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रमजान में मौत लिखने वाले मशहूर साहित्यकार मंजूर एहतेशाम का रमजान के महीने में निधन

पद्मश्री सम्मान से सम्मानित भोपाल के मशहूर लेखक और उपन्यासकार मंजूर एहतेशाम रविवार-सोमवार की दरमियानी देर रात कोरोना से लड़ते हुए इस दुनिया को छोड़ गए। वे 73 साल के थे और लगभग एक सप्ताह पहले कोरोना संक्रमित हुए थे। जिसके बाद शिवाजी नगर स्थित पारुल अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था। हालांकि वे पिछले कई सालों से अस्वस्थ भी थे, जिसके कारण उनकी तबियत लगातार बिगड़ती चली गई और रविवार देर रात उनका निधन हो गया। वे अपने पीछे दो बेटियों को छोड़ गए हैं।

उनके निधन की खबर आते ही सम्पूर्ण साहित्यकार जगत में शोक की लहर छा गई। कई वरिष्ठ पत्रकारों ने भी उनके निधन पर शोक व्यक्त किया। ये एक संयोग ही है कि उनके द्वारा लिखी पहली कहानी का नाम रमजान में मौत था और वे इसी पाक महीने में दुनिया को अलविदा कह गए। उन्हें 3 अप्रैल 2003 को उनके जन्मदिन के अवसर पर  ही तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने साहित्य के क्षेत्र में योगदान के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया था।

 कई अन्य सम्मानों से भी हो चुके थे सम्मानित :
भोपाल का गौरव कहे जाने वाले मंजूर एहतेशाम के माता पिता चाहते थे कि वे एक इंजीनियर बनें, लेकिन वो तो शुरू से ही लेखक बनना चाहते थे। इसीलिए मौलाना आजाद तकनीकी संस्थान में इंजीनियरिंग की पढ़ाई बीच में ही छोड़कर उन्होंने लेखक बनने की और कदम बड़ा दिए। उन्होंने अपने जीवन में पांच उपन्यास सहित कई कहानियां और नाटक लिखे हैं। साहित्य जगत में दिए इस योगदान के फलस्वरूप उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया।

इसके अलावा भी उन्हें भारतीय भाषा परिषद का पुरस्कार, श्रीकांत वर्मा स्मृति सम्मान, वागेश्वरी अवॉर्ड एवं पहल सम्मान जैसी कई सम्मानों से सम्मानित किया गया है। इसके पूर्व पिछले साल दिसंबर में उनकी पत्नी सरवर एहतेशाम का भी इंतकाल हो गया था। एक माह पूर्व उनके बड़े भाई भी कोरोना संक्रमित होकर दुनिया छोड़ गए थे। उन्होंने कई नाटक भी लिखे हैं। 

1976 में प्रकाशित हुआ था पहला उपन्यास ‘कुछ दिन और’ :
 उनकी पहली कहानी ‘रमजान में मौत’ 1973 में प्रकाशित हुई थी। इसके तीन साल बाद उनका पहला उपन्यास ‘कुछ दिन और’ 1976 में छपकर आया था। इसके अलावा सूखा बरगद, दास्ताने लापता, बशारत मंजिल, पहर ढलते उनके प्रमुख उपन्यास हैं। वहीं तसबीह, तमाशा जैसी कई कहानियों की रचना उन्होंने की है। उनकी लेखनी समाज की कुप्रथाओं, अन्याय और बुराइयों पर हमेशा ही कड़ा प्रहार करती थी।

उनके उपन्यास दस्ताने लापता का अमेरिका के एक प्रोफेसर ने अंग्रेजी में अनुवाद किया था। स्टोरी ऑफ मिसिंग मेन नाम के इस उपन्यास ने पूरी दुनिया में खूब नाम कमाया था। श्री एहतेशाम हिंदी, इंग्लिश और उर्दू भाषा के अच्छे जानकार थे। उनका जाना साहित्य जगह के साथ पूरे समाज के लिए गहरी क्षति है। कवि, लेखक और आलोचक राजेश जोशी और मध्यप्रदेश के पूर्व डीजीपी दिनेश चन्द्र जुगरान ने उनके निधन पर गहरा दुख जताया है।

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