। प्रदेश में ऐसा नहीं है कि मामले को दबाने का प्रयास किया जाए। हमारे मप्र में हर मामले की सुनवाई होती है। शिकायत दर्ज होती है। यही कारण है कि प्रदेश में दर्ज होने वाला शिकायतों का आंकड़ा अन्य प्रदेशों की तुलना में कुछ अधिक है।  

7. सायबर अपराधों को रोकना बड़ी चुनौती : 
वर्तमान समय में अपराध करने का तरीका भी बदल रहा है। आप देखेंगे कि वर्तमान समय में आम आदमी सबसे ज्यादा किसी समस्या से जूझ रहा है तो वह सायबर अपराध हैं। ऐसे अपराधों को रोकना ही पुलिस के लिए बड़ी चुनौती है। सायबर अपराध अब बड़े पैमाने पर हो रहे हैं। मुझे लगता है कि इन अपराधों पर लगाम लगाने के लिए विभाग को बड़े पैमाने पर काम करने की जरूरत है। 

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