Politics: गोपालगंज के तत्कालीन जिलाधिकारी जी. कृष्णैया की हत्या के आरोपी बाहुबली पूर्व सांसद आनंद मोहन सिंह अंतिम तौर पर आज जेल से रिहा हो गए।
सामाजिक कार्यकर्ता ने जनहित याचिका दायर की
सामाजिक कार्यकर्ता अमर ज्योति ने अधिवक्ता अलका वर्मा के जरिए पटना हाईकोर्ट में बुधवार को जनहित याचिका दायर की। ड्यूटी पर तैनात लोक सेवक की हत्या की सजा में छूट का प्रावधान देने वाली अधिसूचना को रद्द करने की मांग करते हुए लिखा है कि “ऐसी छूट के कारण अपराधियों का मनोबल बढ़ेगा।
आम आदमी की तरह ड्यूटी पर तैनात सरकारी सेवक की हत्या करने में अपराधी को हिचक नहीं होगी। आपको बता दें कि अगर यह जनहित याचिका इस आदेश के पहले दायर होती और सुनवाई होती तो आदेश टलने की संभावना बन भी सकती थी, लेकिन अधिसूचना जारी होने के बाद हाईकोर्ट में सरकार इसपर कमजोर पड़ेगी- ऐसी संभावना अमूमन नहीं दिखती है।

दोपहर तक होने वाली रिहाई सुबह 4:30 बजे क्यों..
पूर्व सांसद Anand Mohan जेल से रिहा (Politics) हो गए। कागजी प्रक्रिया पूरी होने के बाद गुरुवार सुबह साढ़े 4 बजे ही सहरसा जेल प्रशासन ने आनंद मोहन की रिहाई कर दी।
कागजी प्रक्रिया पूरी होने तक लोगों को उम्मीद थी कि Anand Mohan गुरुवार दोपहर तक सहरसा जेल से रिहा होंगे लेकिन जेल प्रशासन ने उसे सुबह 4:30 बजे ही रिहा कर दिया। सहरसा जेल अधीक्षक अमित कुमार ने कहा कि कागजी प्रक्रिया पूरी होने के बाद गुरुवार सुबह आनंद मोहन को रिहा कर दिया गया।
इसकी एक वजह यह भी है कि समर्थकों की भीड़ न हो साथ ही बिहार में Politics भी चरम पर है इसको देखते हुए उन्हें अहले सुबह रिहा किया गया। रिहाई के बाद Anand Mohan द्वारा रोड शो की बात कही गई थी लेकिन अब तक ऐसी सूचना नहीं मिली है।

नीतीश सरकार की योजना क्या है?
नीतीश कुमार जात के दलदल में धंसते जा रहे हैं। तेजस्वी यादव के दबाव में, निशाना लोकसभा चुनाव है और पिछड़ों पर भाजपा की पकड़ मजबूत है। तो वें किसी तरह से नया समीकरण बनाने की चुनौती में है चाहे इसके लिए कानून क्यों न बदलना पड़े। आनंद मोहन के लिए यही किया जा रहा है।
Politics के लिहाज से यह एक राजपूत नेता की रिहाई है। रिहाई के एक दिन पहले पटना हाईकोर्ट में इसके खिलाफ जनहित याचिका (PIL) दायर हुई है।
एक जमाने में बिहार पीपुल्स पार्टी (Politics) की स्थापना कर क्षत्रिय राजनीति का पूरा सिस्टम खड़ा कर रहे आनंद मोहन को आज भी बिहार की राजनीति में राजपूतों के बीच प्रभावी माना जाता है। वह कितने प्रभावी बचे हैं, यह 2024-25 के लोकसभा-विधानसभा चुनावों में पता चलेगा।
वह किसके साथ रहते हैं, यह भी काफी हद तक निर्भर करेगा। इसके अलावा यह भी बड़ी बात है कि 1994 से 2005 के बीच का यह बिहार नहीं बचा है। तब और अब के युवाओं की मनोदशा में काफी अंतर है। राजनीतिक रूप से उर्वर बिहार में अब आनंद मोहन राजपूतों का वोट (Politics) कितना ले सकेंगे, इसकी कल्पना अभी नही की जा सकती है।
वही दूसरी तरफ सीटी रवि को लेकर दिए बयान पर ईश्वरप्पा ने दी सफाई, कहा मुझे सीएम चुनने का अधिकार..
जी कृष्णैया की पत्नी और बेटी ने सरकार से अपील की..
गोपालगंज के तत्कालीन जिलाधिकारी जी कृष्णैया की पत्नी और बेटी पद्मा ने इसका विरोध किया है। दोनों ने एक स्वर में कहा कि आनंद मोहन का छूटना हमारे लिए दुख की बात है।
IAS अधिकारी जी कृष्णैया की बेटी पद्मा ने कहा कि Anand Mohan (Politics) का आज जेल से छूटना हमारे लिए बहुत दुख की बात है। उनकी रिहाई का फैसला गलत है। सरकार को इस फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए। जल्द ही हमलोग बिहार सरकार के इस फैसले के खिलाफ अपील करेंगे।
मैं नीतीश कुमार जी से अनुरोध करती हूं कि इस फैसले पर दोबारा विचार करें। इस फैसले से उनकी सरकार ने एक गलत मिसाल कायम की है। यह सिर्फ एक परिवार के लिए नहीं बल्कि पूरे देश के लिए अन्याय है।