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दुःख-दर्द में हमेशा ही सबके साथी रहे हैं डॉ. नरोत्तम मिश्रा : केसवानी

तेजस्वी सम्मान खोजते नहीं गोत्र बतलाके,

पाते है जग से प्रशस्ति अपना करतब दिखलाके।

हीन मूल की ओर देख जग गलत कहे या ठीक,

वीर खींचकर ही रहते है इतिहासों में लीक।

अपनी मोहक अंदाज से सभी को मोह लेने वाले मध्य प्रदेश के एक ऐसा नेता जिन्होंने हमेशा ही लोगों के दुःख दर्द में उनका संबल बने हैं। मध्यप्रदेश की पावन धरती पर 15 अप्रैल 1960 को ग्वालियर में जन्में डॉ. नरोत्तम मिश्रा वर्तमान समय में मध्य प्रदेश की राजनीति का ध्रुव बने हुए है। 

छात्र जीवन से ही राजनीति में सक्रिय रहे डाॅ. मिश्रा :

डॉ. नरोत्तम मिश्रा साल 1977-78 में जीवाजी विश्वविद्यालय छात्रसंघ में सचिव चुने गए, जिसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। मिलनसार स्वभाव और लोगों के बीच आसानी से घुलमिल जाने वाले डाॅ.नरोत्तम मिश्रा की अपनी ही एक राजनीतिक विरासत है। उन्होंने ग्वालियर के जीवाजी विश्वविद्यालय से एमए और पीएचडी की है।

वर्ष 1978-80 में वह मध्य प्रदेश भारतीय जनता युवा मोर्चा कार्यकारणी के सदस्य के रूप में सकिय राजनीति में आए और 1985-87 तक उन्होंने मध्य प्रदेश भारतीय जनता पार्टी प्रांतीय कार्यकारणी में एक समर्पित कार्यकर्ता के रूप में काम किया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आजीवन स्वयंसेवक और भारतीय जनता पार्टी के एक समर्पित कर्तव्यनिष्ठ कार्यकर्ता के रूप में डॉ. मिश्रा लगातार कर्मयोगी की तरह जीवन के पथ पर अग्रसर है।

लगातार 6 बार के विधायक हैं डॉ. मिश्रा : 

डॉ. नरोत्तम मिश्रा के चुनावी राजनीतिक जीवन की शुरूआत 1990 में हुई, जब वह नौवीं विधानसभा के सदस्य के रूप में मध्य प्रदेश विधानसभा पहुँचे और लोकलेखा समिति के सदस्य बने। यही से उनके संसदीय ज्ञान की शुरूआत हुई। जिसने उन्हें संसदीय ज्ञान का ज्ञाता बना दिया। संसदीय मूल्यों और परंपराओं की बात की जाए तो डॉ. नरोत्तम मिश्रा जैसे विरले ही राजनेता होगें, जिन्हें संसदीय ज्ञान पर पकड़ है।

यही कारण है कि भाजपा की सरकार में हमेशा उन्हें संसदीय कार्यमंत्री के रूप में दायित्व दिया जाता रहा है। 1990 में ही डॉ. मिश्रा विधानसभा में सचेतक भी रहे। साल 1998 में दूसरी बार, 2003 में तीसरी बार, 2008 में चौथी बार, 2013 में पांचवी बार और 2018 में लगातार छठवीं बार मध्य प्रदेश विधानसभा के सदस्य निर्वाचित हुए है।

गौर के कार्यकाल में पहली बार मिला राज्यमंत्री का प्रभार :

डॉ. नरोत्तम मिश्रा को 01 जून 2005 को पहली बार तत्कालीन मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर ने अपने मंत्रिमंडल में राज्यमंत्री के रूप में शामिल किया। जिसके बाद उन्होंने अपनी एक अलग ही लकीर खींची, जो कैबिनेट मंत्री के रूप में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ जल संसाधन, जनसंपर्क, संसदीय कार्य, लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण जैसे महत्वपूर्ण विभागों में जिम्मेदारी निभाते हुए यह लकीर लगातार बढ़ती ही गई।

वर्तमान में डॉ. मिश्रा 2018 में कांग्रेस की जनविरोधी सरकार को सत्ता से बेदखल कर पुनः सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाकर प्रदेश के गृहमंत्री का पद सम्हाल रहे है। डॉ. नरोत्म मिश्रा जितने अपनी पार्टी में लोकप्रिय है उतने ही विपक्षी पार्टीयों में भी उनकी लोकप्रियता है। यही वजह है कि कांग्रेस ही नहीं जितने भी विपक्षी दल के नेता है उनके व्यावहार और राजनीतिक कार्यकुशलता का लोहा मानते है।

मां पीतांबरा के परम भक्त हैं डा. मिश्रा: 

पिछले 16 वर्षों के दौरान जब-जब भाजपा की प्रदेश सरकार पर संकट आयी तब एक संकट मोचन की तरह डॉ.नरोत्तम मिश्रा ने अपनी सूझबूझ और संसदीय ज्ञान से उस संकट से पार दिलाया। पार्टी को अपनी मां मानने वाले मां पीतांबरा के परम भक्त डॉ. नरोत्तम मिश्रा माई के दरबार में हमेशा ही नतमस्तक रहे है। उनके दिन की शुरूआत मां पीतांबरा की भक्ति से शुरू होती है।

एक कर्मयोगी की तरह सतत् जनसेवा में लगे रहने वाले डॉ. मिश्रा जहां अपने विधानसभा क्षेत्र में लोकप्रिय राजनेता की छवि रखते है तो वही वह अपनी पार्टी सदस्यों, कार्यकर्ताओं और पत्रकारों की बिरादरी में एक सहज और सरल व्यक्तित्व के रूप में उनके हर सुख दुःख में उनके साथ खड़े मिलते है। अपनी मोहक मुस्कान से सबको मोह लेने वाले ऐसे विरले ही राजनेता होते हैं, जो हर एक व्यक्ति का परिवार का सदस्य होता है। डॉ. नरोत्तम मिश्रा के लिए कवि दुष्यंत कुमार की कविता के इन दो लाइनों से समझा जा सकता है-

इस नदी की धार में ठंडी हवा आती तो है,

नाव जर्जर ही सही लहरों से टकराती तो है। 

मध्य प्रदेश के साथ अन्य राज्यों में भी भाजपा के ट्रंप कार्ड : उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में पार्टी को भारी जीत दिलाने का जिम्मा हो या फिर पश्चिम बंगाल चुनाव में दहाड़ मारती उनकी आवाज जीत की तरफ इशारा करती है। अपनी वाकपटुता और चातुर्य से दुश्मन को चारोंखाने कैसे चित करना है, अगर किसी से सीखना है तो वह डॉ. नरोत्तम मिश्रा ही हो सकते है।

मां कमला देवी और पिता डॉ. शिवदत्त मिश्रा के यहां जन्म लेने वाले डॉ. नरोत्तम मिश्रा अपने तीन भाईयों और तीन बहिनों के साथ जहाँ अपने कुल का नाम रोशन कर रहे है तो वही उनके पुत्र अशुंमान, सुकर्ण और बेटी मृगनयनी और दमाद सहित नाती पोतों के साथ जीवन के 61 वें वसंत का आनंद ले रहे है।

उनकी सामाजिक और राजनैकित यात्रा हमेशा यूं ही अविरल चलती रहे। भारतीय जनता पार्टी के ध्येय पर चलने वाले डॉ. नरोत्तम मिश्रा के जीवन का एक ही मूल मंत्र है, जिसे वह कहते है- चरैवेति-चरैवेति यही तो मंत्र है अपना। नहीं रूकना, नहीं थकना सतत चलना-सतत चलना ।

लेखक श्री दुर्गेश केसवानी भारतीय जनता पार्टी मध्यप्रदेश के प्रदेश वार्ताकार है।

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