बढ़ती ग्लोबल वार्मिंग भले ही लोगों के लिए चिंता का विषय नहीं है लेकिन पर्यावरण और प्रजनन महामारी विशेषज्ञ डॉ शन्ना स्वान की रिपोर्ट आपको प्रदूषण के बारे में सोचने पर मजबूर कर देगी।
पर्यावरण और प्रजनन महामारी विशेषज्ञ डॉ शन्ना स्वान के अनुसार व्यापक औद्योगिक रसायनों और प्रदूषणों के कारण मानव जाति के सेक्स स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ रहा है। बढ़ते प्रदूषण के कारण लोगों के लिंग सिकुडने और यौन सवास्थ्य से संबंधित मामले प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं।
प्रदूषित भोजन या उत्पादों का रोजाना उपयोग से हर दिन, छोटे लिंगों, स्तंभन दोष और कम शुक्राणुओं जैसे रोगियों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी देखी जा रही है।
स्वान की किताब “काउंट डाउन” के अनुसार, प्रजनन स्वास्थ्य केवल हंसी का विषय नहीं है, प्रदूषण मनुष्यों की प्रजनन क्षमता के लिए खतरा हो सकता है। कारणों की बात की जाए तो प्लास्टिक में पाए जाने वाले फथलेट्स नामक रसायन हैं, जो हमारे चारों ओर हैं। ये रसायन मानव में हार्मोन को प्रभावित करते हैं जिससे लिंग के आकार सहित कम आईक्यू, मोटापा और प्रजनन समस्याओं सहित कई दुष्प्रभाव हो सकते हैं।
जानिए क्या कहती है रिसर्च
डाँ स्वान की किताब के अनुसार चूहे पर एक शोध किया गया है जिसमें देखा गया कि जब रसायन भ्रूण के संपर्क में आता है तो गर्भ में पल रहे बच्चे का लिंग सिकुड जाता है। संक्षेप में, पुस्तक कहती है कि अधिक बच्चे अब छोटे लिंग और कम प्रजनन क्षमता के साथ पैदा होते हैं। यह चूहे के जननांगों को सिकोड़ने के लिए मनाया जाने वाला फोथलेट सिंड्रोम की जाँच करता है। प्लास्टिक को अधिक लचीला बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला रसायन मानव विकास को भी नुकसान पहुँचाता है।
2017 में शोधकर्ताओं की टीम ने पाया कि पश्चिमी देशों में शुक्राणुओं की संख्या पिछले चार दशकों में 50% कम हो गई है। और सेक्सुअल स्वास्थ्य के मामलों में भी लगातार बढ़ोतरी देखी गई है।
बच्चों पर हो रहा ज्यादा असर
रिपोर्ट बताती है कि “बच्चे अब दुनिया में पहले से ही रसायनों के साथ दूषित हो रहे हैं क्योंकि वे गर्भ में ही रसायनों के संपर्क में आने लगे हैं। इंसानों को इस समस्या से बचने के लिए प्रदूषण को रोकने और प्लास्टिक के उपयोग से बचना चाहिए साथ ही जीवनशैनी के विकल्पों में भी सुधार की जरूरत है जरूरत से ज्यादा ध्रूमपान भी इस समस्या का एक कारण बताया गया है।