Baisakhi 2023: फसल पकने की खुशी में सिख धर्म के लोग बैसाखी के त्योहार को धूमधाम से मनाते है। बैसाखी का पर्व लोकप्रिय उत्सवों में से एक है, साथ ही साथ बैसाखी के त्योहार के साथ ही सिख नववर्ष की शुरुवात भी होती है।
बैसाखी को अलग-अलग क्षेत्र में अलग-अलग नाम से जाना जाता है, इसे असम में बिहू, बंगाल में नबा वर्षा और केरल में पूरम विशु कहा जाता है। ज्योतिष के अनुसार बैसाखी के दिन सूर्य मेष राशि में प्रवेश करते हैं।
आइए जाने Baisakhi का महत्व

Baisakhi का त्योहार हर साल अप्रैल महीने में आता हैं। अप्रैल के महीने तक रबी की फसल पककर पूरी तरह से तैयार हो जाती है और उनकी कटाई भी शुरू हो जाती है. इसीलिए बैसाखी को फसल पकने और सिख धर्म की स्थापना के रूप में मनाया जाता हैं।
ऐसा कहा जाता है कि इसी दिन सिख पंथ के 10वें गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी. तभी से बैसाखी का त्योहार मनाया जाता है।
यह त्योहार खालसा के गठन का प्रतीक है, गुरु गोविंद सिंह ने 1699 में Baisakhi के दिन खालसा की स्थापना की थी। इस दिन सभी जातियों के बीच से भेदभाव को खत्म कर दिया गया और सभी लोगों को एक नजर से देखा जाना लगा।
बैसाखी को सिख नववर्ष के रूप में भी मनाया जाता है, बता दें कि बैसाखी को मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तरप्रदेश में हिन्दुओं द्वारा मनाया जाता है। बात करें पश्चिम बंगाल की तो वहां बैसाखी को बंगाली नववर्ष के रूप में मनाया जाता है।
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कैसे मनाते Baisakhi का त्योहार

- इस दिन लोग गुरुद्वारों में अरदास के लिए इकट्ठे होते हैं। मुख्य समारोह आनंदपुर साहिब में होता है, जहां पंथ की नींव रखी गई थी।
- सभी लोग सुबह जल्दी उठकर स्नान करते है और रंग-बिरंगे कपड़े पहनते है।
- सुबह 4 बजे गुरु ग्रंथ साहिब को समारोहपूर्वक कक्ष से बाहर लाया जाता है।
- दूध और जल से स्नान करवाने के बाद गुरु ग्रंथ साहिब को तख्त पर बैठाया जाता है। इसके बाद पंच प्यारे ‘पंचबानी’ गाते हैं।
- दिन में अरदास के बाद गुरु को प्रसाद का भोग लगाया जाता है।
- प्रसाद लेने के बाद सब लोग ‘गुरु के लंगर’ में शामिल होते हैं।
- श्रद्धालु इस दिन कारसेवा करते हैं।
- दिनभर गुरु गोविंदसिंह और पंच प्यारों के सम्मान में शबद् और कीर्तन गाए जाते हैं।
- इस दिन पंजाब का परंपरागत नृत्य भांगड़ा और गिद्दा किया जाता है।
- शाम को आग के आसपास इकट्ठे होकर लोग नई फसल की खुशियां मनाते हैं।