इन प्रजातियों में बियर्डेड (Bearded vulture), इजिप्शयन (Egyptian vulture), सिनेरियस (Cinereous vulture), किंग (King Vulture), स्बैंडर बिल्ड (Slender-Billed Vulture) यूरेसियन (Eurasian griffon), लॉन्ग बिल्ड (Long billed or Indian Vulture), हिमालियन ग्रिफिम (Himalayan griffon vulture) एवं व्हाइट बैक्ड (White-Rumped Vulture) जैसी प्रजातियां शामिल हैं।
सड़ा गला मांस भी पचा लेते हैं गिद्ध :
प्राकृतिक रूप से भोजन चक्र में गिद्धों की भूमिका अहम रही है और खाद्य श्रृंखला में इनका महत्वपूर्ण स्थान है। साथ ही यह अनेक प्रकार की पारिस्थितिकी सेवाएं प्रदान करते हैं, लेकिन पिछले एक दशक में गिद्धों की सभी प्रजातियां लुप्त होने की कगार पर पहुंच गई हैं।
इस कारण विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गए गिद्ध :
डाइक्लोफेनेक 1980 के शुरुआती वर्षों से प्रचलन में आई थी और कुछ सालों बाद जब गिद्धों की संख्या में भारी गिरावट आई, तो डाइक्लोफेनेक और गिद्धों की मौत के मध्य सम्बन्ध स्थापित हो गया। इसके अलावा जंगलों की लगातार कटाई से गिद्धों के प्राकृतिक आवास नष्ट हो गए, जो इनके विलुप्त होने का सबसे बड़ा कारण है।
गिद्धों की प्रजनन क्षमता भी संवर्धन के प्रयासों में एक बड़ी बाधा है, गिद्ध जोड़े साल में औसतन एक ही बच्चे को जन्म देते हैं। यही कारण है कि गिद्धों के संरक्षण और संवर्द्धन में खासी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
बक्सवाहा में भी मौजूद हैं गिद्ध :
सरकार द्वारा इनके संरक्षण और संवर्धन के लिए बहुत सारे प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन यदि जंगल काटे जाते हैं, तो इनके प्राकृतिक आवास ख़त्म हो जाएंगे। मध्य प्रदेश के बक्सवाहा (Buxaha Forest) में भी गिद्ध बहुत अधिक संख्या में हैं, लेकिन हीरों के लिए इन जंगलों को काटा जाना यहां रहने वाले गिद्धों के लिए विनाशकारी साबित होगा। बक्सवाहा गिद्धों के लिए एक आदर्श स्थल है। यदि यह जंगल इसके बावजूद भी काटा जाता है, तो निश्चित है कि गिद्ध यहां से पूरी तरह से विलुप्त हो जाएंगे।
लेखक मप्र के पर्यावरणविद हैं, वन्य संपदा के संरक्षण को लेकर कार्य कर रहे हैं।
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