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Chhath Puja: जानिए क्‍यों मनाई जाती है छठ पूजा और क्‍या है इसका महत्‍व ?

छठ पूजा (Chhath Puja) हिंदू धर्म में सबसे महत्वपूर्ण और धार्मिक त्योहारों में से एक है। दिवाली और भाई दूज के त्योहार के बाद, छठ पूजा सूर्य और छठ माता की प्रार्थना करने के लिए मनाई जाती है। ये पूजा भारत में मनाए जाने वाले प्रमुख त्योहारों से अलग है क्‍योंकि, छठ पूजा (Chhath Puja) चार दिनों की अवधि में पूरी होती है इसके अलावा भारत में मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश राज्यों की सीमाओं के भीतर और नेपाल के मधेश क्षेत्र में यह पूजा काफी ज्‍यादा प्रचलित है। आइए विस्‍तार से जानते हैं क्‍या है छठ पूजा मनाने के पीछे क्‍या कारण हैं।

क्‍यों मनाई जाती है छठ पूजा (Chhath Puja):

भारतीय संस्कृति में त्योहार का महत्व भगवान राम और माता सीता के इर्द-गिर्द है, जिन्होंने अयोध्या राज्य में अपने 14 साल के वनवास से लौटने के बाद सूर्य की पूजा की थी। यह त्‍योहार कार्तिक मास के महीने में छठे दिन मनाया गया था यही कारण है कि इसे छठ पूजा नाम दिया गया। तभी से हिंदू धर्म में छट पूजा का प्रचलन शुरू हुआ।

छठ पूजा (Chhath Puja) पर सूर्य की आराधना का महत्‍व: 

ज्योतिष शास्त्र में सूर्य को नवग्रहों के राजा की उपाधि दी गई है। वेदों में भी अनेक स्थानों पर सूर्य देव की ऋचाएं प्राप्त हैं। अनादि काल से लेकर अब तक सूर्य देव का वर्णन देखने को मिलता है, पुराणों की बात करें तो सूर्य की उत्पत्ति, स्तुति, मंत्र आदि क वर्णन उसमें मिलता है। युगों युगों से सूर्य के महत्‍व को देखते हुए उनकी आराधना करना शुभ माना गया है। छठ पूजा के दिन उनकी आराधना महत्‍वपूर्ण बताई गई है।

कैसे मनाएं छठ पूजा: 

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी में हर दिन सुबह की शुरूआत नहाकर सूर्य को जल चढ़ाकर की जाती है। यह पूजा चार दिन तक चलती है।

पंचमी को दिन भर ‘खरना का व्रत’ रखकर व्रती शाम को गुड़ से बनी खीर, रोटी और फल का सेवन करते हैं। इसके बाद शुरू होता है 36 घंटे का ‘निर्जला व्रत’।

तीसरे दिन शाम को व्रत रखने वाली महिलाएं डूबते सूर्य की आराधना करती हैं। पूजा के चौथे दिन व्रतधारी उदीयमान सूर्य को दूसरा अर्घ्य समर्पित करते हैं। इसके पश्चात 36 घंटे का व्रत समाप्त होता है और व्रती अन्न जल ग्रहण करके इस पूजा का खत्‍म करती हैं।

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